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सोशल मीडिया पर मैसेज फॉरवर्ड करने से पहले सोच लें, नहीं तो जेल हो जाएगी

सोशल मीडिया यूजर्स को सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'अपनी जिम्मेदारी समझें'

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"अगर आपत्तिजनक मैसेज हमारे अकाउंट से भेजा गया है तो उसके जिम्मेदार भी हम ही हैं"- सुप्रीम कोर्ट

वॉट्सऐप, फेसबुक या फिर इंस्टाग्राम तो आप भी खूब चलाते होंगे. कह तो ये भी सकते हैं कि अब हम इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के आदी हो गए हैं. सुबह आंख ही वॉट्सऐप मैसेज और इंस्टा पोस्ट देखते हुए खुलती है. फिर हम मैसेज देखकर अपना 'फर्ज' समझते हुए उसे दूसरों को भी फॉर्वर्ड करते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि सूचनाओं के जबरिआ आदान-प्रदान की इस दौड़ में आप बुरा फंस सकते हैं. नहीं सोचा तो ये इस केस पर गौर फरमाइए.

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"मैं उस वक्त अपनी आंख में आईड्रॉप डाल रहा था और अचानक से सेंट बटन दब गया. और मैसेज फॉर्वड हो गया."

ये दलील दी गई देश की सर्वोच्च अदालत में. जरा सोचिए आप. महिलाओं के खिलाफ अश्लील पोस्ट शेयर करने के बाद कोई आपसे इस तरह की दलील दे तो आप क्या कहेंगे. सुप्रीम कोर्ट में कुछ ऐसा ही हुआ. लेकिन उच्चतम अदालत ने इस मामले की सुनवाई के दौरान लकीर खींच दी है. अब हम सोशल मीडिया पर भड़काऊ या आपत्तिजनक मैसेज फॉर्वर्ड करके ये कहते हुए पल्ला नहीं झाड़ सकते कि 'गलती से चला हो गया था.'  पहले समझ लेते हैं कि मामला क्या था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की ऐतिहासिक टिप्पणी पर आएंगे.

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ये मामला जुड़ा है 2018 का. 19 अप्रैल, 2018  को एस वेंकटरमन शेखर ने अपने फेसबुक अकाउंट से महिला पत्रकारों के खिलाफ एक आपत्तिजनक पोस्ट शेयर की. शेखर के बारे में आपको संक्षिप्त में बता देते हैं. तमिलनाडु के पूर्व विधायक हैं. बीजेपी के नेता हैं. इससे पहले जयललिता की पार्टी AIADMK में थे. AIADMK में रहते हुए ही वो विधायक बने. उनकी एक और पहचान है. शेखर कॉलीवुड में उनकी एक अलग पहचान हैं. एक्टर, डायरेक्टर, स्क्रीनप्ले राइटर, प्ले राइटर. तमिल फिल्म इंडस्ट्री में उन्होंने अच्छा खास काम किया है.

तो शेखर के खिलाफ 2018 में केस दर्ज हुआ. इस मामले में उनके खिलाफ तमिलनाडु में काफी प्रदर्शन भी हुआ. और वो दोषी करार दिए गए. इसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा. इस साल 15 जुलाई को मद्रास हाईकोर्ट शेखर की राहत मांगने वाली अर्जी खारिज कर दी. तब हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की थी. इस पर हमें ध्यान देना चाहिए. कोर्ट ने कहा-

'हम एक ऐसे युग में रहते हैं जहां सोशल मीडिया ने हर व्यक्ति के जीवन पर कब्जा कर लिया है. हम एक वर्चुअल इन्फॉर्मेशन डायरिया से पीड़ित हैं. जहां हर किसी पर मैसेजेज़ की बौछार हो रही है. और यही वजह है कि हर किसी को संदेश भेजते समय सामाजिक जिम्मेदारी निभानी चाहिए.'

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ये टिप्पणी सिर्फ एस वेंकटरमन शेखर के लिए नहीं थी. ये टिप्पणी हमारे-आपके लिए भी है. अपने घर परिवार, यार दोस्तों के वॉट्सऐप ग्रुप पर कोई भी मैसेज आता है. जो हमें एंटरटेनिंग लगता है. हम उसको बिना कुछ सोचे-समझें उसे दूसरे ग्रुप्स पर फॉर्वर्ड कर देते हैं. फेसबुक और इंस्टाग्राम पर भी यही किया जा रहा है. यहां दो-तीन बातें अहम हैं. कुछ भी फॉर्वर्ड करने से पहले हमें उसकी सत्यता जांच लेनी चाहिए.

