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अमित शाह बनाम शरद पवार: हिंदुस्तान की सबसे बड़ी सियासी लड़ाई कोई है, तो यही है!

शाह बनाम पवार की ये जंग 2019 में ही शुरू हुई जब अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार के खिलाफ जाकर बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया और गोपनीय तरीके से डिप्टी सीएम की शपथ ले ली. तब से शरद पवार और बीजेपी के नए चाणक्य अमित शाह एक दूसरे का ताज उछालने का कोई मौका नहीं छोड़ते.

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अमित शाह और शरद पवार की पुरानी तस्वीर. (Photo- Aaj Tak)

23 नवंबर, 2019 की सुबह. देशभर को चौंकाते हुए लगभग गोपनीय तरीके से देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री और अजित पवार उप-मुख्यमंत्री बन चुके थे. पर फडणवीस के पास कितने विधायकों का समर्थन है, यह खुद उन्हें भी नहीं पता था. महाराष्ट्र में राजनीति हर मिनट बदल रही थी. अपनी साख और पार्टी को लगभग सुरक्षित करने के बाद शरद पवार प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए. एक पत्रकार ने उनसे पूछा-जहां बीजेपी को बहुमत मिलता है, वहां तो सरकार बनाते ही हैं, जहां नहीं मिलता अमित शाह वहां भी सरकार बनवा लेते हैं.” शरद पवार को गुस्सा आ चुका था. उन्होंने कहा- "मैं भी देखता हूं वो महाराष्ट्र में कैसे सरकार बनाते हैं."

इस तरह भारतीय राजनीति में एक नई अदावत जन्म ले चुकी थी- अमित शाह बनाम शरद पवार.

हाल ही में खबरें आईं कि अमित शाह ने शरद पवार पर 'विश्वासघात की राजनीति' करने का आरोप लगाया. बदले में पवार ने कहा- "अब तक गृह मंत्रालय संभालने वाले कई दिग्गज नेता हुए, लेकिन उनमें से किसी को भी अपने राज्य से बाहर नहीं निकाला गया." 

ये बयान 'पवार बनाम शाह' सीरीज़ का महज़ एक पड़ाव भर है. पिछले साल भी दोनों के बीच ज़बानी जंग देखने को मिली थी. तब जुलाई में अमित शाह ने शरद पवार को 'भ्रष्टाचार का सरगना' कह दिया था. जवाब में पवार ने तब भी शाह पर गुजरात से बाहर किए जाने वाला तंज कसा था.

देश की सियासत के इन दो दिग्गजों की ये जंग 2019 में ही शुरू हुई, जब अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार के खिलाफ जाकर चुपके से बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया और गोपनीय तरीके से डिप्टी सीएम की शपथ ले ली थी. तब से राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार और बीजेपी के नए चाणक्य अमित शाह एक दूसरे का ताज उछालने का कोई मौका नहीं छोड़ते.

फर्स्ट बैटल

2019 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना वाले NDA को बहुमत मिला था. पर बीजेपी को 2014 चुनाव से 17 कम 105 सीटें मिलीं. सीटें उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना की भी कम हुईं, लेकिन ये तय हो चुका था कि गठबंधन के बिना बीजेपी सरकार नहीं बना सकती. शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोक दिया. बार्गेनिंग का दौर चल ही रहा था कि लंबे समय से शांत बैठे शरद पवार ने अपने राजनीतिक चक्षु एक्टिव हो गए. शिवसेना और बीजेपी में जितनी दूरियां बढ़ रही थीं, शरद पवार उद्धव को उतना ही अपनी ओर खींच रहे थे. बीजेपी से बिगड़ती बात शिवसेना को NCP और कांग्रेस के साथ बातचीत की टेबल तक ले आई थी.

