B.Ed और BTC. वैसे तो ये शिक्षकों की भर्ती के लिए ली जाने वाली डिग्रियां हैं, लेकिन आज कल ये बनी हुई हैं ट्विटर के हॉट-कीवर्ड. इसीलिए आज के दिन की बड़ी ख़बर में बात होगी B.Ed-BTC के पूरे विवाद की. क्या-कब-कैसे? दोनों पक्ष क्या हैं? अदालती विवादों से क्या निकल कर आया?
B.Ed और BTC छात्रों की मांग क्या है? सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?
B.Ed छात्रों की मांग है कि वे भी प्राइमेरी टीचर की नौकरी के लिए आवेदन करना चाहते हैं.

एक-एक कर बात शुरू करते हैं. पहले आपको कुछ टर्म्स समझने होंगे, जो शो में बार बार इस्तेमाल में आएंगे - B. Ed, BTC और D.El.Ed.
क्या होता है B. Ed?
किसी भी सरकारी या एक सम्मानजनक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने के लिए B.Ed की डिग्री अनिवार्य होती है. ये एक डिग्री कोर्स है. फुल-फार्म होता है - बैचलर्स ऑफ़ एजुकेशन. जैसे B.A. हुआ बैचलर्स ऑफ़ आर्ट्स. वैसे ही B. Ed - बैचलर्स ऑफ़ एजुकेशन. छोटे शहरों में सरकारी नौकरी की इच्छा पालने वालों में एक बड़ा वर्ग वो भी है, जो सिर्फ सरकारी शिक्षक बनने की तैयारी कर रहा है. और अगर हम चश्मे को थोड़ा सा साफ़ करके देखें, तो इस वर्ग में भी एक बड़ा वर्ग उन लड़कियों का है जिनके माता-पिता अपनी बेटियों को दूसरे शहरों या बड़े शहरों में नौकरी करने नहीं जाने देते.
बहरहाल, B.Ed करने के लिए 12वीं के बाद पहले एक स्नातक करना ज़रूरी है. वैसे B.Ed भी एक बैचलर्स डिग्री ही है. लेकिन पहले किसी और डिसीप्लिन में बैचलर्स, और फिर B. Ed में दाखिला लिया जाता है. दो साल का कोर्स होता है. बैचलर्स डिग्री और बीएड अलग-अलग करने पर 5 साल लगते हैं. इसलिए नई शित्रा नीति के तहत शिक्षा मंत्रालय ने इंटिग्रेडेट कोर्स शुरू किया गया है. चार साल के बीएड का ऐलान किया है. ये - किसी भी और बैचलर डिग्री के जैसे ही - सीधे 12वीं के बाद किया जा सकता है. इसमें बीए, बीएससी, बीकॉम के साथ आप चार साल के कोर्स में ही बीएड भी कर सकते हैं.
अब इस डिग्री से मिलती है सरकारी टीचर बनने की योग्यता.. और उम्मीद. नौकरी कहां मिलेगी? राज्य के और केंद्र के अधीन आने वाले सभी स्कूलों में. निजी स्कूलों में भी नौकरी के लिए अब बीएड की डिग्री मांगी जाने लगी है. पर यहां एक बात पर ग़ौर करिए. दिल्ली, नोएडा, बेंगलुरु, पुणे, मुंबई, लखनऊ जैसे बड़े शहरों के कुछ नामचीन स्कूलों को छोड़ दीजिए. छोटे-छोटे शहरों में जो निजी स्कूल हैं, उनमें पढ़ाने वाले शिक्षकों को बामुश्किल 10 या 15 हज़ार रुपये तक मिलते हैं. 10-10 साल नौकरी करने के बाद तन्ख्वाह किसी तरह 20 हज़ार के अल्ले-पल्ले पहुंचती है. इन स्कूलों में पढ़ाने वाले ये आरोप लगाते हैं कि स्कूल चलाने वालों का बस चले तो हफ्ते के सातों दिन और 24 घंटे काम करवाएं. और यही वजह है कि सरकारी स्कूल में नौकरी पाने की होड़ लगी है.
