आखिर सरकार प्राइवेट ट्रेनें चलाना क्यों चाहती है?
सीधा सा फंडा है. सरकार को पैसा चाहिए. भारतीय रेलवे में 10 लाख से ज्यादा कर्मचारी हैं. यह दुनिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है. भारी-भरकम महकमे और सिस्टम के बोझ के तले भारतीय रेलवे दबता चला जा रहा है. सरकार अब इसे एक दुधारू गाय बनाना चाहती है. सरकार चाहती है कि रेलवे सिर्फ लोगों की सेवा ही न करे, बल्कि कमाऊ पूत भी बने. रेलवे के मुताबिक, प्राइवेट ट्रेनों को चलाने के मुख्य कारण ये हैंः
- तेज स्पीड वाली ट्रेनें (160 किलोमीटर प्रति घंटा) चलना शुरू हों, जिससे जल्दी से जल्दी लोग अपने ठिकाने पर पहुंचें. - ट्रेन में सफर करना ज्यादा सेफ बनाया जा सकेगा. - ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा. - लोगों को ट्रेनों में सफर करने का एक लग्जरी एक्सपीरिएंस मिले, मतलब वैसा जैसा विदेशी ट्रेनों में देखने को मिलता है.
कब से शुरू होंगी प्राइवेट ट्रेनें
रेलवे के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर आरडी वाजपेयी ने 'द लल्लनटॉप' को बताया कि देश में 12 प्राइवेट ट्रेनों का पहले सेट साल 2023 से शुरू हो जाएगा. रेलवे की योजना वित्त वर्ष 2027 तक सभी 151 प्राइवेट ट्रेन चलाने की है. बता दें कि रेलवे की योजना पीपीपी मॉडल पर पांच फीसदी ट्रेनों के निजीकरण करने की है. बाकी 95 फीसदी ट्रेनें रेलवे खुद चलाएगा. प्राइवेट ट्रेन के लिए फाइनेंशियल बिड 2021 के अप्रैल तक पूरा कर लिया जाएगा.
कितनी और किस रूट पर चलेंगी ये प्राइवेट ट्रेनें
रेलवे ने प्राइवेट ट्रेनें चलाने के लिए 12 क्लस्टर चुने हैं, जिनमें शामिल हैं- मुंबई (2 क्लस्टर), दिल्ली (2 क्लस्टर), चंडीगढ़, हावड़ा, पटना, प्रयागराज, सिकंदराबाद, जयपुर, चेन्नै, बेंगलुरु. इन क्लस्टर पर 109 रूट की पहचान की गई है. इन पर कम से कम 16 कोच की 151 प्राइवेट ट्रेनें चलाने का प्लान है.
तो क्या कोई भी जाकर ट्रेन खरीद लेगा?
ट्रेन खरीदना कार खरीदने जैसा नहीं है. इसके लिए सरकार ने बाकायदा नियम बनाए हैं. मिलास के तौर पर, सरकार ही तय करेगी कि हर ट्रेन में कितने कोच होंगे. ट्रेन किस रूट पर और किस स्पीड से चलेंगी. कितने दिन तक चलाने की अनुमति होगी. अभी सरकार ने सभी नियम-कायदे फाइनल नहीं किए हैं. जैसे कंपनियां पूछ रही हैं कि जब 160 किलोमीटर प्रति घंटे से चलने लायक ट्रैक ही नहीं हैं, तो इतनी तेज ट्रेनें चलेंगी कहां. रेलवे ने कहा है कि जब तक टेंडर आदि की प्रक्रिया पूरी होगी, ट्रैक बन जाएंगे.
कौन-सी कंपनियां चलाएंगी प्राइवेट ट्रेनें?
हाल ही में 16 कंपनियों ने रेल मंत्रालय में अधिकारियों से नियम-कायदों पर बात की है. इन कंपनियों में कई बड़े नाम- जैसे जीएमआर, स्टरलाइट, बॉम्बार्डियर, जेसन, आई सिकोया कैपिटल, मेधा (वंदे भारत ट्रेन बनाने वाली कंपनी), तीतागढ़ वैगंस, भारत फारगो, आरके एसोसिएट्स (रेलवे का फूड बिजनेस संभालने वाली कंपनी) और आईआरसीटीसी ने भाग लिया. सभी ने सरकार द्वारा बनाए नियमों पर अपनी बात उनके सामने रखी है. हालांकि उम्मीद जताई जा रही है 2023 में देश में प्राइवेट ट्रेनों का युग शुरू हो जाएगा.
भारतीय रेलवे को इससे क्या फायदा होगा?
यह एक पीपीपी यानी पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप मॉडल होगा.भारतीय रेलवे पर ट्रेन चलाने से पड़ने वाला बोझ कम होगा. यह ठेकेदारी सिस्टम की तरह है. भारतीय रेलवे ट्रेन चलाने के लिए बड़ी बोली लगाने वाली कंपनी को मौका देगी. रेलवे ढुलाई और बिजली की खपत को साल के हिसाब से चार्ज करेगा. इसके अलावा वह राजस्व में से भी कुछ हिस्सदारी लेगा. यह सब बोली की एक पारदर्शी प्रक्रिया के जरिए तय किया जाएगा. रेलवे हर प्राइवेट कंपनी के साथ 35 साल का करार करेगा. यह सब तय हो जाने के बाद बाद नफा-नुकसान सब उस कंपनी का. सरकार ने प्राइवेट ट्रेनें चला कर 30 हजार करोड़ रुपए जुटाने का टारगेट रखा है.
सरकार भी कुछ तय करेगी या सब प्राइवेट कंपनियों के भरोसे है?
इस मॉडल में ट्रेन चलाने के लिए प्राइवेट कंपनी ही ट्रेन का किराया, खान-पान, देख-रेख, सुविधाएं और शिकायतों के निपटान जैसी चीजें तय करेगी. भारतीय रेलवे इन कामों से फारिग हो जाएगा. चूंकि सरकार के पास ही ट्रेन चलाने का नेटवर्क है, ऐसे में वह सालाना हिसाब से ढुलाई और लीज से पैसे वसूलेगी.
इसको एक उदाहरण से समझते हैं - फिलहाल रेलवे ने तेजस नाम की एक ट्रेन आईआरसीटीसी (IRCTC) के जिम्मे कर रखी है. आईआरसीटीसी को ढुलाई चार्ज के तौर पर रेलवे को 800 रुपए प्रति किलोमीटर देने होते हैं. इसमें फिक्स संसाधन जैसे ट्रैक, सिग्नलिंग, ड्राइवर, स्टेशन स्टाफ जैसी चीजें शामिल हैं. अगर कंपनी भारतीय रेल से ही डिब्बे लीज पर लेती है, तो उनका अलग से चार्ज देना होगा. इसके अलावा ट्रेन को सेफ और सही हाल में बनाए रखने के लिए कस्टडी चार्ज भी आईआरसीटीसी देती है.
आईआरसीटीसी एक पब्लिक सेक्टर की कंपनी है, मतलब इसमें सरकार की भी हिस्सेदारी है. ऐसे में उसको सब काफी रियायती दरों पर मिल रहा है. लखनऊ से दिल्ली के बीच चलने वाली तेजस के लिए आईआरसीटीसी लीज और कस्टडी के दो लाख रुपए रोज अलग से देती है.
मोटा-मोटी देखा जाए, तो आईआरसीटीसी सरकार को एक सेट तेजस के लखनऊ आने-जाने के 14 लाख रुपए देती है. इसमें चाहे एक भी पैसेंजर बैठे या न बैठे, रेलवे आईआरसीटीसी से 14 लाख रुपए ले लेता है. कुल मिलाकर, सरकार ट्रेन चलाने के झंझट से खुद को दूर रखकर मुनाफा कमाना जारी रखना चाहती है.

लखनऊ-दिल्ली तेजस को चलाने के लिए आईआरसीटीसी भारतीय रेलवे को रोज 14 लाख रुपए का भुगतान करती है.
प्राइवेट ट्रेनों के टिकट कहां से मिलेंगे, क्या किराया भी महंगा होगा?
हालांकि अभी बारीक नियम-कायदे तय होना बाकी हैं, लेकिन जानकार बताते हैं कि टिकट को ऑनलाइन या ऑफलाइन, सामान्य तरीके से बुक कराया जा सकेगा. चूंकि ट्रेनें लग्जरी होंगी और इनकी स्पीड भी ज्यादा होगी, ऐसे में किराया यकीनन आम ट्रेनों के मुकाबले ज्यादा होगा.
क्या ये ट्रेनें अभी की लाल वाली ट्रेनों से कुछ अलग होंगी?
हां, बिल्कुल होंगीं. सरकार स्पीड के साथ ही इन ट्रेनों के जरिए रेलवे की शक्लोसूरत भी बदलना चाहती है. आपको नए डिजाइन का कुछ फील वंदे भारत एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों से मिला होगा. ट्रेंन स्टाइलिश दिखेगी. इनमें अलग से इंजन नहीं होगा. बुलेट या मेट्रो ट्रेनों की तरह ड्राइवर पर कोच के आगे वाले हिस्से से इसे चलाएगा.
ये ट्रेनें बनकर कहां से आएंगी?
सरकार के प्लान के मुताबिक, जो भी प्राइवेट कंपनी ट्रेनें चलाएंगी, उन्हें 70 फीसदी ट्रेनें भारत में ही बनवानी होंगी या भारतीय रेलवे से लीज पर लेनी होंगी. भारत में ट्रेन के डिब्बे बनाने का काम मुख्य रूप से तीन फैक्ट्रियां करती हैं-
# इंटीग्रेटेड कोच फैक्ट्री, पेरंबूर, तमिलनाडु # मॉडर्न कोच फैक्ट्री, रायबरेली, यूपी # रेल कोच फैक्ट्री, कपूरथला, पंजाब
बाकी के डिब्बे और सामान प्राइवेट कंपनियां देश के बाहर से भी खरीद सकेंगी.
वीडियो -सभी तरह की ट्रेनें चलाने को लेकर रेलवे ने कौन-सा फैसला किया