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9/11 से पहले भी वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर एक बार हमला हुआ था

अब 11 सितंबर को ही अफगानिस्तान की तालिबान सरकार का शपथ ग्रहण होगा.

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दोनों तस्वीरें 1993 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले के बाद की हैं.
9/11. ये सुनकर हमारा मन-मस्तिष्क सहज ही बीस साल पुराना कैलेंडर पलटने लगता है. और, नज़र गोला बनाती है, उस तारीख़ पर जिसने लगभग पूरी दुनिया का चाल-चरित्र बदल कर रख दिया. वो तारीख़ थी, 11 सितंबर 2001. उस दिन अल-क़ायदा के आतंकियों ने चार यात्री विमानों को हाईजैक कर अमेरिका पर हमला किया था. न्यूयॉर्क का वर्ल्ड ट्रेड सेंटर इस हमले का एपिसेंटर था. हमले में इमारत के दोनों टॉवर्स धराशायी हो गए. मरने वालों की संख्या तीन हज़ार तक पहुंच गई थी. अमेरिका की धरती पर पहली बार इतना बड़ा हमला हुआ था. क्रिया की प्रतिक्रिया लाज़िमी थी. इसके बाद जो कुछ हुआ, उसके निशान आज तक देखने को मिल रहे हैं.
11 सितंबर 2021 को हमले के 20 साल पूरे हो जाएंगे. आज हम इसी विषय पर बात करेंगे. लेकिन क्या आपको पता है कि 9/11 के हमले से पहले भी एक बार वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को उड़ाने की कोशिश हुई थी? आठ साल पहले. 26 फ़रवरी 1993 को.
दोपहर का वक़्त था. इमारत में बने दफ़्तरों में खूब चहल-पहल थी. 12 बजकर 18 मिनट पर नॉर्थ टॉवर की पार्किंग में खड़ी एक वैन में जोर का धमाका हुआ. आतंकियों ने गाड़ी में 660 किलो विस्फोटक रखा हुआ था. उनका इरादा नॉर्थ टॉवर को उड़ाने का था. ताकि उसके भार से साउथ टॉवर भी गिर जाए. आतंकियों की ये साज़िश नाकाम रही. इमारत बच गई थी. इस हमले में छह लोगों की मौत हुई, जबकि एक हज़ार से अधिक लोग घायल हुए थे.
240 साल कैद की सज़ा
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया गया. मार्च 1993 में इसे दोबारा खोला गया. तब तक जांच एजेंसियों ने चार संदिग्धों को गिरफ़्तार कर लिया. लेकिन इस हमले का मास्टरमाइंड रेमज़ी युसुफ़ भागकर पाकिस्तान पहुंच गया. अगले दो बरस तक वो और आतंकी हमलों की प्लानिंग करता रहा. बोज्निका प्लॉट के तहत उसने फ़िलीपींस में पोप को मारने और एशिया से अमेरिका जा रहे 11 विमानों को उड़ाने का प्लान बनाया. लेकिन ये प्लान धरातल पर आने से पहले ही फ़ेल हो गया.
वो फिर से पाकिस्तान आया. अमेरिकी खुफिया एजेंसियां लगातार उसके पीछे लगीं थी. आख़िरकार, 07 फ़रवरी 1995 को अमेरिकी एजेंसियों को पक्की टिप हाथ लगी. उन्होंने इस जानकारी को आईएसआई के साथ साझा किया. इस्लामाबाद के जिस गेस्ट हाउस से रेमज़ी युसुफ़ को गिरफ़्तार किया गया, वहां वो खिलौने में बम फ़िट कर रहा था. बाद में उसे प्रत्यर्पित कर न्यूयॉर्क लाया गया. वहां उसके ऊपर मुकदमा चला. उसे दो आजीवन कारावास के साथ-साथ 240 साल की क़ैद की सज़ा सुनाई गई. इस दौरान उसे किसी भी तरह का पैरोल नहीं मिलेगा. रेमज़ी युसुफ़ फिलहाल कोलोराडो की जेल में बंद है.
रेमज़ी युसुफ़ के बारे में एक कहानी ख़ूब मशहूर है. ये तब की बात है, जब उसके ऊपर मुकदमा चल रहा था. जांच अधिकारी उसे हेलिकॉप्टर से कोर्ट ले जाते थे. एक दिन अधिकारी हेलिकॉप्टर को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के सामने ले गए. उन्होंने रेमज़ी को चिढ़ाते हुए कहा,
‘ये वही इमारत है जिसे तुम गिराना चाहते थे. गौर से देखो, वो इमारत अपनी जगह पर कायम है. लेकिन तुम कहां पहुंच गए.’