दूसरा टर्म है, BTC. जिसे अब D. El. Ed के नाम से जाना जाता है. फ़ुल फ़ॉर्म - Diploma in Elementary Education. ये भी दो साल का कोर्स है. इस कोर्स को करने से क्या मिलेगा? इससे भी सरकारी स्कूलों में नौकरी की पात्रता मिलेगी. लेकिन सिर्फ़ प्राइमरी स्कूल में. यानी पहली से पांचवी क्लास तक. अब इस पूरे शो में आप तीन कीवर्ड को पकड़ लीजिए -- बीएड, बीटीसी और प्राइमरी स्कूल.
अब मुद्दे की टाइमलाइन समझिए. राजस्थान हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से पहले हमें चलना होगा थोड़ा पीछे. प्राइमरी शिक्षक भर्ती से जुड़े इस मामले का एक सिरा साल 2018 में जारी की गई एक अधिसूचना से जुड़ा हुआ है. शिक्षक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय परिषद या National Council for Teacher Education की अधिसूचना. शिक्षा राज्य का मसला है, लेकिन NCTE ही वो संस्था है जो पूरे देश में शिक्षकों के लिए योग्यता निर्धारित करती है. 28 जून, 2018 को NCTE ने अधिसूचना जारी की, कि B.Ed डिग्री वाले छात्र प्राइमरी शिक्षक बनने के लिए योग्य होंगे. बस इसके लिए उन्हें 6 महीने का एक ब्रिज कोर्स करना होगा. अपॉइंटमेंट के दो साल के अंदर. उसके बाद वो प्राइमरी शिक्षक - यानी कक्षा 1 से 5वीं तक के छात्रों को पढ़ाने वाले शिक्षक - बन सकेंगे. यहां एक बात बतानी ज़रूरी है. शिक्षा मंत्रालय ने लिखित में NCTE को ये संशोधन करने के निर्देश दिए थे.
इसके बाद 11 जनवरी 2021 को राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा (RTET) के लिए विज्ञापन जारी किया. और RTET के इस नोटिफ़िकेशन के मुताबिक़, केवल BSTC डिग्री वाले अभ्यर्थी ही इस परीक्षा के लिए एलिजिबल थे, B.Ed धारक नहीं. BSTC माने Basic school teacher certificate. ये एक सालाना परीक्षा है, जिसके बाद D. El. Ed में दाखिला मिलता है.
माने राजस्थान के B.Ed डिग्री वाले प्राइमरी शिक्षक भर्ती की दौड़ से बाहर हो गए. और D. El. Ed वालों के लिए कॉम्पटीशन हो गया कम. विज्ञापन आने के हफ़्ते भर में - 19 जनवरी को - राज्य सरकार के इस फ़ैसले को राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. उधर D.El.Ed वालों ने भी B.Ed वालों को भर्ती में शामिल किए जाने को चुनौती दे दी. राजस्थान सरकार ने D.El.Ed धारकों का समर्थन किया.
जनवरी से सुनवाई चलती रही. और ऐप्लिकेशन्स जुड़ते रहे. फिर फ़ैसला आया 25 नवंबर, 2021 को. राजस्थान हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अकील कुरेशी और जस्टिस सुदेश बंसल ने NCTE की अधिसूचना को ख़ारिज कर दिया. कहा कि B.Ed डिग्री धारक प्राइमरी टीचर की पोस्ट के लिए क़ाबिल नहीं होंगे.
कोर्ट ने अपने फ़ैसले में क्या कहा? अब वो समझिए -
कोर्ट ने राइट टू एजुकेशन ऐक्ट की धारा-23 की उपधारा-(2) की समीक्षा की. और कहा कि केंद्र सरकार के पास शिक्षक नियुक्ति के लिए निर्धारित योग्यता में छूट देने का अधिकार है. लेकिन उसके लिए उनके पास डेटा होना चाहिए. और, इस मामले में केंद्र सरकार के पास न तो उम्मीदवारों की संख्या का डेटा है, न वेकेंसी की संख्या का. सरकार ने तर्क दिया कि उन्होंने तो धारा-23 की उप-धारा (2) के तहत ये फ़ैसला किया ही नहीं है. बल्कि धारा-35 की उप-धारा (1) के तहत ऐसा किया है. फिर अदालत ने धारा-35 की उप-धारा (1) का तब्सिरा किया और कहा कि इस उपधारा के तहत तो केंद्र सरकार ये क़दम उठा ही नहीं सकती. योग्यता निर्धारित करने के लिए NCTE केंद्र सरकार के किसी भी निर्देश को मानने के लिए बाध्य नहीं है.
