आरे के जंगल क्या-कहां हैं?
मुंबई. अरब सागर के किनारे. फिल्में बनती हैं, और रोजाना लोगों की भीड़ जमा होती है फ़िल्मी सितारों को देखने के लिए. शूटिंग देखने के लिए. और शहर की आपाधापी से थोड़ा दूर, समंदर से थोड़ा दूर एक मोहल्ला है, गोरेगांव. गोरेगांव फिल्म सिटी भी यहीं. और यहीं पर है "आरे मिल्क कॉलोनी". आरे मिल्क कॉलोनी को देश के आज़ाद होने के थोड़े दिनों बाद ही बसाया गया था. सोचा गया था कि इस मिल्क कॉलोनी के बनने से डेयरी के काम को बढ़ावा मिलेगा. 4 मार्च 1951 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू खुद आए और पौधारोपण करके आरे कॉलोनी की नींव रखी.

आरे में पौधरोपण करते नेहरू.
कुल क्षेत्रफल 3,166 एकड़. स्थापना से लेकर अब तक आरे का विस्तार होता रहा. संजय गांधी नेशनल पार्क से जुड़कर आरे कॉलोनी के हरेपन में रोजाना बढ़ोतरी होती रही. और धीरे-धीरे मुंबईकरों ने आरे कॉलोनी और उसके कुछ हिस्सों को कुछ नाम दिए. जैसे - "छोटा कश्मीर", "मुंबई का फेफड़ा" और "आरे जंगल".
मतलब, इतना हराभरा कि कॉलोनी जंगल में तब्दील हो गयी, और मुंबई को थोड़ा ऑक्सीजन और मिलने लगा. कई रास्ते इतने घने-अंधेरे हो गए कि शाम 6 बजे के बाद उन रास्तों पर लोगों ने जाना बंद कर दिया. और ये छोटा कश्मीर इतना हरा कि बॉलीवुड की लो बजट फिल्मों के लिए ये हिल स्टेशन की लोकेशन साबित हुआ. खबरों की मानें तो ऋत्विक घटक की लिखी और बिमल रॉय द्वारा निर्देशित 1958 में आई फिल्म "मधुमती" की बहुत सारे हिस्सों की शूटिंग आरे के इन्हीं जंगलों में हुई. क्यों? कारण वही. फिल्म की कहानी थी नैनीताल में, और बजट था कुछ कम.
फिर जंगल पर संकट कहां से आ गया?
वहां से आ गया, जहां से मुंबई में मेट्रो आई. साल 2000 में मुंबई में मेट्रो बिछाने की बात होने लगी. परियोजना पर काम शुरू हुआ. 8 जून 2014 को मुंबई मेट्रो का पहला फेज़ जनता के लिए खोल दिया गया. वर्सोवा से घाटकोपर तक. इसी के साथ मुंबई मेट्रो को और बढाने की प्लानिंग शुरू हो गयी.

मुंबई मेट्रो, जिसके लिए पेड़ काटे जाने की योजना है.
साल 2015. राज्य सरकार ने कहा कि मेट्रो ट्रेन के कोच की पार्किंग हो सके, इसके लिए जगह चाहिए. और सरकार और मेट्रो कंपनी को जगह दिखी आरे कॉलोनी में. आरे कॉलोनी के सबसे हरे-भरे इलाके में मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन ने मांगी FSI 3 यानी फ्लोर स्पेस इंडेक्स बनाने की मांग की. परियोजना की लागत 23,136 करोड़ रुपए. इस परियोजना के लिए इलाके के 2 हज़ार पेड़ काटे जाने की बात होने लगी.
फिर क्या हुआ?
फिर मुंबई को Urban Jungle को समझ में आया कि असल हरे-भरे जंगल का क्या मतलब है. लोग लामबंद होने लगे. कोशिश करने लगे कि पेड़ न काटे जाएं. पर्यावरण संरक्षण संगठनों वनशक्ति और आरे बचाओ ग्रुप ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी NGT में याचिका दायर की. याचिका पर विचार करते हुए NGT की पुणे बेंच ने दिसंबर 2016 में आदेश जारी किया कि आरे इस जोन में कोई भी निर्माण कार्य न किये जाएं. लेकिन यहां पर ये बता देना ज़रूरी है कि आरे के कुल क्षेत्रफल की ज़मीन का कुछ हिस्सा राज्य सरकार और कुछ हिस्सा केंद्र सरकार के अधीन आता है.