बंद कमरों में कई दफा की बातचीत के बाद ये माना जाने लगा था कि महाराष्ट्र में सत्ता बीजेपी से दूर होती जा रही है. शिवसेना को मनाने का दौर भी लगभग थम चुका था. दिल्ली में तब बीजेपी के चाणक्य ने ‘साम-दाम-दंड-भेद’ का इस्तेमाल किया. 23 दिसंबर, 2019 सुबह 8 बजे थे. हर रोज की तरह टीवी पर सामान्य खबरें चल रही थीं. अचानक मीडिया चैनल्स के पास महाराष्ट्र के राजभवन से फीड रिले होने लगती है. जो विजुअल आ रहे थे उसका किसी को अंदाजा भी नहीं था. सेकेंड के बराबर समय भी बर्बाद किए बगैर महाराष्ट्र की खबर देशभर के टीवी चैनल्स पर ऑन एयर हो चुकी थी. देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की दोबारा शपथ ले ली थी. और उनके साथ उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर सबको चौंकाया अजित पवार ने.

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शपथग्रहण के दौरान देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार. (ANI)

बीजेपी के साथ शरद पवार भी जाना चाहते थे. लेकिन वैसे नहीं जैसे अजित पवार गए. इस पर दी लल्लनटॉप ने एक 30 जून, 2023 को एक विस्तृत रिपोर्ट भी की थी. अजित पवार ने शरद पवार की मर्जी के बिना बीजेपी से गठबंधन किया था. सूत्र बताते हैं कि इस पूरे खेल के सूत्रधार थे अमित शाह.

पर प्लान फूलप्रूफ नहीं था. अजित पवार से बीजेपी को जितने विधायकों की उम्मीद थी उतने तो वो ला न सके. उल्टा जो आए थे धीरे-धीरे वो भी खिसकने लगे. ये पहला मौका था जब NCP में शरद पवार बड़े या अजित पवार, ये सवाल राजनीतिक पटल पर था. शरद को ‘चाणक्य’ क्यों कहा जाता था, उन्होंने साबित किया. 

मीडिया में चर्चा इस बात की हो रही थी कि क्या शरद पवार अपने भतीजे को मना पाएंगे. लेकिन 'चाचा' उसके आगे का सोच रहे थे. उन्होंने अजित पवार से पहले बागी विधायकों को पकड़ा. एक-एक करके अजित पवार के साथ गए विधायकों को समझा-बुझाकर वापस बुलाना शुरू किया. जब लगभग सारे विधायक वापस लौट गए तो अजित पवार के पास कोई 'ऑप्शन' ही नहीं बचा. भतीजे ने भी चाचा के पास वापस लौटना ही मुनासिब समझा.

अजित पवार को BJP के साथ गए 80 घंटे भी नहीं बीते थे कि शरद पवार ने बागी हुए भतीजे को विधायकों समेत वापस बुला लिया और खाली हाथ BJP के देवेंद्र फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ा. अमित शाह की बाजी उलटी पड़ गई है. शरद पवार 1-0 से आगे हो गए थे.

वन ऑल!

जितना बेमेल शिवसेना-NCP-कांग्रेस का गठबंधन माना जा रहा था उतना साबित तो नहीं हुआ. ‘भगवा’ पार्टी कहलाने वाली शिवसेना का बिल्कुल उल्टी विचारधारा वाली पार्टियों के साथ जाना बेमेल जोड़ ही समझा जा रहा था. कई स्वघोषित राजनीतिक पंडितों ने ये दावा तक किया कि शिवसेना ज्यादा दिन उधर टिक नहीं पाएगी. हालांकि ये दावे गलत साबित हुए. पुराने मुद्दे उठते तो एक दूसरे का मुंह भले ही बन जाता था, लेकिन उद्धव सरकार चल रही थी.

उधर 2019 की राजनीतिक पटकनी अमित शाह भूलने वाले थे नहीं. इस बार बीजेपी ने भी हीरो को छोड़ दिया और 'साइड-एक्टर' को पकड़ा. जिसे बाद में हीरो का 'रोल' भी दिया गया. माना जा रहा था कि उद्धव ठाकरे कुछ समय में तो बीजेपी के पास लौटेंगे ही. लेकिन शाह ने एक कदम आगे की प्लानिंग की.

