अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या (Atique Ahmed Ashraf Killing) पर तरह-तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. अब इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग यानी NHRC की एंट्री हो गई है. साल 2005 में हुए राजू पाल हत्याकांड के 15 साल बाद 24 फरवरी, 2023 को हत्याकांड के गवाह उमेश पाल की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी. जिसके बाद उमेश पाल की पत्नी की शिकायत पर जेल में बंद माफिया अतीक अहमद सहित कुल 9 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया. उमेश पाल की हत्या को दो महीने नहीं पूरे हुए 9 आरोपियों में से 6 की मौत हो गई है. अतीक के बेटे असद सहित 4 लोग कथित पुलिस एनकाउंटर में मारे गए. जबकि अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस कस्टडी में हत्या हो गई. अब मानवाधिकार आयोग ने पुलिस को नोटिस भेजकर हत्या की डिटेल्ड रिपोर्ट मांगी है.
अतीक-अशरफ हत्याकांड में मानवाधिकार आयोग की एंट्री, क्या फंस जाएगी UP पुलिस?
मानवाधिकार आयोग ने एक-एक बात की जानकारी मांगी है.


हम बात करेंगे NHRC की. NHRC का काम क्या है? NHRC ने अतीक और अशरफ की हत्या को लेकर पुलिस को भेजे अपने नोटिस में क्या मांग की है? NHRC की शक्तियां क्या हैं और इस मामले में NHRC की एंट्री से क्या बदलेगा?
NHRC ने नोटिस में क्या कहा?बीते 15 अप्रैल को पुलिस हिरासत के दौरान अतीक और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या हुई थी. हमला तब हुआ जब दोनों को मेडिकल के लिए अस्पताल लाया जा रहा था. प्रयागराज कमिश्नरेट ने 16 अप्रैल को इस हत्याकांड पर एक प्रेस नोट जारी किया. इसमें बताया गया कि हमला करने वाले तीनों आरोपियों को मौके पर ही पकड़ लिया गया. उनकी पहचान लवलेश तिवारी, मोहित उर्फ सनी और अरुण कुमार मौर्य के रूप में हुई है. इन तीनों को कोर्ट में पेश किया गया था. जिसके बाद इन्हें 4 दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया है. इधर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने यूपी पुलिस को नोटिस जारी किया है. इधर NHRC की तरफ से जारी प्रेस नोट में कहा गया-
-पुलिस से अतीक और अशरफ की मौत के सभी पहलुओं को शामिल करते हुए डिटेल रिपोर्ट मांगी गई है.
-इसमें समय और जगह सहित गिरफ्तारी/हिरासत में लिए जाने का कारण बताने को कहा गया है.
-अतीक और अशरफ के खिलाफ दर्ज की गई शिकायत और FIR की कॉपी मांगी गई है.
-ये भी पूछा गया है कि अतीक और अशरफ की गिरफ्तारी की सूचना उनके परिवार/रिश्तेदारों को दी गई थी या नहीं.
-नोटिस में अतीक और अशरफ के मेडिकल लीगल सर्टिफिकेट की कॉपी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है.
-साथ में पोस्टमार्टम रिपोर्ट की टाइप की हुई कॉपी भी मांगी गई, जिसमें अतीक और अशरफ के शरीर पर लगी चोटों की डिटेल दी गई हो.
-पोस्टमार्टम का वीडियो कैसेट/सीडी भी मुहैया कराने को कहा गया है.
-इसके अलावा यूपी पुलिस से मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट सहित अन्य सभी जानकारियां देने को कहा गया है.
मानवाधिकार आयोग का नोटिस एक बात है और उसके आधार पर कोई कार्रवाई होना अलग बात. इस मामले में NHRC की एंट्री से क्या असर पड़ सकता है ये समझेंगे, लेकिन पहले ये समझ लें कि मानवाधिकार क्या हैं और NHRC कैसे काम करता है.