हाल ही में आपने एक मामला देखा होगा जब एक तस्वीर खूब वायरल की गई. कहा गया कि 15 अगस्त को लाल किले पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ जब गृहमंत्री से मिले तो अमित शाह CJI से दुआ-सलाम किए बिना ही आगे बढ़ गए. जबिक CJI तो अमित शाह को नमस्ते कर रहे थे. इस मामले की एक तस्वीर खूब शेयर की गई. जो कि बीच से ली गई थी. जब उस दौरान का पूरा वीडियो सामने आया तब पता चला कि ऐसा तो कुछ हुआ ही नहीं था. अमित शाह ने बाकायदा CJI से मुलाकात की थी. और जो तस्वीर वायरल की जा रही थी. वो मुलाकात के बाद की थी.

ये एकमात्र उदाहरण नहीं था. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और गांधी के बारे में ऐसी अनगिनत अफवाहें उड़ाई जा चुकी हैं. जिनमें हम और सच मान लेते हैं. बगैर किसी फैक्ट चेक के.

लेकिन सोशल मीडिया की बेवकूफियां सिर्फ इतनी भर नहीं हैं. महिलाओं के खिलाफ, विकलांगों के खिलाफ, जाति विशेष के खिलाफ और धर्म विशेष के खिलाफ हम जाने-अनजाने ऐसी पोस्ट शेयर करते हैं. इनमें भड़काऊ बयान भी शामिल होते हैं. जो न सिर्फ सामाजिक तौर पर गलत है, कानूनी तौर पर भी अपराध है. और ऐसा करने वाले सिर्फ कम पढ़े-लिखे या कम उम्र के बच्चे नहीं हैं, ऐसा वो कर रहे हैं जो वृद्धावस्था तक पहुंच गए हैं. जो हर छोटी बात पर अपने बच्चों और नाती-पोतों को ज्ञान दे रहे होते हैं.  

एस. वी. शेखर ने भी कुछ ऐसा ही किया था. उन्होंने महिलाओं के खिलाफ पोस्ट शेयर कर दी. जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ गया. सुप्रीम कोर्ट आज जब इस मामले की सुनवाई हुई तो कोर्ट ने आरोपी शेखर को जमकर लताड़ लगाई.

सुप्रीम कोर्ट में शेखर की आइड्रॉप और गलती से सेंट बटन दबने वाली दलील भी किसी काम न आई. जस्टिस पीके मिश्रा और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने सुनवाई के दौरान शेखर से पूछा कि जब वो आंख में आइड्रॉप डाल रहे थे तो सोशल मीडिया पोस्ट को क्यों फॉर्वर्ड कर रहे थे. इसपर उनके वकील ने सफाई दी कि सोशल मीडिया अब हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गया है. जिसे इग्नोर नहीं किया जा सकता.

इस पर जस्टिस गवई में अपना उदाहरण देते हुए कहा कि- 'हम तो आसानी से सोशल मीडिया के बिना जी रहे हैं. हमें तो नहीं लगता कि सोशल मीडिया हमारे जीवन का अहम हिस्सा है.'

कोर्ट ने वकील से शेखर की उम्र भी पूछीं. वकील ने बताया कि उनके मुवक्किल की उम्र 72 साल है. तो कोर्ट ने कहा कि क्या उन्हें इस उम्र में इस तरह के काम करने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के फैसले को बकरार रखते हुए कहा कि, 

"अगर हम सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं तो ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए."

शेखर की तरफ से दलील दी गई थी उन्हें किसी दूसरे शख्स से मैसेज मिला था. जिसे उन्होंने बिना पढ़े फॉर्वर्ड कर दिया. बाद में उस मैसेज को डिलीट कर दिया और माफी भी मांग ली.