20 जून, 2022 को एमएलसी चुनाव में शिवसेना के कुछ विधायकों पर क्रॉस वोटिंग का आरोप लगा. कुछ ही घंटों बाद महाराष्ट्र सरकार में शहरी विकास मंत्री एकनाथ संभाजी शिंदे ‘नॉट रीचेबल’ हो गए. अकेले नहीं, दो दर्जन से ज्यादा विधायकों के साथ. शिंदे विधायकों को लेकर रातोरात गुजरात के सूरत निकल गए. वहां उनके लिए पर्याप्त से ज्यादा इंतजाम पहले से किए जा चुके थे. धीरे-धीर बागी विधायकों का आंकड़ा बढ़ने लगा. इनमें सांसद भी शामिल होने लगे. 23 जून, 2022 को खबर आई कि एकनाथ शिंदे ने दो तिहाई (37) विधायकों का जादुई आंकड़ा छू लिया है. उस समय शिवसेना के 55 विधायक थे. विधानसभा की सदस्यता रद्द ना हो इसके लिए दो तिहाई विधायकों का साथ होना जरूरी था.

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एकनाथ शिंदे के शपथग्रहण के दौरान की तस्वीर. (India Today)

अब गेम नया था. 2019 में निर्देशक की भूमिका निभाने वाले शरद पवार इस बार देखते ही रह गए और पासा पलट गया. महाविकास अघाड़ी की सरकार गिर गई. 30 जून को उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया. शिंदे ने शिवसेना पार्टी पर ही कब्जा जमाते हुए बीजेपी के साथ गठबंधन किया और महाराष्ट्र में ‘बड़े भाई’ बीजेपी के नेतृत्व में NDA की सरकार एक बार फिर काबिज हो गई. बाजी 1-1 यानी one all पर आ गई थी.

अब बारी गहरी चोट की थी!

सबको चौंकाते हुए बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया और फडणवीस को उनका डिप्टी नियुक्त कर दिया. महाराष्ट्र में नई सरकार बने साल भर बीत भी गए थे. इधर बीच-बीच में अजित पवार का 'राग मोदी' सुनाई देने लगा था. अजित पवार ने मीडिया से बात करते हुए और सभाओं में पीएम मोदी की तारीफ की तो महाविकास अघाड़ी के नेताओं की त्योरियां चढ़ने लगीं. दूसरी तरफ NCP में उनकी नाराज़गी भी दिखने लगी थी. इससे पहले दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से अजित पवार शरद पवार के सामने उठकर चले गए. क्योंकि महाराष्ट्र NCP अध्यक्ष जयंत पाटिल को अजित से पहले बोलने के लिए बुला लिया गया था.

इसके बाद अमित शाह अप्रैल 2023 में मुंबई दौरे पर गए तो ऐसे कयास लगाए जाने लगे कि शाह और अजित पवार के बीच गुप्त मीटिंग हुई है. हालांकि, अजित पवार ने इन खबरों का खंडन कर दिया.

NCP में राजनीतिक घटनाक्रम बहुत तेजी से बदल रहा था. 10 जून, 2023 की दोपहर शरद पवार ने अपनी पार्टी के 25वें स्थापना दिवस पर चौंकाने वाला एलान कर दिया. पवार ने अपनी बेटी और सांसद सुप्रिया सुले और पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल को NCP का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया. शरद पवार ने संदेश दे दिया था कि उन्हें भतीजे से ज्यादा बेटी प्यारी है. अजित पवार ने इसे बखूबी समझ पा रहे थे.

फिर आया 2 जुलाई, 2023 का दिन. एक बार फिर टीवी पर अचानक महाराष्ट्र के राजभवन से तस्वीरें आने लगीं. अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल समेत 14 विधायकों के साथ राजभवन पहुंचे थे. वो देवेंद्र फडणवीस की बगल वाली कुर्सी में बैठे थे. थोड़ी देर बाद अजित पवार ने महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम पद की शपथ ली.

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2 जुलाई, 2023 की राजभवन की तस्वीर. (India Today)

अजित पवार ने ना सिर्फ पार्टी तोड़ी, बल्कि उसके संस्थापक अपने चाचा शरद पवार से छीन भी ली. अजित पवार ने NCP पर कब्जा जमाया और बीजेपी के साथ हो लिए. शरद पवार के लिए उनके राजनीतिक जीवन की ये सबसे गहरी चोट थी.