अदालत ने यह भी राय दी, कि बी.एड. पर्याप्त योग्यता नहीं है. और केवल इसीलिए शिक्षा मंत्रालय ने NCTE से एक ब्रिज कोर्स शुरू करने को कहा. ये कह कर राजस्थान हाई कोर्ट ने NCTE की अधिसूचना को ख़ारिज कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट तक चलें, इससे पहले यहां दो बातें ध्यान देने वाली हैं. पहली तो यही कि सरकार के पास डेटा नहीं है. दूसरी ये कि ब्रिज कोर्स का प्रावधान सुझाने का मतलब ही यही है कि B. Ed का कोर्स पहली से पांचवी क्लास के बच्चों को पढ़ाने के लिए नाक़ाफ़ी है.
अब आइए सुप्रीम कोर्ट. 11 अगस्त 2023. जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच. B. Ed छात्रों की तरफ़ से सीनियर वकील पीएस पटवालिया और मीनाक्षी अरोड़ा. और, डिप्लोमा धारकों और राजस्थान सरकार की तरफ़ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और मनीष सिंघवी.
B. Ed छात्रों के पक्ष से दलील दी गई कि राजस्थान हाई कोर्ट इस बात पर विचार करने में विफल रहा कि ये अधिसूचना NCTE का एक नीतिगत निर्णय था, जो केंद्र सरकार के निर्देश के बाद लिया गया. और उच्च न्यायालय का केंद्र सरकार के नीतिगत निर्णय में हस्तक्षेप करना ग़लत है. इस पर डिप्लोमा धारकों और राजस्थान सरकार के वकीलों ने कहा कि NCTE एक एक्सपर्ट बॉडी है. उसे इस मामले में स्वतंत्र निर्णय लेना था, न कि केवल केंद्र सरकार के नियमों का पालन करना.
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की. आला अदालत ने कहा कि बच्चों के लिए मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार भारतीय संविधान के निर्माताओं के विज़न का हिस्सा था. लेकिन, मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा तब तक किसी काम की नहीं है जब तक वो सार्थक न हो. मतलब प्रारंभिक शिक्षा अच्छी 'गुणवत्ता' वाली होनी चाहिए, न कि कोई फ़ॉर्मैलिटी या औपचारिकता.
अदालत ने रेखांकित किया कि प्राथमिक शिक्षक के लिए जो योग्यता तय की गई थी, वो D.El.Ed. की थी. कोई और योग्यता नहीं. एक D.El.Ed. उम्मीदवार को प्राथमिक स्तर पर छात्रों को पढ़ाने-संभालने के लिए ट्रेन किया जाता है और B. Ed वाले को माध्यमिक और उच्चतर-माध्यमिक स्तर के छात्रों के लिए. और उनसे प्राथमिक स्तर के छात्रों को पढ़ाने की उम्मीद नहीं की जाती. माने बी.एड. pedagogical या शैक्षणिक तौर पर अयोग्य है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में इस बात पर ज़ोर दिया है कि प्राथमिक शिक्षा में शिक्षा की 'गुणवत्ता' पर किसी भी समझौते का मतलब अनुच्छेद-21ए और RTE ऐक्ट के ख़िलाफ़ जाना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने तो फ़ैसला सुना दिया. अब आगे क्या? कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद लाखों छात्र अपने भविष्य की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं. उन्होंने प्राइमरी शिक्षक बनने के लिए CTET, यानी सेंट्रल टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट के लिए अप्लाई किया था. परीक्षा का एडमिट कार्ड 18 अगस्त को जारी होने वाला है. CBSE द्वारा आयोजित ये परीक्षा 20 अगस्त को देश के विभिन्न शहरों में आयोजित की जाएगी. लेकिन B.Ed डिग्री धारक कोर्ट के फैसले के बाद अब दुविधा में हैं कि एग्ज़ाम दिया जाए या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से प्रभावित B.Ed डिग्री पूरी करने वाले छात्र पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगा रहे हैं. छात्रों ने ट्विटर कैंपेन चलाया. हमने मेल मांगे तो हमें भी ढेर सारे मेल आए. अब सड़क पर उतरने की तैयारी भी की जा रही है. कई राज्यों और कई शहरों में प्रदर्शन किए जा रहे हैं. छात्रों का कहना है कि सरकार इस मामले से जुड़ा एक अध्यादेश लाए और B.Ed डिग्री वालों के साथ इंसाफ किया जाए. जिससे कि उन्हें प्राइमरी शिक्षक भर्ती के लिए पात्र माना जाए. कई छात्र तो अब सरकार की NEP 2020, यानी न्यू एजुकेशन पॉलिसी के तहत 4 साल के B.Ed कोर्स पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं.