मानवाधिकार क्या हैं?अमेरिका के 35वें राष्ट्रपति जॉन एफ़ केनेडी की हत्या कर दी गई थी. उन्होंने एक बात कही थी,
“जब एक आदमी के अधिकारों को ख़तरा होता है तो हर आदमी के अधिकार कम हो जाते हैं.”
मानवाधिकार की परिभाषा ये है कि ऐसे अधिकार जो हमें इसलिए मिलते हैं कि हम मनुष्य हैं. बिना जाति, धर्म, क्षेत्र या किसी भी आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव के. इन मानवाधिकारों में जीवन के अधिकार सहित कई मौलिक अधिकार भी आते हैं. हमारे देश के संविधान के कुछ पन्ने, इन मानवाधिकारों की रक्षा की बात करते हैं. देश के हर नागरिक के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए साल 1993 में एक क़ानून भी बनाया गया- मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम यानी प्रोटेक्शन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स एक्ट (PHRA).
इसी क़ानून के तहत साल 1993 में ही 12 अक्टूबर के रोज एक संस्था बनी. संस्था का नाम-राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन). ये एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय है. दिल्ली में इसका मुख्यालय है. प्रोटेक्शन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स एक्ट में साल 2006 में कुछ संशोधन भी किए गए. एक लाइन में कहें तो नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन का काम है देश के नागरिकों के जीवन, उनकी स्वतंत्रता, समता और सम्मान से जुड़े उन अधिकारों की रक्षा करना जो उन्हें भारत के संविधान ने दिए हैं. हालांकि, मानवाधिकार केवल किसी देश के संविधान में ही निहित नहीं होते हैं.
10 दिसंबर 1948 को पेरिस में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानवाधिकारों की इस घोषणा को अपनाया था. माने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बात करें तो पहली बार मानवाधिकारों को इसी दिन तय किया गया. फिर पेरिस में अक्टूबर, 1991 में मानवाधिकार को लेकर कुछ सिद्धांत तय किए गए. इन्हें पेरिस सिद्धांत कहा जाता है. इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर भारत में 2 साल बाद प्रोटेक्शन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स एक्ट बना और NHRC की स्थापना हुई.
NHRC कैसे काम करता है?NHRC का एक अध्यक्ष या चेयरमैन होता है और 7 अन्य सदस्य. जिनकी नियुक्ति देश के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक समिति की सफ़ारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है. NHRC का चेयरमैन, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस या रिटायर्ड जस्टिस को बनाया जाता है. जबकि सुप्रीम कोर्ट के दो और रिटायर्ड जस्टिस के अलावा मानवाधिकार के मामलों के एक अनुभवी व्यक्ति और दूसरे राष्ट्रीय आयोगों के चेयरमैन इसके सदस्य बनाए जाते हैं.
अब बात NHRC के काम और शक्तियों की
- NHRC मूल रूप से खुद संज्ञान लेकर या किसी याचिका के आधार पर मानवाधिकार के उल्लंघन से जुड़ी शिकायतों की जांच कर सकता है.
- NHRC, मानवाधिकार के उल्लंघन के किसी आरोप से जुड़ी न्यायिक कार्रवाई में भी हस्तक्षेप कर सकता है.
- मानवाधिकार आयोग, जेल में कैदियों के रहने की स्थिति देखने के लिए जेल का दौरा कर सकता है और इस मामले में सिफारिश जारी कर सकता है.
- संविधान ने मानवाधिकार संरक्षण कानून के तहत किसी नागरिक को जो सुरक्षाएं प्रदान की हैं, उनकी समीक्षा कर सकता है और इससे जुड़ी सिफारिशें कर सकता है.
- NHRC, मानवाधिकार के क्षेत्र में रिसर्च करता है. समाज में मानवाधिकार की साक्षरता का प्रसार करने और जागरूकता बढ़ाने का काम करता है.
-NHRC, संविधान की भाषा या कानून के मुताबिक मानवाधिकार की रक्षा के मामले पर स्वतंत्र रुख रखते हुए सलाह दे सकता है.