बैटल ऑफ बारामती!

2024 के आम चुनाव में पूरे देश की कुछ चुनिंदा सीटों की खूब चर्चा थी. उनमें से एक सीट थी महाराष्ट्र की बारामती सीट. शरद पवार की सीट जिसे उन्होंने अपनी बेटी को सौंप दिया था. 1996 से 2009 तक शरद पवार बारामती से सांसद थे. 2009 में उन्होंने अपनी सीट से अपनी बेटी को उतार दिया. तब से सुप्रिया सुले ही बारामती से सांसद हैं. लेकिन 2024 का चुनाव उनके लिए आसान नहीं रहा. सुप्रिया सुले के साथ शरद पवार की साख भी दांव पर थी.

2024 लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी के सीट शेयरिंग फॉर्मूले में बारामती की सीट अजित पवार की NCP को दे दी गई. और अजित पवार ने वहां से अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को लड़ाने का फैसला किया. यानी ये लड़ाई सुप्रिया सुले Vs सुनेत्रा पवार से ज्यादा शरद पवार Vs अजित पवार थी. कुछ लोगों ने ये भी कहा कि असल में ये लड़ाई शरद पवार Vs अमित शाह है. 

चुनाव के दौरान इस बात को खूब हवा मिली कि ऐसा अपनेआप नहीं हुआ है, इसके पीछे सोची समझी रणनीति है. ये भी कहा जा रहा था कि अमित शाह ने रणनीति के तहत अजित पवार की पत्नी को शरद पवार की बेटी के खिलाफ चुनाव में उतरवाया है. एक इंटरव्यू के दौरान जब इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई ने शरद पवार से पूछा कि क्या अमित शाह के इशारे पर सुनेत्रा पवार को बारामती से उतारा गया, तो उन्होंने जवाब दिया, "ऐसा मैंने भी सुना है."

इस मसले पर हमने राजदीप सरदेसाई से बात भी की. वो कहते हैं,

“बीजेपी शरद पवार के किले को पूरी तरह से ढहाना चाहती थी. सीधे पवार को घेरना मुश्किल था इसलिए निशाने पर उनकी बेटी थीं. बेटी अगर चुनाव हार जाती तो साख शरद पवार की जाती.”

मगर इस बार शरद पवार ने खूंटा गाड़ दिया था. पिछले दो दशक से अजित पवार की बारामती में अच्छी पकड़ थी, लेकिन शरद पवार ने चुनाव में खूब मेहनत की और अपने परिवार की पारंपरिक सीट के साथ-साथ अपनी साख भी बचा ली. चुनाव में बारामती सीट से सुप्रिया सुले ने सुनेत्रा पवार को डेढ़ लाख से ज्यादा वोट से हरा दिया. शरद पवार ने 'बैटल ऑफ बारामती' जीत ली.

'Still Sharad Pawar will welcome Modi': Ally Uddhav Sena's reminder on NCP  split - India Today
नरेंद्र मोदी और शरद पवार की पुरानी तस्वीर. (India Today)

हाल ही में सुनाई देने वाली ज़बानी जंग इसी शाह Vs पवार की पॉलिटिकल वॉर का हिस्सा थी. 2014, 2017 और 2019- ऐसे कई मौके आए जब बीजेपी और NCP के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत हुई. मगर ऐसा हो नहीं पाया. 

एक तरफ शाह और पवार की बिल्कुल नहीं बनती, दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी और शरद पवार के बीच अच्छे संबंध हैं. 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुणे के पास मांजरी में शरद पवार की अध्यक्षता वाले वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट के एक समारोह में भाग लिया. अपने भाषण में पीएम मोदी ने शरद पवार को अपना मार्गदर्शक बताया. उन्होंने ,

"मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था. शरद पवार ने मुझे उंगली पकड़ कर चलाया. मेरी हमेशा मदद की है. मैं इसे सार्वजनिक जीवन में स्वीकार करने में गर्व अनुभव करता हूं."

सियासत की इन दोस्ती और अदावतों पर बशीर बद्र ने कहा है-

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों.

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