पर सर्वोच्च अदालत ने आज ये साफ कर दिया कि कोई भी शख्स ये दलील देकर नहीं बच सकता कि उसने सोशल मीडिया पर मैसेज बिना पढ़े फॉर्वर्ड कर दिया. अगर आपत्तिजनक मैसेज हमारे अकाउंट से भेजा गया है तो उसके जिम्मेदार भी हम ही हैं.

सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी आपने सुनी ही. लेकिन अफवाहें फैलाने और भड़काऊ बयान तो इंटरनेट के जमाने के पहले से दिए जा रहे हैं. जैसा हरियाणा के नूंह में देखने को मिला. न्यूज़ एजेंसी PTI की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, हरियाणा के पलवल में - 13 अगस्त को - 'सर्व हिंदू समाज महापंचायत' में भड़काऊ भाषण देने के आरोप में अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ FIR दर्ज की गई है. प्रोबेशनर सब-इंस्पेक्टर सचिन ने शिकायत दायर की, कि पोंडरी गांव में सभा के दौरान कुछ लोगों ने मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ भड़काऊ भाषण दिया था. कथित तौर पर कार्यक्रम में कुछ हिंदू नेताओं ने आह्वान किया कि "मुस्लिम-बहुल ज़िले" नूंह में आत्मरक्षा के लिए हिंदुओं को हथियार लाइसेंस लेने में छूट दी जानी चाहिए. शिकायत के बाद, हथीन पुलिस स्टेशन में  IPC की धारा 153-ए (समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 505 (सार्वजनिक उपद्रव फैलाने वाले बयान) सहित अन्य संबंधित प्रावधानों के तहत FIR दर्ज की गई है.

नूंह और भड़काऊ भाषण से जुड़ी एक ख़बर और है. बीते रोज़ 101 महिला वकीलों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ से अपील की है कि वो नूंह और हरियाणा के बाक़ी हिंसा प्रभावित इलाक़ों में सांप्रदायिक नफ़रत के ख़िलाफ़ क़दम उठाएं. दिल्ली हाई कोर्ट के महिला फोरम ने हरियाणा सरकार से भी अपील की, कि वो नफ़रती भाषण को रोकने और इसे अंजाम देने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करे.

वापस ख़बर पर. हिंदू संगठनों द्वारा आयोजित इस 'महापंचायत' ने 28 अगस्त को नूंह में विश्व हिंदू परिषद की ब्रज मंडल यात्रा को फिर से शुरू करने की बात भी कही है. यह वही यात्रा है, जिसके बाद - बीते महीने - सांप्रदायिक हिंसा हुई थी. पंचायत की और कई मांगें हैं. मसलन, 31 जुलाई को नूंह में VHP यात्रा पर हुए हमले की NIA जांच हो और नूंह को गोहत्या-मुक्त ज़िला घोषित किया जाए.

एक तरफ़ ये मांगें हैं, दूसरी तरफ़ पुलिस को अलग ही पिक्चर पता चली. दर्शक जानते हैं कि कथित गोरक्षक और हिंदू नेता बिट्टू बजरंगी को 15 अगस्त को गिरफ़्तार किया गया था और वो अभी पुलिस कस्डटी में है. नूंह के ASP ऊषा कुंडू ने बिट्टू और उसके साथियों के ख़िलाफ़ FIR दर्ज की है. FIR में कहा गया है कि सख़्त निर्देश थे कि यात्रा में कोई हथियार नहीं ले जाएगा. बावजूद इसके, बिट्टू बजरंगी और लगभग 20 और लोगों ने न केवल तलवारें लहराईं, त्रिशूल लहराए. बल्कि जब पुलिस ने उनसे हथियार छीने, तो उसे वापस छीनने की कोशिश भी की. FIR के मुताबिक़, ऊषा कुंडू ने बताया है कि दोपहर 12.30 बजे के आसपास, वो नूंह में नलहर शिव मंदिर से लगभग 300 मीटर की दूरी पर थीं. उन्होंने बजरंगी के साथ 15-20 लोगों को देखा. हाथ में त्रिशूल और तलवार लिए मंदिर की ओर जा रहे थे. जब पुलिस ने उन लोगों के हथियार ज़ब्त किए, तो "बजरंगी गैंग" ने पुलिस के ख़िलाफ़ नारे लगाने शुरू कर दिए. कुछ कर्मियों के साथ धक्कामुक्की भी की. कुछ देर बाद बिट्टू बजरंगी और उसके सहयोगियों ने पुलिस वाहन का पिछला दरवाज़ा खोलकर जबरन हथियार निकाल लिए.

