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असम राइफल्स पर इल्ज़ाम लगाने वाले बीरेन सिंह उसका इतिहास नहीं जानते होंगे

असम राइफल्स एक नायाब फोर्स है. ये सेना, पुलिस और अर्धसैनिक बल - तीनों खांचों में फिट होने से इनकार करती है. लेकिन है तीनों के करीब. हां, इसकी सबसे पक्की दोस्ती फौज से ही है.

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मणिपुर पुलिस ने असम राइफल्स पर उग्रवादियों की मदद करने का आरोप लगाया है. (तस्वीरः इंडिया टूडे)

मॉनसून सत्र 2023 में मणिपुर के मुद्दे पर लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने मार्च 1966 में आइज़ॉल पर वायुसेना की कार्रवाई पर सवाल उठाए थे. हवाई हमले सही थे या गलत, इसपर अब नए सिरे से बहस चल पड़ी है. इस बहस में आप अलग-अलग निष्कर्ष तक पहुंच सकते हैं. लेकिन इसपर कोई विवाद नहीं है कि आइज़ॉल पर वायुसेना की कार्रवाई का तात्कालिक वजह क्या थी - शहर में स्थित असम राइफल्स का एक मुख्यालय मिज़ो नेशनल फ्रंट (MNF) के हथियारबंद लड़ाकों से घिर गया था. MNF के ‘ऑपरेशन जेरिको’ का सबसे बड़ा निशाना असम राइफल्स या AR ही थी.

ये फोर्स इन दिनों लगातार चर्चा में बनी हुई है. मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदाय के हथियारबंद लड़ाके एक दूसरे को मिटाने पर आमादा हैं, तो बीच में खड़ी है असम राइफल्स. वही असम राइफल्स, जिसके मणिपुर पुलिस से संबंध ऐसे खराब हुए कि विवाद के वीडियो वायरल होने लगे. मणिपुर पुलिस ने तो अगस्त के पहले हफ्ते में AR की एक टुकड़ी के खिलाफ FIR ही दर्ज कर दी. आरोप लगाया कि AR ने कुकी उग्रवादियों की ‘मदद’ की. इससे पहले सूबे के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह भी कुछ पोस्ट से AR को हटाने की वकालत कर चुके हैं. फिर हमारे सामने वो वीडियो भी हैं, जिनमें कुकी महिलाएं असम राइफल्स के एक अफसर के पैर पकड़कर रो रही हैं कि आपने हमारी जान बचाई है, हमें छोड़कर मत जाइए.

माने जो असम राइफल्स, 1966 में मिज़ो हिल्स पर कार्रवाई के केंद्र में थी, वही 2023 में मणिपुर के घटनाक्रम में भी एक प्रमुख किरदार है. ये लाज़मी भी है, क्योंकि पूर्वोत्तर में 188 सालों से सतत तैनात असम राइफल्स का ध्येय वाक्य ही है - ‘सेंटिनेल्स ऑफ द नॉर्थ ईस्ट.’ पूर्वोत्तर के प्रहरी. 

भारत में जितने तरह के सुरक्षा बल हैं, उनमें असम राइफल्स सबसे नायाब है. वो सेना है, नहीं भी है. अर्धसैनिक बल है, नहीं भी है. पुलिस है, नहीं भी है. ये फोर्स इन तीनों खाचों में बंधने से इनकार करती है. तो फिर क्या है असम राइफल्स? इसका गठन कब और क्यों हुआ? और ये पौने दो-सौ साल से भी ज़्यादा अरसे से पूर्वोत्तर में कौनसी लड़ाई लड़ रही है? आइए समझते हैं.

असम राइफल्स के 750 पूर्वज

बंगाल में स्थापित होने के बाद अंग्रेज़ असम की तरफ बढ़े. मैदानी इलाकों पर अपना नियंत्रित स्थापित कर, उन्होंने पहाड़ों की ढलानों पर चाय के बाग लगा दिए. इन इलाकों से जिन आदिवासियों को बेदखल किया गया था, वो अंग्रेज़ शासन व्यवस्था, चाय बागान और बस्तियों को निशाना बनाते रहते थे. इन्हीं की सुरक्षा के लिए 1835 में देश के सबसे पुराने अर्धसैनिक बल - असम राइफल्स का गठन हुआ. उस समय यह 750 सैनिकों का एक छोटा सा समूह था, जिसे "कछार लेवी" कहा जाता था.  

