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'लुबना को बुरके पर जवाब कट्टरपंथियों के रिएक्शन से मिलेगा'

लुबना गजल की बुरके के खिलाफ फेसबुक पोस्ट पर आपने दोनों तरफ के रिएक्शन पढ़े. पक्ष और विपक्ष के. ये तीसरा पक्ष है.

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Source: Reuters
फेसबुक पर बुरका वार चल रहा है. लुबना गजल की एक पोस्ट से निकल कर बात बहुत आगे बढ़ चुकी है. सबके अपने तर्क हैं. लुबना के साथ खड़े होने वालों ने इसमें औरत की आजादी देखी है. और उसका कॉन्फिडेंस देखा है. उसके विरोध में लिखने वालों को धर्म की हानि दिख रही है. दम तोड़ता कल्चर दिख रहा है. फेसबुक पर ही उसकी प्रतिक्रिया में लिखा है शायक आलोक ने भी. इनका नजरिया थोड़ा अलग है. शायद बीच का सा रास्ता निकालता हुआ. लल्लन को लगा कि उस तरह से भी इस लड़ाई को देखना चाहिए. तो आलोक की वह पोस्ट यहां पढ़ ली जाए.
सादिया हसन (कविता फेम) बुरका न पहनती थी. किन्तु उसकी सलवार समीज भी कुछ अलग तरीके से सिली होती थी (समीना भी उसी के मोहल्ले की थी और हमारे ही साथ पढ़ती थी लेकिन उसके सलवार समीजों में यही विशिष्टता नहीं दिखी मुझे) .. कुछ ऐसा, जैसे समीज अनारकली बनते बनते लंबाई में कहीं ठहर गई हो. कुछ ऐसा कि सलवार न चूड़ीदार रह सकी न पटियाला बन सकी. एक दिन सादिया बुरका पहन आई तो मुझे बहुत सुंदर लगी. बड़े कायदे से सिला गया होगा उस बुरके को. ऊपर से गहरा हरा और दो फांकों में बंटे सामने के हिस्से में भीतर से छलकता नारंगी. ब्राउन कसीदे का सुंदर काम. गले पर - हाथों पर. क्लास खत्म हुई तो करीब हुआ उसके और कहा गजब मियाइन लग रही हो मुटियार. मुंह बनाया उसने. मियां, तरस तो जा रहे होगे कि हाय यह इतनी सुंदर ड्रेस तुम्हें मिल जाती तो पहन लेते. हम तो वह काला वाला पहनेंगे और फिर तुम्हारे साथ सुजाता में सिनेमा देखने भी जा सकते हैं. छी .. वह काला भूत !.. वह तो हमारी दादी भी नहीं पहनती. पर्दादारी भी हो तो सलीके से हो. मैंने सादिया के बुरके के सलीके पर गौर किया. सर खुला था सामने से और पीछे के सर से गुजरता कोई अर्धपारदर्शी दुपट्टा एक कंधे से बेतरतीबी से झूलता हुआ दूसरे कंधे की ओर. उसके कानों में सोने की बाली थी. जुल्फ का एक टुकड़ा कान पर नीचे उतरता गाल को छूता हुआ जिसके बारे में मेरा अनुमान यह कि हवा चल रही होती तो बोगेनबेलिया की टहनियों सा लचकता वह. ****** फ्रांस ने बुरके पर प्रतिबंध लगाया तो मुसलमान औरतों ने उसके विरुद्ध जुलूस निकाला. संवाद यह कि हम तय करेंगे कि हमें क्या पहनना क्या नहीं. तसलीमा नसरीन ने प्रतिबंध के समर्थन में अपने फ्रांस के आवास से अपनी एक खुली तस्वीर जारी की जिसमें उन्होंने हॉट पैंट और स्लीवलेस टीशर्ट पहन रखी थी. शार्ली आब्दो ने कार्टून जारी किया जिसमें एक नग्न स्त्री किरदार दौड़ रही है और उसके asshole के पास एक बुरका बना है .. कार्टून पर संवाद लिखा हुआ था कि ''हाँ तुम बुरका पहन सकती हो लेकिन वहां.'' .. बाद में पैगंबर के नाम पर शार्ली आब्दो पर हमला हुआ और हत्याएं हुईं तो दुनिया भर के कथित प्रगतिशील मुसलमान शार्ली के पक्ष में खड़े दिखे. मैंने हमले की निंदा की लेकिन मैंने कहा कि शार्ली का संवाद का तरीका कई मौकों पर गलत रहा है. पैगंबर पर ही बने कार्टून संवादसंकेत से अधिक फूहड़ और अराजकतावादी थे. मैं अकेला था तब जब इस तरह से देख रहा था और तब नोम चोमस्की का आलेख छपा. चोमस्की ने लगभग इसी दृष्टिकोण से पड़ताल की थी. ****** बुरके पर फेसबुक की लुबना गजल की प्रतिक्रिया और लुबना गजल पर फेसबुक के कट्टरपंथियों की प्रतिक्रिया संघर्षण की प्रक्रिया में दो-चार है. जवाब इसी संघर्षण से निकल कर सामने आएगा. जवाब यह होगा कि एक मुसलमान लड़की खुद यह निर्णय करने की स्थिति में हो कि उसे बुरका पहनना है या नहीं पहनना है. पहनना या त्यागना विमर्श नहीं है. विमर्श है निर्णय करने की क्षमता और स्थिति. पढ़ो लुबना गजल की पोस्ट और उस पर दोनों तरफ का रिएक्शन लुबना ने फेसबुक पर बुर्के का विरोध किया तो मिलने लगी गालियां और धमकियां

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