FIR में घातक हथियारों से लैस होकर दंगा करने, ग़ैर-कानूनी सभा करने, लोक सेवकों को उनका काम करने से रोकने के लिए चोट पहुंचाने, लोक सेवकों को रोकने के लिए हमला करने के चार्जेज़ लगाए हैं. Arms Act के संबंधित प्रावधान भी लगाए गए हैं.

ADR की एक रिपोर्ट आई है. ADR क्या है?  Association for Democratic Reforms. ये एक ऐसी संस्था है जो देश के सांसदों और विधायकों की आर्थिक और आपराधिक गतिविधियों पर रिपोर्ट पेश करती है. राज्यसभा सांसदों पर ADR और नेशनल इलेक्शन वॉच ने एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में संसद के उच्च सदन के 225 सांसदों का ब्योरा है.

रिपोर्ट के मुताबिक राज्यसभा में कुल 17 सांसद ऐसे हैं जिनकी संपत्ति 100 करोड़ से ज्यादा है. इनमें सबसे ज्यादा सांसद आंध्र प्रदेश के हैं. यहां के 5 सांसद अरबपति हैं. जबकि 3-3 सांसद तेलंगाना और महाराष्ट्र के हैं.

तेलंगान से 7 राज्यसभा सांसद आते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक इन सातों की संपत्ति अगर जोड़ दी जाए तो 5,596 करोड़ रुपये बनती हैं. जबकि आंध्र के 11 राज्यसभा सांसदों की कुल संपत्ति 3,823 करोड़ रुपये है. इस मामले में यूपी वाले थोड़े गरीब नज़र आते हैं. यूपी के 30 राज्यसभा MP की कुल संपत्ति  1,941 करोड़ रुपये है.

इसके अलावा राज्यसभा के  75 सांसदों ने आपराधिक रिकॉर्ड भी सार्वजनिक किया है. रिपोर्ट के मुताबिक 41 सांसद ऐसे हैं जिन पर गंभीर धाराओं में आपराधिक मामले दर्ज हैं. जबकि 2 सांसद ऐसे हैं जिन पर मर्डर केस हैं. 4 सांसद ऐसे भी हैं जिन पर महिलाओं अपराध से जुड़े मामले दर्ज हैं. जबकि कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल पर रेप का मामला दर्ज है.

पार्टियों के आधार पर बात करें तो राज्यसभा में बीजेपी के 85 सांसदों में से 23 सांसदों ने बताया है कि उनपर आपराधिक मुकदमें दर्ज हैं. जबकि कांग्रेस के 30 में से 12 सांसदों पर केस दर्ज हैं.

सोशल मीडिया पर हमारा गैर जिम्मेदाराना रवैया, भड़काऊ बयान, नूंह हिंसा, और ADR की रिपोर्ट आपने देख ली. आप कहेंगे भइया लल्लनटॉप क्या सब कुछ ख़राब ही हो रहा है देश में? इसीलिए जाते-जाते आपको एक अच्छी ख़बर भी सुना देते हैं.

आज केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और IT मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बेंगलुरु के कैम्ब्रिज लेआउट में स्थित भारत के पहले 3डी-प्रिंटेड पोस्ट-ऑफ़िस का उद्घाटन किया. पोस्ट-ऑफ़िस का कंस्ट्रक्शन केवल 43 दिनों में पूरा किया गया है. यहां जो 3-डी हम कह रहे हैं, उसका मतलब ये नहीं कि अब आपकी चिट्ठियां 3D में जाएंगी. वो तो कोई भी चिट्ठी होती ही है. 3D प्रिंटिंग तकनीक से बनकर तैयार हुआ ये पहला डाकघर है. इसमें एक रोबॉटिक प्रिंटर डिज़ाइन के हिसाब से कंक्रीट की परत-दर-परत जमा करता है और ऐसे ही जिस बिल्डिंग को पारंपरिक तरीक़े से बनाने में लगभग छह से आठ महीने लग जाते, डेढ़ महीने में बन कर तैयार हो गई.

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