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Aditya L1 की सवारी कर रहे सभी सामान और उनके बड़े-बड़े काम जानते हैं आप?

Chadryaan 3 से बिल्कुल अलग और बेहद रोचक काम करने जा रही हैं इसमें लगी मशीनें. अब कैसे और क्या होगा सब जानिए

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आदित्य-L1 पर लगे उपकरण बहुत जटिल काम करते हैं (फोटो सोर्स - ISRO)

सूरज की स्टडी करने वाला भारत का आदित्य-L1 मिशन 2 सितंबर 2023 को 11 बजकर 50 मिनट पर श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया गया. आदित्य-L1 मिशन को सूरज की सतह से दूर रहकर, इस पर होने वाली घटनाओं और उनके प्रभावों का अध्ययन करना है. सूरज की ऊपरी सतह कोरोना की गर्मी, सोलर फ्लेयर, कोरोनल मास इंजेक्शन (CME) और सोलर स्टॉर्म जैसी इन घटनाओं के अध्ययन से कई जरूरी निष्कर्ष निकलने की उम्मीद है.
हम इनके बारे में आपको पहले भी बता चुके हैं, यहां पढ़ सकते हैं.

इन घटनाओं के अध्ययन से सौर मंडल के मौसम को लेकर हमारी समझ और बेहतर होगी. स्पेस में सूरज से निकलने वाले कई तरह के रेडिएशंस का प्रभाव भी समझा जा सकेगा. आदित्य-L1, ISRO का पहला स्पेस बेस्ड ऑब्जरवेटरी मिशन है. जानकारियां जुटाने के लिए इसमें कई तरह के पेलोड (उपकरण लगाए गए हैं. कौन-कौन से उपकरण हैं, और ये क्या काम करेंगे. विस्तार से समझते हैं.

विजिबल एमिशन लाइन कोरोनोग्राफ (VELC)

Visible Emission Line Coronagraph(VELC), ऑब्जरवेटरी का सबसे खास पेलोड है. ये एक रिमोट सेंसिंग उपकरण है. जैसे बुखार का पता लगाने के लिए डॉक्टर को नब्ज की रफ्तार और शरीर का तापमान हाथ रखकर देखना होता है. VLEC यही काम दूर से करेगा. यानी रिमोट सेंसिंग. इसका मुख्य काम सूरज की कोरोना की परत और CME की स्टडी करना है. VELC रोज के हिसाब से सूरज की 1 हजार 440 हाई रेजोल्यूशन इमेज उतारेगा. और इन तस्वीरों को ISRO के ग्राउंड स्टेशन तक भेजेगा.

सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT)

दूसरा सबसे काम का उपकरण है- Solar Ultraviolet Imaging Telescope (SUIT). ये सूरज की दूसरी ऊपरी सतहों जैसे फोटोस्फेयर और क्रोमोस्फेयर की Near Ultraviolet रेडिएशन वाली तस्वीरें उतारेगा. Ultra Violet यानी UV रेडिएशन, जीवित प्राणियों के लिए खतरनाक होता है, लेकिन सूरज से UV रेडिएशन भी निकलता है, और कुछ ऐसे रेडिएशन भी होते हैं, जिनकी वेवलेंथ विजिबल लाइट के करीब होती है. इन्हें Near UV रेडिएशन कहते हैं. हम इंसान इन्हें नहीं देख सकते लेकिन कुछ कीड़े, पक्षी और कुछ स्तनधारी इन्हें देख सकते हैं. सूरज की ऊपरी लेयर्स की गहन जांच-पड़ताल के लिए SUIT, इन लेयर्स की Near UV तस्वीरें उतारेगा. साथ ही सूरज से निकलने वाले रेडिएशंस के उतार-चढ़ाव को मापेगा. ये भी एक रिमोट सेंसिंग पेलोड है.

सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर

Solar Low Energy X-ray Spectrometer यानी SoLEXS और High Energy L1 Orbiting X-ray Spectrometer यानी HEL1OS. ये दोनों आदित्य-L1 की सैटलाइट में लगे हैं. ये दोनों एक साथ मिलकर रिमोट सेंसिंग का काम करेंगे. इनका काम है सूरज की सतह के X-रे फ्लेयर्स की तस्वीरें उतारना. फ्लेयर की वजह से सौरमंडल में बहुत कुछ ऐसा होता है जो इंसानों को नंगी आंख से नहीं दिखता. इसलिए इन उपकरणों को सैटलाइट के साथ जोड़ा गया है.

आदित्य सोलर वाइंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (ASPEX)

Aditya Solar Wind Particle Experiment यानी ASPEX और Plasma Analyser Package For Aditya यानी PAPA. इन दोनों उपकरणों का काम और खास है. ये सैटलाइट के चक्कर लगाने के दौरान बाकी उपकरणों से इकट्ठे किए गए डाटा को एनालाइज करेंगे. माने डाटा पर जो काम ISRO के ग्राउंड स्टेशन में बैठे वैज्ञानिकों को करना है, वो ये करके देंगे. खुद-ब-खुद. इस तरह के उपकरण किसी सैटलाइट में बहुत खास डाटा को एनालाइज करने या किसी खास स्टडी के लिए लगाए जाते हैं. आदित्य-L1 मिशन में लगे ये पेलोड सौर हवा के बारे में गहनता से स्टडी करेंगे. ASPEX का काम उस हवा में प्रोटॉन और बाकी भारी पार्टिकल्स का अध्ययन करना होगा, जबकि PAPA, इलेक्ट्रॉन और बाकी हल्के पार्टिकल्स की स्टडी करेगा.

एडवांस्ड ट्राई-एक्सियल हाई रेजोल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर्स

Advanced Tri-axial High-Resolution Digital Magnetometers- जैसा नाम से ही समझ आ रहा है, ये सूरज से निकलने वाली मैगनेटिक फील्ड लाइंस की स्टडी करेगा. हमने आपको लैंग्रेज प्वाइंट L1 के बारे में बताया था, जिसके इर्द-गिर्द आदित्य-L1 का सैटलाइट चक्कर लगाएगा. ये मैग्नेटोमीटर्स उसी प्वाइंट के आस-पास मैगनेटिक फील्ड की रीडिंग्स लेगा. और उस पर स्टडी करेगा.

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