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Elon Musk का Starlink सुपर इंटरनेट लेकर भारत कब आ रहा? 'बम्हौरी बारात जा ना रही'

मई के पहले हफ्ते में Department of Telecommunications (DoT) से ओके मिलने के बाद लगा कि बस अब आसमान (starlinks in india) साफ है. मगर Starlink ‘आसमान से गिरकर खजूर में अटक गया’ शायद?

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कहां अटक गया स्टारलिंक? (तस्वीर- इंडिया टुडे)

Elon Musk की आसमान से इंटरनेट देने वाली सर्विस Starlink आखिरकार इंडिया (starlinks in india) में आने से पहले लटकी कहां है? गाजे-बाजे के साथ Jio से साझेदारी हो गई. Airtel से भी गुलु-गुलु करते तीन महीने हो गए. मगर स्टारलिंक अभी भी इंडियन यूजर्स से लिंक नहीं हो पाया है. पिछले हफ्ते तो ये खबर भी खूब चली कि मस्क सिर्फ 10 डॉलर यानी 853 रुपये में आसमानी इंटरनेट देने वाले हैं. ये तो पड़ोसी भूटान से भी सस्ता हुआ. लेकिन ये बस खबरें ही हैं. Starlink ‘आसमान से गिरकर खजूर में अटक गया’ क्या? पता करते हैं.

स्टारलिंक में अभी देरी है

मई के पहले हफ्ते में Department of Telecommunications (DoT) से 'ओके' मिलने के बाद लगा कि बस अब आसमान साफ है. 2022 के असफल प्रयास के बाद अब Starlink इंडिया में चालू हो ही जाएगा. स्टारलिंक इंडिया के बड़े इंटरनेट बाजार में एंट्री कर ही लेगी, जहां अभी भी 140 करोड़ लोगों के बीच में 95 करोड़ लोगों के पास ही इंटरनेट की उपलब्धता है.

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लेकिन जैसे हमने कहा, ये उतना आसान भी नहीं है. जमीन पर भले मस्क को मुकेश और मित्तल का साथ मिल गया है मगर आसमान में उनको अकेले ही लड़ना है. स्टारलिंक को सबसे पहले वो दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे जिनमें वो भारत के लाइसेंसिंग नियमों के पालन की हामी भरेगा. मई के पहले हफ्ते में ही सरकार ने Global Mobile Personal Communication by Satellite (GMPCS) के लिए अपने नियम प्रकाशित किए थे. इनमें स्टारलिंक, Amazon’s Kuiper सहित अन्य कंपनियों के लिए सेफ़्टी गाइडलाइंस निर्धारित की गई हैं.

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इनमें से कुछ नियम भारत सरकार को कॉन्टेंट को सेंसर करने और ट्रैफिक को रोकने में मदद करेंगे. एकदम वैसे ही जैसा कि वह ब्रॉडबैंड समेत दूसरे नेटवर्क ऑपरेटरों के साथ कर सकती है. सरकार चाहे तो यूजर के टर्मिनल एक्सेस को “जियो-फेंस्ड कवरेज क्षेत्र के बाहर और/या भारत के बाहर स्थित गेटवे के माध्यम से” प्रतिबंधित कर सकती है. माने कि भले आपके पास छतरी वाला इंटरनेट है लेकिन उसे आप देश के संवेदनशील इलाकों, मसलन डिफेंस, एयरफोर्स के आसपास नहीं चला पाएंगे. सैटेलाइट कंपनियों को देश में काम करने के लिए इन नियमों को मानना ही होगा.

स्टारलिंक की पेरेंट कंपनी स्पेसएक्स को अपनी उपग्रह-आधारित संचार सेवाओं को स्टार्ट करने के लिए भारत के अंतरिक्ष नियामक, Indian National Space Promotion and Authorization Centre (IN–SPACe) से भी मंजूरी की आवश्यकता होगी. रियल टाइम ट्रैफिक ट्रैकिंग, 20 फीसदी लोकल हार्डवेयर समेत कुल 29 नियमों को ओके करना होगा तब जाकर बात बनेगी. इसमें भी कम से कम 9 महीने अभी और लगेंगे. गुणा-गणित की बात है तो मान लेते हैं कि मस्क ने सब कर लिया तो क्या सब सही होगा. ना ना ना!

एक करोड़ या 15 लाख

मस्क, स्टारलिंक की मदद से भारत में एक करोड़ लोगों तक पहुंचने की बात कर रहे हैं. मगर उनका सिस्टम ऐसा करने के काबिल ही नहीं है. IIFL की रिसर्च के मुताबिक स्पेसएक्स के पास अभी 7,000 सैटेलाइट हैं जो 40 लाख कनेक्शन कवर कर सकते हैं. आज की तारीख में इसका बहुत बड़ा हिस्सा पहले ही इस्तेमाल में है. अगर कंपनी सैटेलाइट की संख्या 18000 भी कर दे तो भी भारत में साल 2030 तक मात्र 15 लाख कनेक्शन ही चल पाएंगे.

स्टारलिंक
स्टारलिंक

चलो इतना भी सही. लेकिन असल मसला छतरी को लेकर फंसने वाला है. महीने के भले 853 रुपये लगेंगे मगर पूरी हार्डवेयर किट का दाम 21,300 से 32,400 के बीच रहेगा. भारतीय यूजर जिसे 1 हजार रुपये में ब्रॉडबैंड किट की आदत लग गई है वो इतना पैसा खर्च करेगा क्या?

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