इस मामले में एक और पक्ष है. डीएलएड वालों का. उनका कहना है कि वो सिर्फ प्राइमरी स्कूल में ही नौकरी पा सकते हैं. जबकि बीएड करने वालों के पास नौकरी पाने के कई अवसर हैं. इसलिए उनका कहना है कि किसी भी कीमत पर बीएड वालों के प्राइमरी स्कूल में नौकरी नहीं मिलनी चाहिए.
बीएड-बीटीसी, प्राइमरी स्कूल NCTE का पूरा विवाद हमने समझ लिया. प्रोटेस्ट हो रहे हैं. बीएड वाले भी कर रहे हैं. और बीटीसी वाले भी दम भर रहे हैं कि इनको प्राइमरी में तो नहीं आने देंगे. लेकिन यहां कुछ बुनियादी सवाल बनते हैं सरकारों से. इतने सालों से B.Ed और BTC का विवाद चल रहा है. तो अब तक कोई ऐसी नीति क्यों नहीं बनाई जा सकी जिससे इन विवादों पर फुल स्टॉप लग सके. 2018 में NCTE ने कह दिया कि बीएड वाले भी प्राइमरी में पढ़ा सकेंगे. बीते 5 सालों में देशभर के लाखों युवाओं ने नौकरी की आस में बीए़ड कर लिया. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक झटके में उनकी उम्मीदों को सीमित कर दिया है.
यहां एक और बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए. जैसे सरकारी स्कूल और प्राइवेट स्कूल हैं. वैसे ही सरकारी कॉलेज और प्राइवेट कॉलेज हैं जो बीएड कराते हैं. प्राइवेट कॉलेजों की फीस लाखों में होती है.
इससे पहले कि हम आगे बढ़े हम अलग-अलग राज्यों में प्राइमरी स्कूलों में नौकरियां कैसे दी जाती हैं इस पर नज़र डाल लेते हैं. यूपी में शिक्षा भर्तियों के विवाद तो आप खबरों में कई दफे पढ़ ही चुके हैं. शिक्षामित्रों का विवाद, 69 हजार भर्ती विवाद, 68,500 भर्ती विवाद. तो यूपी में B.Ed BTC का पूरा विवाद भी समझ लेते हैं.
यूपी में 2011 तक एक विशेष स्कीम चलती थी. विशिष्ट बीटीसी. अब ये क्या बला है. अभी तक बीटीसी और बीएड ही नहीं सुलझा था. विशिष्ट बीटीसी भी आ गया. तो बात ये कि इस स्कीम के तहत 6 महीने का एक कोर्स कराकर बीएड करने वाले युवाओं को सरकार प्राइमरी स्कूल में नौकरी देती थी. यानी जो बीटीसी नहीं बीएड वालों को प्राइमरी स्कूल में नौकरी मिल जाती थी. लेकिन 2011 में ये स्कीम बंद हो गई. तब आया UPTET. उत्तर प्रदेश टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट. यानी बीएड करने के बाद अगर स्कूल में नौकरी चाहिए तो UPTET पास करना होगा. इसमें प्राइमरी स्कूल की नौकरी के लिए अलग टेस्ट होता है. और 6-10 के स्कूल में पढ़ाने के लिए अलग टेस्ट होता है. यानी बीएड किया और UPTET पास किया तो प्राइमरी में नौकरी मिल जाएगी. केंद्र सरकार के अधीन आने वाले स्कूलों में पढ़ाने के लिए ऐसे ही CTET की परीक्षा होती है. लेकिन 2015 के बाद यूपी में बीएड वालों की प्राइमरी स्कूलों की भर्ती में एंट्री बंद हो गई. 2015 के बाद से सिर्फ शिक्षामित्रों और BTC वालों को ही प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने के लिए एलिजिबल माना गया.