समय के साथ ‘कछार लेवी’ का नाम बदल कर ‘फ्रंटियर फोर्स’ कर दिया गया और असम-सीमा की सुरक्षा में लगा दिया गया. असम राइफल्स की वेबसाइट के अनुसार, साल 1870 में इसे ‘असम मिलिट्री पुलिस’ की लुशाई हिल्स, लखीमपुर और नागा हिल्स की तीन बटालियनों के साथ मिला दिया गया. प्रथम विश्व युद्ध में इस बल के 3000 जवान ब्रिटिश आर्मी की गोरखा रेजिमेंट के साथ यूरोप और मध्य-पूर्व एशिया में लड़ने के लिए भेजे गए. जवानों ने विरता दिखाई. ब्रिटिश आर्मी की राइफल रेजिमेंट्स के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़े. राइफल रेजिमेंट्स (इंफेंट्री;पैदल सेना) के साथ मिलकर लड़ने की वजह से अंग्रेजों ने साल 1917, में ‘फ्रंटियर फोर्स’ का नाम बदलकर 'असम राइफल्स' कर दिया गया. यह नाम सम्मान में बदला गया था. सम्मान वीरता का. इन जवानों ने प्रथम विश्वयुद्ध में 77 वीरता मेडल जीते थे. इन मेडल्स में सात इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट अवार्ड और 5 विशिष्ठ सेवा पदक थे. द्वितीय विश्व युद्ध में भी अंग्रेजों ने AR का प्रयोग किया. इस बार भी शौर्य और साहस की कहानियां लिखी गईं. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान असम राइफल्स को 48 वीरता पदक दिए गए.  

आजादी के बाद भी AR ने भारत की तरफ से सभी युद्धों में भाग लिया. ऐसा करने वाला AR एकमात्र पैरामिटिट्री फोर्स है. साल 1962 के भारत-चीन युद्ध से लेकर 1987 में श्रीलंका भेजी गई पीस कीपिंग फोर्स तक में असम राइफल्स की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. 1965 से इसका ऑपरेशनल कंट्रोल भारतीय सेना को दे दिया गया. AR के जवानों को दी जाने वाली ट्रेनिंग का दो-तिहाई हिस्सा युद्घ केंद्रित होता है. ऐसा इसलिए किया जाता है कि सेना की मदद करने के लिए सबसे पहले AR को आगे आना होता है.    

1960 में असम राइफल्स में 17 बटालियन थीं और आज ये संख्या बढ़कर 46 गई है. एक बटालिन में 800-1000 जवान हो सकते हैं.  साल 2021 में गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में दिए एक बयान में बताया था कि एडमिनिस्ट्रेटिव और ट्रेनिंग स्टाफ को छोड़कर असम राइफल्स में 63 हजार सैनिक हैं.    

सेना, अर्धसैनिक बल या पुलिस?

जब आप केंद्रीय गृहमंत्रालय की वेबसाइट पर जाते हैं, तो "सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स (CAPF)" के अंतर्गत पहला नाम आपको असम राइफल्स का ही मिलेगा. साथ में 6 और सुरक्षा बलों के नाम हैं - 

- सीमा सुरक्षा बल  (Border Security Force-BSF)
- केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (Central Industrial Security Force-CISF)
- केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (Central reserve Police Forces-CRPF) 
- भारत तिब्बत सीमा पुलिस (Indo-Tibetan Border Police-ITBP)
- राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (National Security Guard-NSG)
- सशस्त्र सीमा बल (Sashastra Seema Bal-SSB)

लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं है कि असम राइफल्स एक सशस्त्र पुलिस फोर्स भर है. सातों CAPF में सेना के सबसे करीब अगर कोई बल है, तो असम राइफल्स ही है. असम राइफल्स की ट्रेनिंग, हथियार और मिशन प्रोफाइल लगभग पूरी तरह सेना की इंफेंट्री रेजिमेंट्स से मेल खाती है. 

