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ओल्ड मॉन्क रम का टेस्ट सबसे अलहदा क्यों है?

दुनिया भर को रम पिलाने वाले कपिल मोहन ने जिंदगी में कभी शराब चखी तक नहीं.

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ओल्ड मोंक रम को लेकर सोशल मीडिया पर लोग भावुक हुए जा रहे हैं
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पंकज जैन राजस्थान के नागौर के रहने वाले हैं. कॉलेज विज्ञान पढ़ा लेकिन दीदा लगा रहा आर्ट में. किताबों में कॉमिक्स छिपाकर पढ़ते हैं. पीरियॉडिक टेबल देखते-देखते खिड़की के पास चले जाते हैं और बाहर उड़ती पतंगें देखने लगते हैं.  खुद को चौराहेबाज कहते हैं. हर आशावादी युवा की तरह प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और प्यार हो जाने का इंतजार भी. कपिल मोहन की याद में उन्होंने कुछ लिखा है, पढ़ा जाए.

 
ओल्ड शब्द डालने पर पहला शब्द ओल्ड मॉन्क आता है. रम शब्द सुनते ही दिमाग में पहली तस्वीर ओल्ड मॉन्क की. ओल्ड मॉन्क को रम का पर्याय बनाने वाले कपिल मोहन 6 जनवरी के रोज 88 साल की उम्र में दुनिया से विदा हो लिए.
रम को पहली बार बनाने की कई कहानियां है और एक मान्य कहानी यह है कि रम को विकसित करने का श्रेय कैरेबिएन्स को है. वेन कर्टिस ने अपनी किताब And a bottle of rum में इसका जिक्र किया है. उन्होंने बताया कि 17वीं शताब्दी में कैरेबिएन्स गन्ना किसान अपनी इंडस्ट्रियल वेस्ट प्रॉब्लम्स से दुखी थे. कर्टिस ने अपनी किताब में बताया कि कैरेबिएन्स लोग गन्ने को कूट-कूट कर पारम्परिक तरह से शक्कर बनाते थे.

कपिल मोहन: ओल्ड मोंक रम को पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाने वाल शख्स
कपिल मोहन: ओल्ड मॉन्क रम को पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाने वाल शख्स


 गन्ने को कूटने से जो रस निकलता था, उसे मिट्टी के बर्तन में उबालते थे, जिससे उसमें गाढ़ा द्रव molasses (गुड़) प्राप्त किया जाता था. उससे शक्कर निकाल ली जाती थी और पीछे बचे कचरे को उनके गुलाम/चाकर और चौपायों को खिलाया जाता था. यह कचरा इतनी ज्यादा मात्रा में होता था कि इसे समुद्र में फेंका जाता था क्योंकि सुगम परिवहन के साधन उपलब्ध नहीं थे. इसी कचरे को उबालकर और प्रोसेस करके शायद पहली बार रम बनाई गई होगी.
रम और कपिल मोहन
भारत मे 1855 में स्कॉटलैंड के एडवर्ड अब्राहम (जिनके पुत्र एडवर्ड हैरी डायर ने जलियांवाला कांड करवाया था) ने ब्रिटिश लोगो को बियर उपलब्ध कराने के लिए हिमाचल प्रदेश के सोलन में ब्रूअरी लगाई. उस समय इसका नाम डायर मैकिन ब्रूअरी हुआ करता था और यह सिर्फ लॉयन नाम की एक बीयर बनाती थी. आजादी के बाद बाद यह ब्रुअरी नरेंद्र मोहन के हाथों में आ गई. 19 दिसंबर, 1954 में नरेंद्र मोहन ने पहली बार ओल्ड मॉन्क रम को बाजार में उतारा.

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दुनिया के 70 देशों में ओल्ड मॉन्क का डंका बज रहा है


1969 में नरेंद्र मोहन के मौत के बाद मोहन मेकिन ब्रुअरी की कमान कर्नल वी.आर मोहन के हाथों में आ गई. 1973 में वीआर की आकस्मिक मौत के बाद उनके छोटे भाई ब्रिगेडियर कपिल मोहन को मजबूरी में अपने घरेलू कारोबार में उतरना पड़ा. कपिल के आने से पहले ओल्ड मॉन्क मोहन मेकिन ब्रुअरी में बनने वाले बहुत से उत्पादों में से एक था.
कहते हैं कि कपिल मोहन शराब बनाने के मामले में कायदे के बहुत कायल थे. वो रम बनाने के उस तरीके को किसी धार्मिक अनुष्ठान की तरह अंजाम देते थे, जिसे उनके पिता ने शुरू किया. ओल्ड मॉन्क की सफलता के पीछे बड़ी वजह रही इस शराब को बनाने के लिए काम लिया जाने वाला पानी. 1855 में एडवर्ड अब्राहम ने इस ब्रुअरी की शुरुआत सोलन में इसलिए की क्योंकि यहां उन्हें प्राकृतिक स्रोतों से पानी मिलने में सुभीता थी. आज भी वही पानी ओल्ड मॉन्क को बनाने के काम लिया जाता है. भारत में निर्मित विदेशी शराब (IMFL) का सबसे बड़ा ब्रांड है. ओल्ड मॉन्क का जलवा 70 से ज्यादा देशों में कायम है और दुनियाभर में लोकप्रिय है.

ओल्ड मोंक के दीवानों की कमी नहीं है
ओल्ड मॉन्क के दीवानों की कमी नहीं है


काम के प्रति दीवानगी के साथ-साथ कपिल के काम करने की शैली ने ओल्ड मॉन्क को ऊंचाइयों पर पहुंचने में बहुत मदद की. जब तक इस कंपनी की कमान उनके हाथ में रही, उन्होंने ओल्ड मॉन्क के प्रचार में एक भी पैसा बर्बाद नहीं किया. एक इंटरव्यू में उन्होंने इस बारे में बताते हुए कहा-
"हम प्रचार नहीं करते. जब तक कमान मेरे हाथ में है, मैं करूंगा भी नहीं. मेरे प्रचार का सबसे बढ़िया जरिया है मेरा प्रोडक्ट. जब यह आपके सामने आता है, आप इसे चखते हैं. आपको अपने आप फर्क महसूस हो जाता है. आप पूछते है कि यह कौनसी शराब है. यह प्रचार पाने का सबसे सही तरीका है."
कपिल मोहन एक आध्यात्मिक व्यक्ति थे. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि उन्होंने आज तक कभी शराब चखी नहीं है. ओल्ड मॉन्क को इन ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाले और विश्वविख्यात करने वाले कपिल मोहन सेना में ब्रिगेडियर से रिटायर हुए हैं और उन्हें 2010 में पद्मश्री भी मिल चुका है.




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