लेकिन 2018 में जब NCTE ने बीएड करने वालों को भी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने के लिए एलिजिबल मान लिया तो मामला फिर बदल गया. यूपी में एक और भर्ती निकली थी 69 हजार शिक्षक भर्ती. बहुत विवाद हुआ इसमें. सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंचा था. इस भर्ती में एक बात पर गौर किया जाना चाहिए. 69 हजार में करीब 35 हजार शिक्षक बीएड वाले और और 34 हजार बीटीसी वाले.
यूपी के बाद राजस्थान का भी जिक्र कर लेते हैं. राजस्थान में बीटीसी की तर्ज पर BSTC होता है. Basic School Teaching Certificate . राजस्थान में प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने के लिए BSTC जरूरी है. हमने आपको पहले ही बताया कि ये विवाद शुरू ही हुआ राजस्थान से. तो राजस्थान में फिलहाल ये व्यवस्था है कि प्राइमरी में B.Ed वाले नहीं BSTC करने वालों को नौकरी मिलेगी.
अब तक के पूरे ब्योरे से दो सवाल निकल कर आते हैं. देखिए कॉमन सेंस क्या कहता है? कि जो व्यक्ति 10वीं-11वीं को पढ़ाने के लिए क़ाबिल है, वो तीसरी-चौथी जमात को क्यों नहीं पढ़ा सकता? यहीं आती है pedagogy. पूरे विवाद में आप ये शब्द बार-बार सुनेंगे: pedagogy. हिंदी में इसे कहते हैं, शिक्षा-शास्त्र. अर्थ, शिक्षण की प्रक्रिया.. मेथड. सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने निष्कर्ष में यही कहा कि प्राइमरी के बच्चों को पढ़ाने के लिए अलग सलीक़े की ज़रूरत है.
एक सवाल और है. NCTE के नोटिफिकेशन में ब्रिज कोर्स का जिक्र आया. इसको समझ लेते हैं. ब्रिज कोर्स किसको करना है? जिसने बीएड किया हो और प्राइमरी में पढ़ाना चाह रहा हो. 6 महीने का ब्रिज कोर्स होगा और नौकरी के 2 साल के भीतर करना होगा. आप अगर ध्यान दें तो यूपी में विशिष्ट बीटीसी का कोर्स भी कुछ ऐसा ही था. लेकिन इसमें भी एक पेंच है. यूपी में 69 हजार शिक्षक भर्ती में आधे तो बीएड वाले हैं. अब इनको ब्रिज कोर्स करना है. लेकिन इन्होंने अभी तक ब्रिज कोर्स किया नहीं. ये शिक्षक हाई कोर्ट तक जा चुके हैं, कि दो साल होने वाले हैं हमे ब्रिज कोर्स कराया. अब इसमें सरकारों का कहना है कि NCTE ने ब्रिज कोर्स का ऐलान तो कर दिया. लेकिन कोर्स में पढ़ाया क्या जाएगा, इसकी कोई रूपरेखा तय नहीं की गई.