आरे के जंगल को बचाने के लिए लम्बे समय से आन्दोलन हो रहे हैं.
अगले ही महीने यानी जनवरी 2017 में NGT ने मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन को यह छूट दी कि वह राज्य सरकार की 7.5 एकड़ ज़मीन पर काम किया जा सकता है. इसके बाद MMRC और NGT में लम्बे समय तक खींचतान शुरू हुई. लेकिन इसी बीच आया वन विभाग. राज्य वन विभाग ने NGT से कहा कि आरे कॉलोनी की ये ज़मीन कोई जंगल नहीं है. वन विभाग का भी तर्क सही माना जा सकता है. क्योंकि जब 1949 में आरे मिल्क कॉलोनी परियोजना की नींव रखी गयी, तो इस पूरी ज़मीन का उपयोग व्यावसायिक गतिविधियों के लिए होगा. लेकिन याचिकाकर्ताओं और तमाम प्रदर्शनकारियों का एक ही सोचना था, यहां ढेर सारे पेड़ हैं, तो जंगल हैं.

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस
फरवरी 2017 में महाराष्ट्र मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस के आग्रह पर MMRC ने आरे के जंगलों पर कुछ वक़्त तक सोचना छोड़ दिया. मेट्रो डिपो बनाने के लिए मुंबई यूनिवर्सिटी के पास के कंजूरमार्ग में संभावना तलाशी गयी. सफलता नहीं मिली. सरकार को जवाब दे दिया गया कि आरे ही मेट्रो डिपो के लिए सही जगह है. भारत के मेट्रोमैन कहे जाने वाले ई श्रीधरन ने भी राज्य सरकार को लिखा कि मेट्रो बनने से पर्यावरण को फायदा होगा. क्योंकि मेट्रो एक ईको फ्रेंडली प्रोजेक्ट है.
अदालत की बारी कब आई?
29 अगस्त 2019. बृहन्मुंबई महानगर पालिका ने मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन को इजाज़त दे दी कि इलाके के लगभग 2600 पेड़ काट दिए जाएं. और मेट्रो डिपो/शेड का काम शुरू किया जाए. लेकिन 2 सितम्बर को पर्यावरण एक्टिविस्ट जोरू भथेना ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी. याचिका दायर हुई कि पेड़ों की कटाई पर रोक लगायी जाए. साथ ही एनजीओ वनशक्ति द्वारा एक और याचिका दायर की गयी कि इस इलाके को इकोलॉजिकल सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया जाए.
इसके साथ ही आरे के जंगलों में लोग प्रदर्शन कर रहे थे. आम मुंबई निवासियों से लगायत तमाम फ़िल्मी सितारों तक. "सेव आरे" के तहत लोग एकजुट होने लगे थे. श्रद्धा कपूर, रवीना टंडन और लता मंगेशकर ने भी आरे को बचाने के लिए लोगों का साथ दिया. 2015 से शुरू हुआ आन्दोलन और बड़ा हो चुका था.

इस जंगल को बचाने के लिए फ़िल्मी हस्तियाँ और नेता भी जुट गए हैं
तारीख आई 4 अक्टूबर. बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाओं को खारिज कर दिया. कहा कि आरे जंगल नहीं है. चीफ जस्टिस प्रदीप नद्रजोग और जस्टिस भारती डांगरे की बेंच ने ये भी साफ़ किया कि याचिकाकर्ताओं को इस मामले में जो राहत चाहिए, वो या तो सुप्रीम कोर्ट से मिल सकती है, या तो NGT से.
आरे के मेट्रो शेड की जगह बदलने के पीछे बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है, सुप्रीम कोर्ट ने भी 16 अप्रैल 2019 को भी आरे में मेट्रो शेड की जगह बदलने की याचिका खारिज कर दी थी. संभव है कि "सेव आरे" से जुड़े लोग फिर से याचिका दायर करें.
और अब आरे है फिर से पेड़ खोने के पायदान पर.
राजनीति चमकी कैसे?
शिवसेना और भाजपा महाराष्ट्र में साथ में हैं. लेकिन आरे पर अलग-अलग. इन्ड्या टुडे कॉन्क्लेव में बोलते हुए शिवसेना के आदित्य ठाकरे ने कहा कि शिवसेना आरे में बनने जा रहे मेट्रो शेड का विरोध करेगी, लेकिन इसी कॉन्क्लेव में मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने कहा, "मेट्रो शेड वहीं बनेगा."

आदित्य ठाकरे
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