CAPF समूह में असम राइफल्स ही एक मात्र ऐसी फोर्स है, जिसपर दोहरा नियंत्रण (dual control structure) है. असम राइफल्स का प्रसाशनिक नियंत्रण केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास है जबकि ऑपरेशनल कंट्रोल भारतीय सेना के पास है, जो रक्षा मंत्रालय के अधीन है. इसका अर्थ है कि AR में सैलरी और इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए गृह मंत्रालय जिम्मेदार है और जवानों की तैनाती (अभियान सहित), ट्रांसफर-पोस्टिंग और डिपुटेशन भारतीय सेना के हाथों में है.  

असम राइफल्स के सभी सीनीयर पदों पर, माने बटालियन के कमांडेंट से लेकर महानिदेशक तक सेना के ही अधिकारी नियुक्त होते हैं. उसके सेक्टर मुख्यालयों का प्रबंधन भी सेना के अधिकारियों द्वारा किया जाता है और पूरी फोर्स की कमान सेना में लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी के पास होती है, जिसे डायरेक्टर जनरल, असम राइफल्स DGAR कहा जाता है. पूर्वोत्तर में स्थायी रूप से तैनात AR वो इकलौती CAPF है, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में नहीं है. DGAR बैठते हैं शिलॉन्ग में. 63 हज़ार सैनिकों वाली AR को आप सेना की एक कोर की तरह मान सकते हैं. 

सेना की पूर्वी कमान और असम राइफल्स के बीच बहुत करीबी तालमेल रहता है. इसे आप पूर्वोत्तर के पहाड़ों पर चलने वाले अभियानों से लेकर सूचनाओं की दुनिया तक देख सकते हैं. मणिपुर में मीरा पईबी ने असम राइफल्स का रास्ता रोका, तो दीमापुर स्थित सेना की 3 कोर (स्पियर कोर) ने असम राइफल्स का पक्ष लिया. जब मणिपुर पुलिस ने असम राइफल्स पर उग्रवादियों का पक्ष लेने का आरोप लगाया, तो एक बार फिर सेना की 3 कोर ने कहा कि असम राइफल्स की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए झूठे प्रयास किए जा रहे हैं. 

लेकिन सेना से इतनी करीबी होने के बावजूद AR पर केंद्रीय गृहमंत्रालय का नियंत्रण भी कम नहीं है. फोर्स में भर्ती, पदोन्नति, सेवानिवृति, भत्ते और पेंशन अन्य अर्धसैनिक बलों की तरह होते है.   

असम राइफल्स को लेकर खींचतान

गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय दोनों ही असम राइफल्स पर पूरा कंट्रोल चाहते हैं. सेना के भीतर मत है कि जब असम राइफल्स और सेना की इंफ्रेंट्री बटालियनों में कोई फर्क है ही नहीं, तो फिर उसे पूरी तरह सेना में क्यों नहीं मिला दिया जाता. सेना में सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले बेहतर फायदों को देखते हुए असम राइफल्स के भीतर भी एक बड़ा धड़ा सेना से मिलने का इच्छुक है. ये बात AR के सेवानिवृत्त अधिकारी-जवान कई बार कह चुके हैं. 

लेकिन गृह मंत्रालय इतनी ताकतवर फोर्स को अपने हाथ से जाने देने को तैयार नहीं है. साल 2013 में गृह मंत्रालय ने असम राइफल्स की नियंत्रण मांगा था और प्रस्ताव दिया था कि इसे BSF से मिला दिया जाए. लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया. 2019 में गृह मंत्री बनने के बाद अमित शाह ने प्रस्ताव दिया कि असम राइफल्स को ITBP में मिला देना चाहिए. संयोग से ITBP भी एक ऐसी फोर्स है, जिसपर सेना/रक्षा मंत्रालय अपने नियंत्रण की वकालत करते हैं. 

तो खींचतान जारी है. और असम राइफ्लस पर नियंत्रण का मसला गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के बीच अटका हुआ है.