इस विषय के जितने पक्षों पर एक शो में प्रकाश डाला जा सकता था, उनका संकलन करने की हमने भरसक कोशिश की है. ज़ाहिर है, लाखों युवाओं के भविष्य से जुड़े इस विषय के और पक्षों पर हमारी नज़र बनी रहेगी, रिपोर्टिंग भी जारी रहेगी. सिर्फ इसलिए नहीं, कि ये खबर उन लोगों से जुड़ी है, जो संख्या में बहुत ज़्यादा हैं. बल्कि इसलिए, कि ये एक खबर आपको बता सकती है कि देश का हाल कैसा है. चल क्या रहा है. आपने शेयर मार्केट के आंकड़े खूब सुने होंगे. GDP के ट्रिलियन डॉलर और यूनिकॉर्न की संख्या भी सुनी होगी. वो सब भी सत्य हैं, लेकिन उससे बड़ा सच कुछ और है.
आप ठंडे दिमाग से सोचें, तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला बहुत प्रोग्रेसिव है. हम नीदरलैंड, स्वीडन और फिनलैंड जैसे देशों की शिक्षा व्यवस्था की तारीफ करते नहीं थकते. कभी घूमकर आ जाएं, तो लोगों को पकड़-पकड़ कर बताते हैं कि वहां के स्कूल में फलां तरीके से शिक्षा दी जाती है. तब हम वहां की पैडागॉजी की ही तारीफ कर रहे होते हैं. कि जिस स्तर पर जैसी शिक्षा की ज़रूरत हो, उसके लिए वैसा माहौल तैयार हो, वैसे शिक्षक लगाए जाएं. सुप्रीम कोर्ट का फैसला इसी भावना के अनुरूप है.
ज़ाहिर है, ऐसे फैसले से B.Ed करने वालों के हित प्रभावित होते हैं, इसीलिए 2018 में आदेश निकालने वाली NCTE, जो केंद्र के शिक्षा मंत्रालय के तहत काम कर रहा है, उससे अपेक्षा थी कि वो ब्रिज कोर्स तैयार कर दे. लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी ये काम नहीं हो पाया. जिस नई शिक्षा नीति के लिए केंद्र सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है, उसमें भी इस प्रश्न का समाधान नहीं था. जिस इंटीग्रेटेड कोर्स की बात हुई थी, वो किस कॉलेज में चल रहा है, वो सरकार ही जानती होगी.
ऐसे में जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हुआ, वो कभी न कभी होना ही था. क्योंकि हमारे देश में बेरोज़गारों की वो भारी भीड़ मौजूद है, कि वो हर परीक्षा के हिसाब से डिग्रियां जमा करती है, क्योंकि प्राइवेट वाले रगड़ते हैं, पैसा नहीं देते. सरकारी में कुछ पैसा मिलता है, लेकिन उसके लिए चाहिए कागज़. तो युवा पहले B.Ed का कागज़ जमा कर रहे थे. दूसरे युवा D.El.Ed का कागज़ इकट्ठा कर रहे थे. इन दो समूहों को अलग अलग नौकरियों के लिए अप्लाई करना था. लेकिन बीच में सरकार ने कूदकर कहा कि B.Ed वाले एक कागज़ और ले आएं, तो D.El.Ed वाली नौकरी भी पा जाएंगे. बिना उस पैडागॉजी के सिद्धांत का ख्याल रखे, जिसका हवाला अंततः सुप्रीम कोर्ट ने दिया.
आज रात इस बारे में सोचिएगा. कि वो कौन लोग हैं, जो 10-15 हज़ार की नौकरी के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं. वो किस तरह के दवाब में जी रहे हैं. जब घर वाले पूछते हैं कि तुम्हारी बहाली का नतीजा क्या रहा, तब क्या जवाब देते होंगे. क्या इले सिर्फ आबादी का दबाव बताकर खारिज किया जा सकता है? या उन लोगों की कुछ ज़िम्मेदारी बनती है, जो खुद को देश का रहनुमा मानते हैं.
चलते चलते एक सूचना और. 21 अगस्त माने सोमवार से शुरू हो रहा है हमारा नया वीकली शो धांसू आइडिया. अबसे हर सोमवार, सुबह 11 बजे आप जानेंगे एक ऐसे नायाब आइडिया के बारे में, जिसने एक सफल स्टार्टअप जना. सफलता की कहानियों के साथ होंगे वो सबक भी, जो कल आपकी ज़िंदगी में भी काम आ सकते हैं.