The Lallantop
Advertisement

शरद पवार ने 2019 में सिर्फ BJP को 'गूगली' दी या शिवसेना-कांग्रेस से भी खेलने वाले थे?

मोदी अगर पवार की एक बात मान लेते तो 'गूगली' से पहले ही फडणवीस बोल्ड हो जाते!

Advertisement
Sharad Pawar googly to bjp in 2019
2019 के विधानसभा चुनाव के बाद बदल गई थी महाराष्ट्र की राजनीति. (फाइल फोटो- PTI)
pic
सौरभ
30 जून 2023 (Updated: 30 जून 2023, 11:35 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

मुंबई में अभी सुबह हुई भी नहीं थी और राजभवन में अतिरिक्त हलचल शुरू हो गई थी. सुबह के साढ़े पांच बज रहे थे. महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन हटा दिया गया था. ज्यादातर पत्रकारों को इसकी भनक तक नहीं लगी थी. करीब ढाई घंटे बीतते हैं. हर रोज की तरह टीवी पर सामान्य खबरें चल रही थीं. अचानक मीडिया चैनल्स के पास महाराष्ट्र के राजभवन से फीड रिले होने लगती है. जो विजुअल आ रहे थे उसका किसी को अंदाजा भी नहीं था. सेकेंड के बराबर समय भी बर्बाद किए बगैर महाराष्ट्र की खबर देशभर के टीवी चैनल्स पर ऑन एयर हो चुकी थी. 23 नवंबर, 2019 को देवेंद्र फडणवीस ने सुबह 8 बजे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की दोबारा शपथ ले ली थी. लेकिन उनके साथ उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर और ज्यादा चौंका गए अजित पवार. शरद पवार के भतीजे और NCP के वरिष्ठ नेता. 

शपथग्रहण के दौरान देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार. (ANI)

हालांकि ये चौंकने-चौंकाने की शुरुआत थी. अभी एक और बड़ा सियासी खेल होना था. अजित पवार को BJP के पास गए 80 घंटे भी नहीं बीते थे कि शरद पवार ने बागी हुए भतीजे को विधायकों समेत वापस बुला लिया और खाली हाथ BJP के देवेंद्र फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ा.

पार्टी में हुई सबसे बड़ी बगावत को रोकने के बाद राष्ट्रीय राजनीति में शरद पवार का कद और बढ़ गया था. कहा गया कि महाराष्ट्र की राजनीति और पार्टी में उनकी पकड़ का नतीजा ही था कि पवार ने मोदी-शाह को छकाते हुए हवा का रुख मोड़ दिया. 

लेकिन 29 जून, 2023 को शरद पवार ने एक बयान दिया जिसने महाराष्ट्र की राजनीति को एक बार फिर खबरों के केंद्र में ला दिया है. उन्होंने कहा कि अजित पवार का BJP के साथ जाना उनकी एक ‘गूगली’ थी ताकि BJP की सत्ता की भूख को सबके सामने लाया जा सके. पवार ने कहा-

'2014 में, NCP ने सरकार बनाने के लिए भाजपा को खुले तौर पर बाहरी समर्थन की पेशकश की थी. इसका मकसद ये था कि राज्य में NDA के गठबंधन में दरार पैदा की जा सके. 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद भी BJP के साथ कई बैठकें हुईं. BJP नेताओं ने दावा किया कि मैंने देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार के शपथ ग्रहण समारोह से कुछ दिन पहले ही अपना मन बदल लिया था. और सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई. लेकिन ये मेरा सोचा-समझा कदम था. ताकि ये दिखाया जा सके कि भाजपा सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है.'

पवार का ये बयान सियासी हलचल मचाने के लिए काफी था. फडणवीस ने इस पर पलटवार करते हुए ये भी कह दिया कि वो तो इस सच को काफी समय से बाहर लाना चाह रहे थे, पवार ने खुद ही बता दिया. लेकिन पवार और फडणवीस के बयानों के बीच बहुत कुछ छिपा है जो नवंबर 2019 में महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक बंद दरवाजों की बैठकों में घटित हो रहा था.