रेमज़ी ये सुनकर तुनक गया. उसने कहा,
‘अगर मेरे पास और पैसे होते तो ये कब की गिर चुकी होती.’
और फिर हुआ 9/11
रेमज़ी तो अपने प्लान में कामयाब नहीं हो पाया. लेकिन कुछ बरस बाद उसका सपना सच हो गया. 9/11 के हमले में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर ढह गया. इस हमले का मास्टरमाइंड कोई और नहीं बल्कि रेमज़ी युसुफ़ का मामा था. ख़ालिद शेख़ मोहम्मद. वो ओसामा बिन लादेन के सबसे चहेते लोगों में से एक था. रेमज़ी युसुफ़ की गिरफ़्तारी के बाद उसने लादेन का हाथ थाम लिया था. ख़ालिद शेख़ मोहम्मद ने लादेन के साथ मिलकर 9/11 हमले की पटकथा लिखी. इस हमले ने दुनिया को आतंकवाद का असली चेहरा दिखा दिया था.
9/11 के हमले के बाद दुनिया पहले जैसी नहीं रही. इसके बाद क्या कुछ बदल गया? 20 साल बाद भी दुनिया इससे क्यों नहीं उबर पाई है? साथ में बताएंगे 9/11 के हमले से जुड़ी कुछ आइकॉनिक तस्वीरों की कहानियां भी.
9/11 के हमले में सीधे तौर पर अल-क़ायदा का नाम सामने आ रहा था. इस गुट का सरगना ओसामा बिन लादेन सऊदी अरब का रहने वाला था. सोवियत-अफ़ग़ान वॉर में वो मुजाहिदीनों की तरफ़ से लड़ा भी था. मुजाहिदीनों को अमेरिका का सपोर्ट था. लड़ाई खत्म होने के बाद हालात बदल गए. तब तक लादेन अमेरिका का विरोधी हो चुका था. लंबे समय तक अमेरिका इस गुमान में रहा कि लादेन बस फ़ाइनेंशर है. वो सीधे तौर पर हमले की साज़िशें नहीं रचता है. 1998 में ये भरम टूट गया. जब सितंबर में एक ही दिन केन्या और तंज़ानिया में अमेरिका के दूतावासों पर हमले हुए. इन हमलों में दो सौ से अधिक लोग मारे गए. इसे लादेन के अल-क़ायदा के साथ कुछ और आतंकी संगठनों ने मिलकर अंज़ाम दिया था. इस घटना के तुरंत बाद एफ़बीआई ने लादेन को मोस्ट-वॉन्टेड लिस्ट में डाल दिया.
अमेरिका का दुश्मन नंबर-1
सितंबर 2001 में हुए हमले ने लादेन को अमेरिका का दुश्मन नंबर एक बना दिया था. 12 सितंबर 2001 को अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने देश को संबोधित किया. उन्होंने साफ़ लहजे में कहा कि अमेरिका अपनी पूरी ताक़त से आतंकियों को जवाब देगा. उन्होंने बाकी देशों को भी इस लड़ाई में साथ आने की अपील की. उनका दूसरा संबोधन आया, 20 सितंबर 2001 को. संसद के साझा सत्र में दिए भाषण में उन्होंने कहा,
‘हम हर उस राष्ट्र का पीछा करेंगे, जो आतंकवादियों को सुरक्षित पनाह मुहैया कराता है. दुनिया के देशों के पास निर्णय लेने के लिए दो ही विकल्प हैं, या तो आप हमारे साथ हैं या फिर आतंकियों के साथ.’
1996 में सूडान से निकाले जाने के बाद बिन लादेन को अफ़ग़ानिस्तान में शरण मिली थी. वहीं से वो पूरी दुनिया में हमले की प्लानिंग करता था. अफ़ग़ानिस्तान में अल-क़ायदा के ट्रेनिंग कैंप्स चलते थे. तालिबान का सुप्रीम लीडर मुल्ला ओमर, लादेन का सम्मान करता था. तालिबान और अल-क़ायदा दोनों के हित एक-दूसरे से जुड़े हुए थे. इसलिए, जब अमेरिका ने तालिबान के सामने मांग रखी कि अल-क़ायदा की लीडरशिप को हमारे हवाले कर दो. तो तालिबान ने साफ़ शब्दों में मना कर दिया. सात अक्टूबर 2001 को अमेरिका ने सहयोगी देशों और तालिबान-विरोधी नॉर्दर्न अलायंस के साथ मिलकर हमला कर दिया.
