क्या है आंगनबाड़ी और क्या करती हैं सेविकाएं-सहायिकाएं?

आंगनबाड़ी केंद्र सरकार का कार्यक्रम है, जो 2 अक्टूबर, 1975 को लॉन्च किया गया था.
आंगनबाड़ी केंद्र सरकार का एक कार्यक्रम है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से इस कार्यक्रम की शुरुआत की थी. 2 अक्टूबर, 1975 को शुरू की गई इस योजना का असली नाम है समन्वित बाल विकास योजना या एकीकृत बाल विकास योजना, जिसेस आंगनबाड़ी कहा जाता है. इसके तहत छह साल की उम्र तक के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर उनके हेल्थ की देखभाल की जाती है. ये कार्यक्रम खास तौर पर गांवों के गरीब परिवारों के लिए है. कार्यक्रम के तहत बच्चों के अलावा टीनएच की लड़कियों और गर्भवती महिलाओं की भी देखभाल की जाती है और उनके स्वास्थ्य से संबंधित ज़रूरतें पूरी की जाती हैं. 400 से 800 लोगों की जनसंख्या पर एक आंगनबाड़ी होती है और किसी गांव में संख्या अधिक होने पर केंद्र की संख्या एक से अधिक हो सकती है. हर आंगनबाड़ी केंद्र पर एक सेविका और एक सहायिका होती है. हर 25 आंगनबाड़ी सेविका पर आंगनबाड़ी पर्यवेक्षक की नियुक्ति की जाती है, जिसे मुख्य सेविका कहा जाता है. इनका काम है-
# छह साल से कम उम्र के बच्चों का टीकाकरण
# हर महीने बच्चों के वज़न की जांच करना और रजिस्टर में दर्ज करना.
# बच्चे पैदा होने से पहले और बच्चा होने के बाद तक गर्भवती की देखभाल और उनका टीकाकरण.
# छह साल से कम उम्र के बच्चों का पोषण.

6 साल से कम उम्र की बच्चों की देखभाल का जिम्मा आंगनबाड़ी के पास ही है.
# नवजात से लेकर 6 साल तक के बच्चों की देखभाल
# किसी बच्चे या मां के कुपोषित होने या गंभीर बीमारी के मसलों को अस्पतालों, सामुदायिक केंद्रों या फिर जिला अस्पतालों तक भेजना.
# 3-6 वर्ष की आयु के बच्चों को स्कूल से पहले की पढ़ाई करवाना.
# इसके अलावा भी कई और ऐसे काम हैं, जिनमें आंगनबाड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं की मदद ली जाती है.
बिहार में हैं 92 हजार आंगनबाड़ी केंद्र

ये कटिहार और पटना के दो उदाहरण हैं, जिनमें साफ तौर पर कहा गया है कि दो और तीन साल से वेतन नहीं दिया गया है.
बिहार में कुल 92 हजार आंगनबाड़ी केंद्र हैं. इन 92 हजार केंद्रों के लिए सेविका और सहायिका की ज़रूरत होती है. इसके लिए बिहार में कुल 2.21 लाख पद हैं, जिनमें से करीब 1 लाख 60 हजार महिलाएं काम कर रही हैं. बाकी के पद खाली पड़े हैं. लेकिन इन 1 लाख 60 हजार महिलाओं को भी पिछले एक साल से वेतन नहीं मिला है. और इसी वजह से ये सड़कों पर उतरी हैं.
केंद्र सरकार देती है 3000 रुपये, राज्य देता है 750 रुपये

सेविकाओं को 3750 रुपये और सहायिकाओं को 2250 रुपये का वेतन हर महीने मिलता है.
इन आंगनबाड़ी केंद्रों को चलाने वाली सेविकाओं को हर महीने कुल 3750 रुपये का वेतन मिलता है. इनमें से 3000 रुपये केंद्र सरकार देती है. बाकी के बचे हुए 750 रुपये राज्य सरकार की ओर से दिए जाते हैं. और ये वेतन आंगनबाड़ी सेविकाओं का है. आंगनबाड़ी सहायिकाओं का वेतन और भी कम मात्र 2250 रुपये महीना है.
राज्य सरकार ने बढ़ाए पैसे, लेकिन वेतन नहीं आया

उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी (बाएं) और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (दाएं) की कैबिनेट ने आंगनबाड़ी के वेतन में बढ़ोतरी की घोषणा की है.
5 दिसंबर, 2018 को इन आंगनबाड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं ने हड़ताल शुरू कर दी. उनकी मांग थी कि उनका वेतन बढ़ाया जाए. बिहार सरकार ने इनकी कुछ मांगों को मान लिया. हड़ताल शुरू होने के करीब 15 दिन बाद 19 दिसंबर, 2018 को बिहार कैबिनेट ने एक फैसला किया. इस फैसले में कहा गया था कि सेविकाओं को अब 4500 रुपये दिए जाएंगे. मिनी आंगनबाड़ी केंद्रों की सेविकाओं को का भी वेतन बढ़ाकर 3500 रुपये कर दिया गया. सहायिकाओं का वेतन 2250 रुपये ही रखा गया है. इसके अलावा घोषणा की गई है कि ठीक तरह से आंगनबाड़ी केंद्र चलाने वाली सेविकाओं को 250 रुपये हर महीने अतिरिक्त दिए जाएंगे. ये फैसला 19 दिसंबर का है. फिर भी वेतन नहीं आया और अब भी ये सेविकाएं और सहायिकाएं हड़ताल पर हैं.
कुल 15 मांगें हैं, जिनकी वजह से चल रही है हड़ताल

ये है आंगनबाड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं का मांगपत्र.
# आंगनबाड़ी सेविका और सहायिका को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देते हुए क्लास 3 और क्लास 4 के कर्मचारी के तौर पर समायोजित किया जाए.
# जब तक सरकारी कर्मचारी का दर्जा नहीं मिलता, सेविका को 18,000 रुपये महीना और सहायिका को 12,000 रुपये महीना दिया जाए.
# 54 दिन की हड़ताल के बाद 16 मई, 2017 को हुए समझौते के तहत लंबित मांगों का निपटारा किया जाए.
# गोवा और तेलंगाना की तरह बिहार सरकार भी सेविका को 7000 रुपये और सहायिका को 4500 रुपये प्रोत्साहन के तौर पर दे.
# सेविकाओं को पर्यवेक्षिका और सहायिकाओं को सेविका के पद पर प्रमोशन दिया जाए और इसके लिए उम्र सीमा खत्म की जाए.
# रिटायरमेंट के बाद 5000 रुपये महीना या फिर एक मुश्त पांच लाख रुपये दिए जाएं और बीमा दिया जाए.

आंगनबाबड़ी सेविकाएं और सहायिकाएं अलग-अलग जगहों पर धरना-प्रदर्शन कर रही हैं.
# काम का वक्त आठ घंटे निर्धारित किया जाए.
# समान काम के लिए समान वेतन दिया जाए. मिनी आंगनबाड़ी केंद्रों की सेविकाओं को भी समान वेतन दिया जाए.
# हड़ताल की अवधि का मानदेय काटा न जाए, उसे छुट्टियों में समायोजित किया जाए.
# निर्धारित काम के अलावा अगर दूसरा काम लिया जाए, तो उसके लिए अतिरिक्त भुगतान किया जाए.
# आंगनबाड़ी केंद्रों का किसी तरह से निजीकरण न किया जाए.
8 और 9 जनवरी को होगा और बड़ा आंदोलन

8 और 9 जनवरी को होने वाले प्रदर्शन के लिए आईसीडीएस ने गृह सचिव को पत्र लिखा है.
इसके अलावा और भी कई मांगें हैं, जिनको लेकर ये सेविकाएं और सहायिकाएं हड़ताल पर हैं. इस मामले में दी लल्लनटॉप ने जब बिहार राज्य आंगनबाड़ी सेविका सहायिका संघ की अध्यक्ष सोनी कुमारी से बात की, तो उन्होंने बताया कि आंगनबाड़ी की सेविकाएं और सहायिकाएं पहले भी मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को ज्ञापन दे चुकी हैं, लेकिन उनकी मांगे नहीं मानी गईं. राज्य सरकार ने कैबिनेट से वेतन बढ़ोतरी कर दी है, लेकिन नया बढ़ा वेतन तो दूर, पुराना वेतन भी नहीं मिल रहा है. इसलिए अब आंगनबाड़ी सेविकाएं और सहायिकाएं 8 और 9 जनवरी, 2019 को बिहार की राजधानी पटना की सड़कें जाम करेंगी और अपनी मांगों को मनवाने के लिए आंदोलन करेंगी. बिहार के आईसीडीएस के निदेशक ने आंगनबाड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं के इस प्रदर्शन को देखते हुए बिहार के गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव को एक पत्र भी लिखा है.