NHRC की शक्तियों की बात करें तो, इसके पास सिविल कोर्ट की शक्तियां हैं. और ये किसी मामले में अंतरिम राहत दे सकता है. मानवाधिकार आयोग के पास किसी मामले में नुकसान की स्थिति में भरपाई की सिफारिश करने का अधिकार है. आयोग केंद्र और राज्य की सरकार से मानवाधिकार के उल्लंघन के किसी मामले में उचित कदम उठाने की सिफारिश कर सकता है. मोटा-माटी कहें तो मानवाधिकार आयोग के पास खुद में सिर्फ सिफारिशी शक्तियां हैं. उसे सजा देने का अधिकार नहीं है. माने आयोग किसी मामले में सीधे कोई एक्शन नहीं ले सकता, बस उसकी सिफारिश कर सकता है. NHRC के कामों और शक्तियों का दायरा भी सीमित है. इसे भी समझ लीजिए-
-NHRC, खुद मानवाधिकार के उल्लंघन करने पर किसी प्राइवेट पार्टी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता है.
-NHRC की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं हैं. माने ये सिर्फ सिफारिशें हो सकती हैं, इन्हें कोर्ट के आदेश की तरह मान ही लिया जाए ये जरूरी नहीं है.
-NHRC कोई सिफारिश या आदेश देता है तो उसे ना मानने वाले अधिकारियों या अथॉरिटी को NHRC कोई सजा नहीं दे सकता.
-सशस्त्र बलों में नौकरी कर रहे लोगों द्वारा मानवाधिकार के उल्लंघन के मामलों में भी NHRC के अधिकार सीमित हैं.
कुछ ऐसे भी मामलों की कैटेगरी हैं, जो NHRC के अधिकार क्षेत्र में नहीं आतीं. जैसे- NHRC, एक साल से ज्यादा पुराने मानवाधिकार के उल्लंघन के किसी मामले में कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है. गुमनाम, झूठे या मोटा-माटी कहें तो जिन मामलों में किसी पक्ष की पहचान साफ़ न हो, उन मामलों में, और किसी भी तरह की सेवा से जुड़े मामलों में भी NHRC को कार्रवाई का अधिकार नहीं है.
केस पर क्या असर पड़ेगा?NHRC की सिफारिशें और किसी मामले पर उसकी जांच के नतीजे गंभीरता से लिए जाते हैं. अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्या तब हुई, तब वो पुलिस की कस्टडी में थे. हालांकि पुलिस की कस्टडी में आरोपी की मौत कई और वजहों से भी होती आई है. देश भर से ऐसे मामले बड़ी तादात में सामने आते रहे हैं. कई बार आरोपी की मौत की वजह संदिग्ध भी होती है. इसी साल फरवरी के महीने में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस कस्टडी में हुई मौतों का आंकड़ा बताया था.
NHRC की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि साल 2017 से 31 मार्च 2022 तक पांच सालों में देशभर में पुलिस हिरासत में मौत के कुल 669 मामले दर्ज किए गए. नित्यानंद राय ने ये भी बताया कि इनमें से कुछ मामलों में मानवाधिकार अधिनियम के तहत आर्थिक राहत भी दी गई.
हालांकि, अतीक अहमद और अशरफ की हत्या के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई थी और न्यायिक जांच का आदेश दिया था. जिसके बाद एक न्यायिक आयोग का गठन किया है. ये आयोग दो महीने के भीतर जांच रिपोर्ट देगा. ऐसे निर्देश हैं. और इधर NHRC ने भी पुलिस से हत्याकांड की डिटेल्ड रिपोर्ट मांगी है. NHRC इस मामले में आगे क्या कदम उठा सकता है, ये उसी रिपोर्ट पर निर्भर है जो पुलिस उसे सौंपेगी.
वीडियो: अतीक और अशरफ की आख़िरी मेडिकल रिपोर्ट लल्लनटॉप के हाथ लगी, सारी स्थिति क्लीयर हो गई!

















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