पूर्वोत्तर के प्रहरी

असम राइफल्स का मुख्य कार्यक्षेत्र उत्तर-पूर्वी भारत है. माने इस पूरी फोर्स को कभी पूर्वोत्तर से उठाकर भारत के किसी दूसरे इलाके में नहीं भेजा गया, जैसा सेना की टुकड़ियों/इकाइयों के साथ होता है. इसके चलते फोर्स के पास इस इलाके में काम करने का लंबा अनुभव है. फिर इसके जवान भी पूर्वोत्तर से ही आते हैं. तो भाषा और परंपरा के स्तर पर असम राइफल्स का संवाद स्थानीय लोगों के साथ एक अलहदा स्तर पर है. 

लेकिन जरूरत पड़ने पर असम राइफल्स को पूर्वोत्तर के बाहर भी तैनात किया जाता है. मिसाल के लिए जम्मू-कश्मीर में चलने वाले आतंकरोधी अभियान. असम राइफल्स एक्ट-2006 की धारा 4(1) के अनुसार असम राइफल्स भारत की सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने, किसी निश्चित क्षेत्र में उग्रवादियों के खिलाफ अभियान चलाने, नागरिक क्षेत्रों में कानून व्यवस्था बनाने हेतु सिविल अधिकारियों की सहायता करने और सुरक्षा से जुड़े अन्य मामलों में भूमिका निभाती है.  

असम राइफल्स 1,640  किलोमीटर लंबी भारत-म्यांमार सीमा की रक्षा करती है. इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश में भारत-चीन सीमा पर कई संवेदनशील इलाकों की निगरानी असम राइफल्स के जिम्मे है. सेना को ऑपरेशनल और लॉजिस्टिक सपोर्ट उपलब्ध कराने में भी AR मदद करती है. AR की संरचना और ट्रेनिंग सेना की तरह है. युद्ध के दौरान सेना जब दुश्मन देश की सीमा पर प्रवेश करती है तो पीछे असम राइफल्स ही सेना की जगह मोर्चा लेती है. 

भारत के अन्य इलाकों में भी असम राइफल्स विशेष मौकों पर सेवा देती है. जब कहीं अंतिरिक सुरक्षा या शांति व्यावस्था बहाली के गंभीर अभियान चलाया जाते हैं. स्थिति अन्य अर्धसैनिक बलों के नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तब केंद्र सरकार निर्णायक हस्तक्षेप करते हुए असम राइफल्स को तैनात करती है. 

AR  सबसे पुरानी पैरा मिलिट्री फोर्स है. ये आजादी से पहले और आजादी के बाद सबसे अधिक वीरता मेडल जीतने वाला एक मात्र अर्ध सैनिक बल है. आजादी के बाद इसके हिस्से चार अशोक चक्र,  33 कीर्ति चक्र, पांच वीर चक्र, 147 शौर्य चक्र और 400 से अधिक सेना पदक आए हैं. ये वीरता पुरस्कार AR के जवानों के शौर्य और साहस की गवाही देते हैं. 

असम राइल्स बनाम मणिपुर की माएं

हाल में जैसे AR का नाम विवाद में आया है. वैसे ही कई मौकों पर छोटे-मोटे विवाद होते रहे हैं. लेकिन साल 2004 में एक बड़े विवाद में AR का नाम आया. ये मानवाधिकार उल्लंघन का मामला था. असम राइफ्लस का जिक्र जब होता है, थांगजम मनोरमा का नाम आना तय है. एक तस्वीर भी जहन में उभरती है. कांगला फोर्ट के सामने निर्वस्त्र प्रोटेस्ट करती मणिपुर की मांओं की तस्वीर.  11 जुलाई साल 2004. असम राइफल्स-17, 32 साल की थांगजम मनोरमा को घर से ले गई और अगले दिन उसकी लाश मिली. मनोरमा का घर था, इंफाल ईस्ट के लाइफारोक मारिंग गांव में. मनोरमा के साथ रेप हुआ था. उसके शरीर में 17 गोलियां दागी गईं थी. उसके जननांग क्षत-विक्षत थे. इस घटना के लिए सेना की तरफ से बयान आया कि मनोरमा उग्रवादी समूह पीपल्स नेशनल आर्मी (PLA) की सदस्य थी. उसने कई बम ब्लास्ट किए थे. उसके बम हमलों में सेना के जवानों की भी जान गई थी. दावा किया गया कि मनोरमा 1995 से ही PLA की सदस्य थी और इम्प्रोवाइज़्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IEDs) बनाने में माहिर थी. सेना का कहना था कि उन्हें 10 जुलाई को सूचना मिली कि मनोरमा घर पर है. सूचना के आधार पर असम राइफल्स ने कॉर्डन लगाया और 3 बजे सुबह मनोरमा गिरफ्तार कर ली गई. कबीर 5ः30 बजे मनोरमा ने भागने की कोशिश की और फायरिंग में मारी गई. मनोरमा के घर वालों की तरफ से कुछ और बयान आया. उन्होंने असम राइफ्लस पर मार-पीट करने और गैरकानूनी गिरफ्तारी करने का आरोप लगाया. 