अमेरिका ने अल-क़ायदा के कई बड़े नेताओं को मार गिराया. उन्हें वहां लादेन तो नहीं मिला, लेकिन तालिबान की सत्ता से बेदखली ज़रूर हो गई. अमेरिका इस दावे के साथ अफ़ग़ानिस्तान में टिका रहा कि उसने तालिबान को पूरी तरह से हरा दिया है. और, अब अफ़ग़ानिस्तान आतंकियों की पनाहगाह नहीं बन सकेगा. ये एक छलावा था. अल-क़ायदा अफ़ग़ानिस्तान में बिखरा ज़रूर, लेकिन अलग-अलग जगहों पर उसकी शाखाएं फैल गईं. जिसे काबू में करने के लिए अमेरिका को कई और अंतहीन लड़ाईयां लड़नी पड़ीं.
आज काबुल की कुर्सी पर तालिबान का फिर से क़ब्ज़ा हो चुका है. अरबों-खरबों के आर्थिक नुकसान और हज़ारों सैनिकों की जान गंवाने के बाद अमेरिका और उसके सहयोगी हारकर वापस लौट चुके हैं. तालिबान ने अपनी अंतरिम सरकार का ऐलान कर दिया है. तालिबान ने नई सरकार के शपथ-ग्रहण की तारीख़ तय की है, 11 सितंबर 2021 की. वही तारीख़ जिसका बदला लेने के लिए अमेरिका ने तालिबान पर हमला किया था.
हमले के बाद और क्या हुआ?
अमेरिका ने संदिग्धों को रखने और उनसे पूछताछ के लिए ग्वांतनामो बे में एक हाई-सिक्योरिटी जेल तैयार की. ग्वांतनामो बे, क्यूबा में पड़ता है. 19वीं सदी के आरंभ से अमेरिका यहां पर अपना नौसैनिक अड्डा चला रहा है. ग्वांतनामो बे वाली जेल अमेरिका की धरती पर नहीं था. इसलिए, वहां पर अमेरिका के कानून लागू नहीं होते थे. ये जेल अस्थायी तौर पर बनाई गई थी. लेकिन बाद में क़ैदियों की संख्या बढ़ने लगी. फिर वहां पर और भी डिटेंशन कैंप्स बनाने पड़े.
ग्वांतनामो बे में अधिकतर क़ैदियों को बिना किसी चार्ज़ के रखा गया. जब वहां से अमानवीय टॉर्चर की तस्वीरें बाहर आईं तो मानवाधिकार संगठनों ने इसे बंद कराने के लिए अभियान चलाया. जिन बुश के आदेश से जेल तैयार हुई थी, उन्होंने भी इसे बंद करने की कोशिश की. लेकिन वो सफ़ल नहीं हो पाए. उनके बाद राष्ट्रपति बने बराक ओबामा भी ऐसा कर पाने में असफ़ल रहे.
ओबामा के बाद आए डोनाल्ड ट्रंप. उन्होंने ग्वांतनामो बे प्रिज़न को बंद करने की फ़ाइल को ताले में बंद कर दिया. 2021 में ट्रंप के नीचे से कुर्सी खिसक गई. जो बाइडन तीसरे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जो इस जेल को बंद करने की मुहिम में जुटे हैं. फिलहाल ग्वांतनामो बे में 39 क़ैदी हैं. बाइडन की मुहिम के तहत उनके ऊपर मुकदमा शुरू करने की तैयारी चल रही है. ग्वांतनामो बे में 48 देशों के कुल 780 क़ैदियों को रखा गया. इनमें से सिर्फ़ 16 के ऊपर मुकदमा चला. 732 क़ैदियों को या तो रिहा कर दिया गया या फिर उन्हें उनके देश वापस भेज दिया गया. नौ क़ैदियों की जेल में ही मौत हो गई.
9/11 के हमले के मुख्य साज़िशकर्ताओं में से एक ख़ालिद शेख़ मोहम्मद भी इसी जेल में बंद है. फ़रवरी 2008 में उसके ऊपर वॉर क्राइम और हत्या के चार्जेज़ लगाए गए. अभी तक उसका ट्रायल पूरा नहीं हुआ है.