पवार के बयान के बाद ये तो साफ हो गया है कि महाविकास अघाड़ी बनने से पहले NCP, BJP के संपर्क में थी. महाराष्ट्र की राजनीति को करीब ढाई दशक से देख रहे वरिष्ठ पत्रकार और 2019 के इस पूरे घटनाक्रम पर ‘36 डेज़ ए पॉलिटिकल क्रॉनिकल ऑफ एंबिशन, डिसेप्शन, ट्रस्ट एंड बिट्रेयल’ किताब लिखने वाले कमलेश सुतार बताते हैं-

‘शरद पवार ने पीएम मोदी से मुलाकात कर साथ सरकार बनाने का न्योता दिया था. लेकिन पवार ने शर्त ये रखी थी कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस नहीं बनने चाहिए. लेकिन मोदी और BJP को ये शर्त मंजूर नहीं थी. और बात आगे नहीं बढ़ सकी.’

24 अक्टूबर, 2019 को महाराष्ट्र विधानसभा के नतीजे आ गए थे. लेकिन BJP और शिवसेना के बीच पावर शेयरिंग का फॉर्मूला नहीं बन पाया और गठबंधन टूट गया. जिन दिनों ये खबरें चल रही थीं कि महाराष्ट्र में NCP, कांग्रेस और शिवसेना साथ आकर सरकार बना सकती हैं, उसी दौरान 20 नवंबर, 2023 को संसद भवन में शरद पवार नरेंद्र मोदी से मिलने जाते हैं. खबरनवीसों को बताया जाता है कि शरद पवार किसानों को लेकर पीएम मोदी से मिलने गए हैं. लेकिन बाद में बताया गया कि मीटिंग के अंदर का एजेंडा कुछ और था.

इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम पर'चेकमेट: हॉउ BJP वन एंड लॉस्ट महाराष्ट्र'  किताब लिखने वाले इंडियन एक्सप्रेस के वरिष्ठ पत्रकार सुधीर सूर्यवंशी कहते हैं-

'मोदी और शरद पवार की दोस्ती बहुत पुरानी है. मोदी जब गुजरात में मुख्यमंत्री थे तब से दोनों की दोस्ती के किस्से हैं. पवार 2014 में भी BJP के साथ आना चाहते थे. और मोदी भी शिवसेना से छुटकारा चाहते थे क्योंकि शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में उनके खिलाफ काफी कुछ भला-बुरा लिखा जा चुका था. हालांकि उस दौरान बात नहीं बन सकी. इसके बाद कुछ ऐसी ही कोशिश 2019 में हुई.'

नरेंद्र मोदी और शरद पवार की फाइल फोटो (PIB)

सुधीर कहते हैं कि पवार दोनों फ्रंट पर खेल रहे थे. BJP से भी बात चल रही थी और कांग्रेस-शिवसेना से भी. सुधीर के मुताबिक-

‘पवार को ये उम्मीद नहीं थी कि सोनिया गांधी शिवसेना के साथ जाने को राज़ी होंगी. लेकिन जब सोनिया गठबंधन के लिए राज़ी हो गईं तो पवार के पास कोई विकल्प नहीं बचा. और इसलिए उन्होंने 20 नवंबर को संसद भवन में नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. उन्होंने ये मीटिंग इसलिए रखी थी ताकि वो मोदी को गठबंधन के लिए मना कर सकें.’

पवार आज भले ही कह रहे हों कि उनके इशारे पर ये पूरा सियासी खेल हुआ था. लेकिन अपनी किताब में 'लोक माझे संगति' में वो लिखते हैं-

'BJP उन संभावनाओं को तलाश रही थी कि क्या NCP के साथ गठबंधन किया जा सकता है. लेकिन मैं इस प्रक्रिया में शामिल नहीं था. ये सिर्फ BJP की इच्छा थी और BJP से कोई औपचारिक बातचीत नहीं हुई. लेकिन दोनों पार्टियों के चुनिंदा नेताओं के बीच अनौपचारिक बातचीत जरूर हुई थी.'