मनरोमा की मौत के बाद दुनिया भर में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस घटना की निंदा की.मणिपुर के लोग आंदोलित हो उठे. 15 जुलाई 2004 को 12 इमाओं (यानी मणिपुरी मांओं) ने कांगला फोर्ट (असम राइफल्स कैम्प) के सामने निर्वस्त्र होकर प्रदर्शन किया. उनके हाथ में एक बैनर था, जिसमें लिखा था, “Indian Army Rape Us”. ये तस्वीर आग की तरह फैल गई. पूरी दुनिया निःशब्द थी ये तस्वीर देखकर. देश-दुनिया में मणिपुर के इस मामले के खिलाफ आंदोलन प्रदर्शन हुए. मणिपुर में हिंसक विरोध भी हुए. दफ्तरों में तोड़-फोड़, आगजनी हुई. इस घटना के साथ-साथ आफस्पा (Armed Forces (Special Powers) Act-1958) हटाए जाने की मांग ने जोर पकड़ लिया. ये घटना असम राइफल्स के इतिहास में एक दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय की तरह जुड़ गई. जब भी असम राइफ्लस की कहानी कही जाती है. इस घटना का जिक्र आ ही जाता है. 

  

काम करने के नियम-कायदे क्या हैं?

याद कीजिए, हमने असम राइफल्स को सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस - तीनों के करीब बताया था. अब पुलिस वाले रोल पर आते हैं. AR को असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैंड और मिजोरम के सीमावर्ती जिलों में बिना मजिस्ट्रेट के ऑर्डर के किसी को भी गिरफ्तार करने और बिना वारंट के तलाशी लेने का अधिकार है. द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में गृह मंत्रालय के एक नोटिस के आधार असम राइफल्स को यह विशेषाधिकार मिला है. इससे पहले असम राइफल्स बिना वारेंट की गिरफ्तारी और सर्च केवल आफस्पा (Armed Forces (Special Powers) Act) वाले राज्य में ही कर सकती थी.

असम राइफल्स अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग सीआरपीसी की धारा 41 (1),  47, 48, 49, 51, 53, 54, 149, 150, 151 और 152 के तहत करती है. सीआरपीसी की धारा 41 में मजिस्ट्रेट के ऑडर या वारेंट के बिना गिरफ्तारी के संबंध में नियम हैं. धारा 47, गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति द्वारा प्रवेश किए गए स्थान की तलाशी की शक्ति देता है. वहीं धारा 48 कहती है कि पुलिस अधिकारी, उस व्यक्ति को, जिसे वह गिरफ्तार करने के लिए अधिकृत है, भारत के किसी भी कोने से गिरफ्तार कर सकता है. धारा 49 के अनुसार,  गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के साथ उतनी ही कठोरता बरती जानी चाहिए जितना उसे भागने से रोकने के लिए पर्याप्त हो.  

                                                                                                         (ये स्टोरी हमारे साथी अनुराग अनंत ने की है)

वीडियो: मणिपुर हिंसा में मणिपुर पुलिस ने असम राइफल्स के खिलाफ क्यों दर्ज की FIR?