मास सर्विलांस
9/11 के हमले से सबसे अधिक प्रभावित होने वाली चीज़ थी, लोगों की आज़ादी. कोई भी कहीं भी सुरक्षित नहीं रहा. हर समय लोग दहशत में रहने लगे. इस डर का इस्तेमाल दुनियाभर की सरकारों ने अपने फायदे के लिए किया. हमले के डेढ़ महीने बाद अमेरिकी संसद ने यूएस पैट्रिअट ऐक्ट को मंज़ूरी दी थी. इसके तहत, तीन मुद्दे फ़ोकस में थे. पहला, सुरक्षा एजेंसियों के बीच तालमेल बढ़ाना. दूसरा, आतंकवाद से जुड़े अपराधों के मामले में दी जाने वाली सज़ा. और तीसरा, सरकारी सर्विलांस के दायरे में विस्तार.
सरकार ने एजेंसियों को फ़ोन टैप करने की खुली छूट दे दी गई. जब 2013 में राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (NSA) के एक इंटेलीजेंस कॉन्ट्रैक्टर एडवर्ड स्नोडेन ने डेटा लीक किया तो पूरी दुनिया में तहलका मच गया. पता चला कि अमेरिकी एजेंसियां अपने ही लाखों-करोड़ों नागरिकों का डेटा टैप कर रही थी. अमेरिका एक ‘सर्विलांस स्टेट’ बन चुका था. सरकार सब पर नज़र रख रही थी. भले ही उनसे किसी को ख़तरा हो या ना हो.
स्नोडेन पर कानून के उल्लंघन और सरकारी संपत्ति की चोरी का मुकदमा लाद दिया गया. हालांकि, वो पहले ही देश छोड़कर मॉस्को जा चुके थे. अक्टूबर 2020 में रूस ने उन्हें स्थायी नागरिकता दे दी. स्नोडेन ने तकरीबन 15 लाख फ़ाइलें डेटाबेस से कॉपी कर ली कीं थी. लेकिन जानकारों का कहना है कि ये असली परिदृश्य का एक फीसदी भी नहीं है. आप सिर्फ़ अंदाज़ा लगा सकते हैं. सरकारों ने लोगों के डर को अपना हथियार बना लिया. जब भी निजी ज़िंदगी में दखल देने के आरोप सरकार पर लगते हैं, वो राष्ट्रीय सुरक्षा का झुनझुना पकड़ा देती है. पेगासस विवाद इसका ताज़ातरीन उदाहरण है.
अब बात आइकॉनिक तस्वीरों की
पहली तस्वीर तब की है, जब अमेरिका पर हमला हो रहा था. उस दिन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यु. बुश फ़्लोरिडा की यात्रा पर थे. हमले के समय वो एक प्राइमरी स्कूल के एक क्लासरूम में बच्चों से कहानियां सुन रहे थे. प्रेसिडेंट का आदेश था कि बहुत ज़रूरी न हो तो उन्हें डिस्टर्ब न किया जाए.
पहले हमले की ख़बर कुछ ही समय में प्रेसिडेंट के स्टाफ़्स तक पहुंच चुकी थी. अभी वे उधेड़बुन में ही थे कि प्रेसिडेंट तक ख़बर पहुंचाई जाए या नहीं, तभी दूसरे हमले की सूचना आ गई. अब प्रेसिडेंट को बताया जाना ज़रूरी हो गया था. इसका जिम्मा उठाया, चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ एंड्रयू कार्ड ने. वो कमरे में घुसे और उन्होंने प्रेसिडेंट के कान में कहा, ‘मिस्टर प्रेसिडेंट, अमेरिका इज अंडर अटैक’. अमेरिका पर हमला हुआ है.
बुश को कान में ये बात बताते कार्ड की तस्वीर फ़्रीज़ हो गई. बुश का चेहरा तन गया था. हालांकि, उन्होंने अपनी हरक़त से ऐसा कुछ ज़ाहिर नहीं होने दिया. उन्होंने बच्चों की कहानी पूरी होने का इंतज़ार किया. फिर सबको शुक्रिया कहा. और, सामान्य लहजे में क्लास से बाहर निकल गए.
Bush जब जॉर्ज डब्ल्यू बुश को 9/11 की ख़बर दी गई थी.

कई लोग आलोचना करते हैं कि बुश ने कहानी सुनने में लंबा वक़्त जाया किया. इसकी बजाय वो बाहर निकलकर लोगों की जान बचाने का इंतज़ाम कर सकते थे. वहीं दूसरी तरफ़, कईयों का मानना है कि बुश ने वहां रुककर ठीक किया. पहली बात तो ये कि वे टीवी पर लाइव दिखाए जा रहे थे. अगर वो घबरा जाते तो देशभर में पैनिक फैल जाता. दूसरी बात ये कि वहां बैठे रहने से उन्हें आगे के बारे में सोचने का पूरा वक़्त मिल गया.
अब दूसरी तस्वीर की तरफ चलते हैं. इसे दुनिया ‘द फ़ॉलिंग मैन’ के नाम से जानती है. इसे क्लिक किया था एसोसिएटेड प्रेस के फ़ोटो-पत्रकार रिचर्ड ड्रिउ ने. उस सुबह ड्रिउ एक फ़ैशन शो की शूट पर पहुंचे थे. तभी उन्हें पता चला कि वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हो गया है. इमारत तक पहुंचने के कुछ ही समय बाद दूसरा प्लेन भी टॉवर में घुस चुका था.
ड्रिउ की इस तस्वीर में एक शख़्स वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के नॉर्थ टॉवर से नीचे गिरता दिख रहा है. ये कभी स्पष्ट नहीं हो पाया कि उस व्यक्ति ने जान बचाने के लिए जान-बूझकर छलांग लगाई थी या वो सुरक्षित जगह की तलाश के दौरान नीचे गिर गया था. सबसे दिलचस्प बात ये कि उस व्यक्ति की पहचान भी कभी पता नहीं चल सकी. इसलिए, उसने नाम दिया गया ‘द फ़ॉलिंग मैन’.
Falling Man द फ़ॉलिंग मैन

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उस रोज़ वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से दो सौ से ज़्यादा लोग नीचे कूदे थे. लेकिन फ़ॉलिंग मैन की तस्वीर इस तरह क़ैद हुई की सबसे चर्चित और सबसे विवादित बन गई. जब अगले दिन इस तस्वीर को न्यूयॉर्क टाइम्स ने पब्लिश किया तो उनकी बड़ी आलोचना हुई. इसके बाद ये तस्वीर चलन से गायब हो गई. 2003 में एस्क्वायर ने इस तस्वीर पर विस्तृत रिपोर्ट पब्लिश की. उन्होंने द फ़ॉलिंग मैन की पहचान बाहर लाने के लिए कई कड़ियां जोड़ी, लेकिन अंत में रहस्य बना ही रह गया. भले ही फ़ॉलिंग मैन की पहचान कभी पता चले न चले, ये ज़रूर था कि उस तस्वीर ने 9/11 के हमले की वीभीषिका को बयां कर दिया था.
तीसरी तस्वीर का नाम है ‘सिचुएशन रूम’. इसे क्लिक किया था व्हाइट हाउस के फ़ोटोग्राफ़र पीट सुज़ा ने. ये तस्वीर तब की है, जब अमेरिका की सील टीम सिक्स पाकिस्तान के एबोटाबाद में एक खास ऑपरेशन को अंज़ाम दे रही थी. ये ऑपरेशन था, 9/11 के मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन की हत्या का.
Obama सिचुएशन रूम

इस तस्वीर में आपको बराक ओबामा दिख रहे हैं. वो एक कोने में सिकुड़े बैठे दिख रहे हैं. दावा किया जाता है कि कमरे में बैठे लोग ऑपरेशन को लाइव देख रहे थे. उस तस्वीर में ओबामा के चेहरे पर बिखरी बेचैनी उस समय के तनाव को बयां करने के लिए पर्याप्त थी. वे जेरोनिमो इकिया सुनने के लिए बेताब थे. जेरोनिमो लादेन का कोडनेम था. इकिया मतलब एनमी किल्ड इन एक्शन. ऑपरेशन सफ़ल रहा. 02 मई 2011 को लादेन मारा गया. अमेरिका ने दावा किया कि लादेन की लाश को समंदर में दफ़ना दिया गया है. अमेरिका ने 9/11 के हमले का बदला पूरा कर लिया था. लेकिन क्या सच में बदला पूरा हो गया था? ये सवाल आज तक कायम है.