यशवंत वर्मा मामले (Yashwant Verma Case) में जांच पूरी हो गई है. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की बनाई कमिटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. अब देखना है कि सीजेआई, यशवंत वर्मा पर क्या फैसला लेते हैं? जांच पैनल ने अपनी इन्वेस्टिगेशन से जो निष्कर्ष निकाले हैं, उसे अभी गोपनीय रखा गया है. इसमें केस से जुड़ी हर जानकारी दर्ज है. 14-15 मार्च की उस घटना के बारे में भी विस्तार से बताया गया है, जब वर्मा के घर आग लगी थी और फायर ब्रिगेड पहुंची थी. रिपोर्ट में घटना की पूरी क्रोनोलॉजी भी समझाई गई है.
जस्टिस यशवंत वर्मा का क्या होगा? जांच टीम ने सौंपी फाइनल रिपोर्ट, गेंद CJI के पाले में
जस्टिस यशवंत वर्मा कैश कांड की जांच पूरी हो गई है. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की बनाई जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट उन्हें सौंप दी है. अब चीफ जस्टिस इस पर फैसला लेंगे कि उनका क्या करना है?

इंडिया टुडे की रिपोर्टर नलिनी शर्मा के अनुसार, रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि आग लगने के दौरान उनके घर पर कौन-कौन मौजूद था. जस्टिस वर्मा, उनके सभी कर्मचारियों, फायर ब्रिगेड के अधिकारियों और मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों के भी बयान रिपोर्ट में हैं. दिल्ली फायर ब्रिगेड के प्रमुख और हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार भी आग लगने के बाद मौके पर पहुंचे थे. जांच कमिटी ने उनके भी बयान दर्ज किए हैं. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के बनाए आंतरिक जांच पैनल ने मामले में जो सबूत इकट्ठा किए हैं, उनमें जले हुए नोटों की तस्वीर, मौके से जुटाए गए सबूतों की फॉरेंसिक एनालिसिस, वर्मा के आवास की वीडियो फुटेज आदि शामिल हैं. इंडिया टुडे के सूत्रों ने बताया कि रिपोर्ट पूरी तरह से तथ्य-खोज जांच पर आधारित है. भविष्य की कार्रवाई के बारे में अंतिम फैसला सीजेआई द्वारा लिया जाएगा.
जस्टिस वर्मा का क्या होगा?अब सवाल है कि वर्मा पर क्या-क्या कार्रवाई की जा सकती है? इंडिया टुडे के रिपोर्टर संजय शर्मा के अनुसार, सीजेआई के सामने मोटे तौर पर तीन विकल्प हैं. जस्टिस वर्मा का तबादला तो हो चुका है. तीन अलग-अलग हाई कोर्ट के 3 जजों की इन-हाउस समिति की रिपोर्ट आ चुकी है. ऐसे में पहले विकल्प के तौर पर अब अगला सख्त कदम जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देने के लिए कहना भी हो सकता है. एक और विकल्प है कि अगर रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को क्लीन चिट दी गई है तो सीजेआई उसे भी मान्यता दे सकते हैं.
हालांकि सीजेआई पर रिपोर्ट को मानने की कोई बाध्यता नहीं है. तीसरा विकल्प महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की है. ये उस सूरत में होगा जब जस्टिस वर्मा इस्तीफा देने से इनकार कर दें. वैसी स्थिति में सीजेआई को निर्णय लेना होगा कि वे राष्ट्रपति को लिखें कि आरोपी जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जाए. इसके बाद राष्ट्रपति के आदेश पर केंद्र सरकार प्रक्रिया को आगे बढ़ाती है.
हालांकि इतिहास गवाह है कि जब तक पानी सिर से ऊपर नहीं जाता, तब तक आरोपी जज इस्तीफा नहीं देते. महाभियोग की तैयारी भी कई आरोपी जजों के खिलाफ हुई, लेकिन सब ने ऐन वक्त पर इस्तीफा दे दिया. आज तक किसी भी आरोपी जज को महाभियोग के जरिए हटाया नहीं गया है.
क्या था मामलाबता दें कि 14 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित आवास पर आग लग गई थी. मौके पर पहुंचे दमकलकर्मियों को कथित तौर पर एक स्टोररूम में काफी मात्रा में जली हुई नकदी मिली. जले हुए नोटों के वीडियो ऑनलाइन सामने आए, जिसके बाद वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित करने की सिफारिश की. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ट्रांसफर एक प्रशासनिक प्रक्रिया थी और जांच से इसका कोई संबंध नहीं था. ट्रांसफर के समय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया गया कि वे वर्मा को कोई न्यायिक कार्य न सौंपें.
सीजेआई संजीव खन्ना ने 22 मार्च को आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति के गठन के साथ-साथ आंतरिक जांच शुरू की थी. इस समिति में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थीं.
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