कमलेश बताते हैं कि शरद पवार देवेंद्र फडणवीस को पसंद नहीं करते हैं, क्योंकि वो जिस तरह से पवार पर हमले करते हैं वैसे महाराष्ट्र में पहले नहीं देखे गए. चाहे BJP के नेता हों या शिवसेना के, सार्वजनिक मंचों पर शरद पवार को सभी सम्मान देते नज़र आते हैं. लेकिन फडणवीस इसके उलट हैं. और यही वजह कि पवार BJP के साथ जाना तो चाहते थे, लेकिन फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने के पक्ष में नहीं थे. वो चाहते थे कि BJP नितिन गडकरी या उनके कद के किसी और नेता को मुख्यमंत्री बनाए. लेकिन BJP को ये शर्त मंजूर नहीं थी, और पवार को फडणवीस नहीं.

लेकिन अजित पवार को फडणवीस से ऐसी कोई दिक्कत नहीं थी. उन्होंने कहा था कि केंद्र में BJP की सरकार है, राज्य में BJP की सरकार है, ऐसे में सत्ता के साथ रहना ही समझदारी होगी. हालांकि, अंदरखाने की जानकारी रखने वाले बताते हैं कि अजित पवार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे थे. वो जानते थे कि BJP के साथ रहने पर जांच से बचा जा सकता है. और इसीलिए वो शरद पवार के फैसले खिलाफ जाते हुए फडणवीस के साथ सरकार बनाने को राजी हो गए.

2019 के इस पूरे घटनाक्रम को वरिष्ठ पत्रकार जीतेंद्र दीक्षित अपनी किताब '35 डेज़: हाउ पॉलिटिक्स इन महाराष्ट्र चेंज्ड फॉरऐवर इन 2019' में यू बताते हैं-

‘जिस दिन फडणवीस और अजित पवार का शपथग्रहण हुआ उसके एक दिन पहले ही कांग्रेस-शिवसेना-NCP की बैठक हुई थी. इस बैठक में शरद पवार एक कांग्रेस नेता की किसी बात पर नाराज़ हो जाते हैं. पवार मीटिंग बीच में छोड़कर चले जाते हैं. अजित पवार भी मीटिंग छोड़ देते हैं. और अगले दिन अजित पवार फडणवीस के साथ शपथ ले लेते हैं.’

लेकिन जीतेंद्र भी वही बात दोहराते हैं, कि अजित पवार जब BJP के साथ गए तब शरद पवार ने इसकी इजाजत नहीं दी थी. शरद पवार तो इसके पहले ही महाविकास अघाड़ी बनाने का वादा कर चुके थे.

दरअसल अजित पवार को लगा था कि वो BJP के साथ सरकार बना लेंगे और शरद पवार को भी इसके लिए मना लेंगे. और इसीलिए उन्होंने कहा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस के विधायकों ने BJP के साथ जाने के लिए समर्थन दिया है. शरद पवार को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने पहले विधायकों से वापस आने की अपील की. जब विधायक वापस आ गए तब अजित पवार के पास वापस लौटने के अलावा और कोई रास्ता बचा नहीं था.

महाराष्ट्र की इस सियासी जंग में इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई एक अहम कड़ी जोड़ते हैं. वो कहते हैं-

फडणवीस और अजित पवार तो इस लड़ाई में सिर्फ प्यादे हैं. असली टसल तो शरद पवार और अमित शाह के बीच है. दोनों एक दूसरे को मात देने का कोई मौका नहीं छोड़ते. पवार ने 2014 में कोशिश की, फिर 2019 में. बदले में शाह ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया और महाविकास की सरकार गिर गई.

बहरहाल, एकनाथ शिंदे फिलहाल राज्य के मुख्यमंत्री हैं, फडणवीस उनके डिप्टी हैं. अजित पवार के बीजेपी के संपर्क में होने की खबरों के बीच शरद पवार ने बेटी सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर भतीजे अजित को किनारे लगाने की कोशिश में एक और कदम बढ़ा दिया है. उद्धव ठाकरे इस बात को जनता तक पहुंचाने में जुटे हैं कि शिंदे ने बाला साहेब ठाकरे को धोखा दिया है उनके साथ छल किया गया है. सभी पार्टियां अपने-अपने तरकश में तीरों को सजा रही हैं. महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने में अब डेढ़ साल से भी कम का वक्त बाकी है. 

वीडियो: किताबी बातें: शरद पवार की राजनीति के दिलचस्प किस्से, दांव-पेच, हार-जीत और इल्जाम

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement