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नेतागिरी से दूर भागने वाले अखिल गोगोई क्यों जेल से ही चुनाव लड़ने पर मजबूर हुए?

अखिल गोगोई का सफरनामा.

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असम में एक्टिविस्ट से नेता बने अखिल गोगोई को UAPA के तहत दर्ज मुकदमें के मामले में हाई कोर्ट ने जमानत दे दी है. (फ़ोटो क्रेडिट : Gettyimages)

2011 में दिल्ली में भ्रष्टाचार के विरोध में और लोकपाल विधेयक पारित करने के समर्थन में व्यापक आंदोलन हुआ था. आम बोलचाल की भाषा में इसे अन्ना आंदोलन भी कहते हैं, क्योंकि इस आंदोलन के केन्द्र में थे महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे. अन्ना के नेतृत्व में में हो रहे इस आंदोलन से कई चेहरे चर्चा में आए. अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, कुमार विश्वास, अखिल गोगोई वग़ैरह-वगैरह. लेकिन आज हम चर्चा करेंगे अखिल गोगोई की, जो 2 सालों से UAPA एक्ट के तहत जेल में बंद हैं. लेकिन अब गुवाहाटी हाई कोर्ट ने साफ कर दिया है कि सिविल नाफरमानी को UAPA के अंतर्गत अपराध नहीं माना जा सकता. इस टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट ने अखिल गोगोई को रिहा करने का आदेश भी दिया है.

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कौन हैं अखिल गोगोई?

अखिल गोगोई असम के जोरहाट इलाके से आते हैं. 1 मार्च 1976 को यहीं उनका जन्म हुआ. लेकिन उनका सार्वजनिक जीवन शुरू होता है 1993 से, जब वे गुवाहाटी के काॅटन काॅलेज में अंग्रेजी साहित्य पढ़ने पहुंचे. जल्दी ही वे काॅटन काॅलेज की स्टूडेंट मैगजीन के संपादक भी बन गए. साथ ही स्टूडेंट पॉलिटिक्स में भी सक्रिय हो गए. 1996 में काॅलेज छोड़ने के बाद वे भाकपा-माले की राजनीति में एक्टिव हो गए. लेकिन 90 के दशक के आखिर में भाकपा-माले से दूरी बना ली और 'नूतन पदातिक' नामक एक पत्रिका निकालने लगे.


अखिल गोगोई असम में किसानों और भ्रष्टाचार के मुद्दों को लेकर संघर्ष करते रहे हैं.
अखिल गोगोई असम में किसानों और भ्रष्टाचार के मुद्दों को लेकर संघर्ष करते रहे हैं.

घोटाला पकड़कर चर्चा में आए 

21 वीं सदी के पहले दशक के मध्य में अखिल गोगोई ने एक बड़ा मामला एक्सपोज किया. मामला असम के गोलाघाट ज़िले में संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना में चल रहे घोटाले से जुड़ा था. अखिल गोगोई और उनके लोगों ने RTI के माध्यम से इस बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया, कि किस प्रकार प्रशासनिक अधिकारी और बैंकर मिलकर, संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना के तहत जिले को मिल रहे पैसों के वारे-न्यारे कर रहे थे. अखिल गोगोई ने जब इस मामले का पर्दाफाश किया, तब प्रशासन हरकत में आया और कई लोग पकड़े गए. गोगोई को उनके इस काम के लिए 2008 में शणमुगम मंजूनाथ एकता पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. इसके बाद 2010 में पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन की ओर से RTI अवार्ड भी दिया गया.

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बड़े बांधों का विरोध

अखिल गोगोई की सोच का दायरा सिर्फ भ्रष्टाचार के विरोध तक ही सीमित नहीं है. वे पर्यावरण और किसान आंदोलनों से भी जुड़े रहे हैं. पर्यावरण के मामले में उन्हें बड़ी चर्चा तब मिली, जब 2009 में उन्होंने असम और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाके में बन रहे, लोअर सुबनसिरी जल विद्युत परियोजना का विरोध किया. उनका मानना था कि इस परियोजना की वजह से पूरे इलाके का पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) खतरे में पड़ जाएगा. लिहाजा उनके नेतृत्व में इस मुद्दे पर बड़ा आंदोलन खड़ा किया गया. यह बात और है कि अखिल गोगोई को उनके इस मिशन में यानी परियोजना को रोकने में कोई खास कामयाबी नहीं मिली.


अन्ना आंदोलन से जुड़े 

शताब्दी का पहला दशक खत्म होते-होते अखिल गोगोई असम में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का एक जाना पहचाना चेहरा बन चुके थे. लेकिन उसी दौर में दिल्ली में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का शंखनाद हुआ. इंडिया अगेंस्ट करप्शन नामक एक संगठन के बैनर तले. अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, अंजलि दमनिया - ये सब चर्चित नाम इसी संगठन से जुड़े थे. अखिल गोगोई भी इससे जुड़ गए. उसके बाद अन्ना हजारे को चेहरा बनाकर दिल्ली के रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन शुरू हुआ. लोकपाल विधेयक पारित कराने की मांग को लेकर अन्ना हजारे का अनशन शुरू हुआ. सरकार से आश्वासन मिलने के बाद अनशन खत्म भी हो गया. लेकिन इस पूरे आंदोलन के दरम्यान इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कुछ चेहरे, खासकर अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गए. इन लोगों ने आम आदमी पार्टी के नाम से अपनी पार्टी बनाई और राजनीति में उतरने का फैसला किया. इसी मुद्दे पर अखिल गोगोई का इन सबसे मतभेद हो गया, क्योंकि अखिल गोगोई राजनीति में जाने के खिलाफ थे. इसके बाद अखिल गोगोई ने इंडिया अगेंस्ट करप्शन को टाटा बाय-बाय कह दिया.


अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल के साथ अखिल गोगोई (सबसे बाएं) (फ़ोटो क्रेडिट : फेसबुक)
अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल के साथ अखिल गोगोई (सबसे बाएं) (फ़ोटो क्रेडिट : फेसबुक)

रिटेल FDI का विरोध और किसान आंदोलन

यह 2013 का साल था. तब तक लोग अखिल गोगोई के कई रूप देख चुके थे. मसलन बतौर कम्युनिस्ट वर्कर, RTI कार्यकर्ता, भ्रष्टाचार विरोधी नायक, पर्यावरण कार्यकर्ता वग़ैरह-वग़ैरह. लेकिन अब अखिल गोगोई ने किसानों का मुद्दा उठाना शुरू किया. इसके लिए एक संगठन भी उन्होंने खड़ा किया था. नाम रखा कृषक मुक्ति संग्राम समिति (KMSS). वैसे यह संगठन 2005 में ही अस्तित्व में आ गया था. लेकिन तब यह गोलाघाट जिले में वनवासियों के वनों में अधिकार (forest rights) के संघर्ष तक ख़ुद को सीमित रखे हुए था. परंतु अब गोगोई ने इसे व्यापक किसान आंदोलन के लिए नए सिरे से संगठित करने का काम किया. ऊपरी असम के इलाके में इस संगठन ने अपना काम करना शुरू किया. किसानों की सब्जियों के लिए सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग रखी. साथ ही रिटेल में विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति देने को किसान विरोधी कदम बताया. यहां तक कि किसानों के ख़ुद के कई रिटेल आउटलेट खुलवाए और इसमें अपने संगठन KMSS की तरफ से यथासंभव आर्थिक मदद भी दिलवाई.

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जेल और बेल का दौर 

2016 में असम में पहली बार भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई. सर्वानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री बने. 2017 में असम की भाजपा सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत अखिल को गिरफ्तार करवाकर जेल भिजवा दिया. गोगोई की गिरफ्तारी के मामले ने ऐसा तूल पकड़ा कि इसमें अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन, एम्नेस्टी इंटरनेशनल को भी कूदना पड़ा. गिरफ्तारी के 4 महीने बाद गुवाहाटी हाई कोर्ट ने गोगोई को तत्काल रिहा करने का आदेश दे दिया. साथ ही हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि गोगोई को जेल में रखने का कोई वाजिब कारण नहीं है और इस प्रकार उन्हें जेल में रखना उनके मूल अधिकारों का साफ-साफ उल्लंघन है.


अखिल गोगोई ने 2021 का विधानसभा चुनाव जेल से ही लड़ा है.
अखिल गोगोई ने 2021 का विधानसभा चुनाव जेल से ही लड़ा है.

लेकिन इतने भर से अखिल गोगोई को सिर्फ फौरी राहत ही मिलनी थी. 2019 में केन्द्र की भाजपा सरकार ने नागरिकता से संबंधित CAA (नागरिकता संशोधन कानून) कानून पारित किया. इस कानून का देशभर में काफी विरोध हुआ. असम में तो कुछ ज्यादा ही विरोध हुआ, क्योंकि वहां की बहुसंख्यक असमिया पहचान को लेकर बहुसंख्यक समाज के ही अन्य समूहों से स्थानीय लोगों का लंबे समय से विवाद चल रहा था. लिहाजा इस आंदोलन ने असम में जोर पकड़ लिया. अखिल गोगोई और उनका KMSS भी इस आंदोलन में कूद पड़ा. गोगोई का मानना है कि यदि CAA लागू होता है, तो इससे 1985 के असम समझौते का कोई आधार नहीं रह जाएगा. इस असम समझौते के तहत, असम का स्थानीय निवासी माने जाने के लिए 26 जनवरी 1971 की कट-ऑफ डेट तय है. यानी उसके पहले आए हुए लोग और उनके वंशज ही असम के स्थाई निवासी माने जाएंगे. लेकिन गोगोई के मुताबिक CAA कानून लागू होने से बाद के लोग भी स्थानीय निवासी होने का दावा करेंगे, जिससे असमिया लोगों के हित प्रभावित होंगे. उनके इस विरोध प्रदर्शन को स्थानीय लोगों का समर्थन भी मिल रहा था. लेकिन तभी दिसंबर 2019 में अखिल गोगोई को UAPA (unlawful activities prevention act) के तहत गिरफ्तार कर लिया गया और उनके मामले की जांच नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) को सौंप दी गई.


CAA कानून को लागू होने से पहले CAB (citizenship amendment bill) कहा जाता था और अखिल गोगोई इस कानून के विरोध में आंदोलन कर रहे थे. (फ़ोटो क्रेडिट : Gettyimages)
CAA कानून को लागू होने से पहले CAB (citizenship amendment bill) कहा जाता था और अखिल गोगोई इस कानून के विरोध में आंदोलन कर रहे थे. (फ़ोटो क्रेडिट : Gettyimages)

NIA ने अपनी शुरुआती जांच में पाया कि अखिल गोगोई के पास से ऐसे साहित्य मिले हैं, जिसे पढ़कर लोगों में उत्तेजना फैल सकती है और साथ ही उनके प्रदर्शन से हिंसा भड़क सकती है.

बहरहाल इस मामले पर सुनवाई चलती रही. NIA कोर्ट में अपनी दलीलें पेश कर अखिल गोगोई की जमानत का विरोध करती रही और अखिल गोगोई की जमानत की अर्जियां खारिज होती रहीं. इस दरम्यान अखिल गोगोई को लग गया कि राजनीतिक षडयंत्र का मुकाबला राजनीति में आकर ही किया जा सकता है. लिहाजा 2020 में रायजोर दल (People's party) के नाम से उन्होंने अपनी नई पार्टी बना ली. जबकि 8 साल पहले इंडिया अगेंस्ट करप्शन से उन्होंने राजनीति में जाने के सवाल पर ही नाता तोड़ा था. लेकिन चूंकि अब उन्हें यह समझ आ गया था कि राजनीति ही विकल्प है. इसलिए वे 2021 का विधानसभा चुनाव भी लड़ रहे हैं. शिवसागर विधानसभा सीट से. जेल से ही उन्होंने पर्चे भरा और उम्मीदवार बने. उनकी पार्टी समेत उनका परिवार भी चुनाव में लगा हुआ था.


गुवाहाटी हाई कोर्ट ने NIA की दलील खारिज कर अखिल गोगोई को जमानत दी है. फ़ोटो : NIA हेडक्वार्टर.
गुवाहाटी हाई कोर्ट ने NIA की दलील खारिज कर अखिल गोगोई को जमानत दी है. फ़ोटो : NIA हेडक्वार्टर.

उधर चुनाव खत्म होने के बाद 13 अप्रैल को गुवाहाटी हाई कोर्ट ने गोगोई को जमानत पर रिहा करने का आदेश दे दिया. NIA की याचिका खारिज करते हुए जस्टिस सुमन श्याम और जस्टिस मीर अल्फाज अली की बेंच ने कहा कि असैन्य प्रदर्शन की कोई भी गतिविधि उस समय तक UAPA कानून के तहत नहीं मानी जा सकती, जब तक कि उस प्रदर्शन से शांति भंग करने करने की किसी प्रवृत्ति के आसार न नजर आ रहे हों. इसलिए याचिकाकर्ता (अखिल गोगोई) को जमानत दी जा रही है.

बहरहाल अब सबकी रूचि इस बात में है कि 2 मई को होने वाली असम विधानसभा चुनावों की मतगणना में शिवसागर विधानसभा सीट से अखिल गोगोई विधानसभा में पहुंचने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं.


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