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अनुच्छेद 370 की पूरी कहानी, जो सिर्फ जम्मू-कश्मीर के लिए बना था

जिसकी वजह से जम्मू-कश्मीर को कुछ खास अधिकार दिए गए थे.

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केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर के लिए संविधान में शामिल किए गए अनुच्छेद 370 के दो हिस्सों को खत्म कर दिया गया है.
भारतीय संविधान. वो लिखित दस्तावेज, जिससे हमारा पूरा देश चलता है. संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को पारित किया और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया. बनने में लगे दो साल, 11 महीने और 18 दिन. कुल 114 बैठकें हुईं और फिर 21 भागों में विभाजित 395 अनुच्छेदों और आठ अनुसूचियों के साथ इसे लागू किया गया. इसी संविधान के सहारे आज़ाद भारत की पूरी व्यवस्था चलने लगी लेकिन आजादी के बाद से ही जम्मू-कश्मीर पर विवाद रहा.
अमित शाह ने आज कहा है कि जम्मू-कश्मीर का विभाजन होगा और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केन्द्रशासित प्रदेश बनेंगे.
अमित शाह ने 5 अगस्त को कहा कि जम्मू-कश्मीर का विभाजन होगा और दो नए केन्द्रशासित प्रदेश बनेंगे.

15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ. कश्मीर रियासत के महाराज हरि सिंह ने कश्मीर के भारत में विलय को मंजूरी दे दी, जिस पर 27 अक्टूबर 1947 को गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन ने दस्तखत कर दिए. और जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दे दिया गया. इसके लिए संविधान में 17 अक्टूबर, 1949 को एक अनुच्छेद लाया गया था. अनुच्छेद 370. ये संविधान के भाग 21 का पहला अनुच्छेद है. इसके तीन हिस्से हैं-
1. इसके तहत राष्ट्रपति संसद के बने कानूनों और भारतीय संविधान के अनुच्छेदों को जम्मू-कश्मीर राज्य की विधानसभा की इजाजत से राज्य में लागू कर सकते हैं.
2. राज्य के लिए अगर कोई कानून बनना है तो उसे बनाने से पहले राज्य की संविधान सभा की मंजूरी लेनी होगी.
3. राष्ट्रपति इस अनुच्छेद को पब्लिक नोटिफिकेशन जारी करके खत्म कर सकता है. लेकिन इसके लिए राष्ट्रपति को राज्य की संविधान सभा की मंजूरी लेनी होगी.
भारतीय संविधान के भाग 21 का पहला अनुच्छेद है 370, जिसमें जम्मू-कश्मीर से जुड़े नियम बनाए गए हैं.
भारतीय संविधान के भाग 21 का पहला अनुच्छेद है 370, जिसमें जम्मू-कश्मीर से जुड़े नियम बनाए गए हैं.

ये एक मोटा-माटी व्याख्या है. इसी के तहत पूरे जम्मू-कश्मीर की व्यवस्था चलती रही और यही विवाद की जड़ भी थी. विवाद की जड़ इसलिए थी कि अगर इन तीनों बिंदुओं की व्याख्या की जाए तो एक बात साफ हो गई थी. और वो ये है कि जम्मू-कश्मीर का अपना अलग संविधान है. और इस संविधान ने जम्मू-कश्मीर को अलग से कुछ ताकतें दी हैं-
# अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है.
# इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर के बारे में संसद सिर्फ रक्षा, विदेश मामले और संचार के मामले में ही कानून बना सकती थी.
# अगर संसद ने कोई कानून बनाया है और उसे जम्मू-कश्मीर में लागू करना है तो राज्य की विधानसभा को भी इसकी मंजूरी देनी पड़ती थी.
# जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356 लागू नहीं होता था. इस अनुच्छेद के तहत भारत के राष्ट्रपति किसी भी राज्य की चुनी हुई सरकार को बर्खास्त कर सकते हैं.
# जम्मू-कश्मीर में जम्मू-कश्मीर के अलावा किसी दूसरे राज्य का नागरिक ज़मीन नहीं खरीद सकता है.
# जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल होता है.
# जम्मू-कश्मीर में पंचायत के पास कोई अधिकार नहीं है.
# जम्मू-कश्मीर का झंडा अलग है.
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जब जम्मू-कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी के गठबंधन की सरकार बनी थी और मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने थे, उस वक्त भी उनकी टेबल पर भारतीय झंडे के साथ कश्मीर का झंडा था.

# सूचना का अधिकार (आरटीआई) लागू नहीं होता है.
# शिक्षा का अधिकार (आरटीई) लागू नहीं होता है.
# जम्मू-कश्मीर में आईपीसी की धाराएं लागू नहीं होती हैं. इसके लिए अलग से आरपीसी यानी कि रणबीर पीनल कोड है, जिसके तहत किसी को दंड दिया जाता है.
जम्मू-कश्मीर में कैसे लागू हुआ था अनुच्छेद 370?
भारतीय संविधान का प्रारूप बनाने वाली समिति के एक मेंबर थे. नाम था एन गोपालस्वामी आयंगर. उनके पास जम्मू-कश्मीर के मामलों को भी देखने की जिम्मेदारी थी. जब जम्मू-कश्मीर के भारत के साथ आने की बात चल रही थी, तो उन्होंने संविधान में अनुच्छेद 306 (A) का प्रारूप पेश किया. इसके तहत जम्मू-कश्मीर को भारत के दूसरे राज्यों से अलग अधिकार मिलने की बात थी. बाद में इसी अनुच्छेद को खत्म करके अनुच्छेद 370 नाम दे दिया गया. 17 अक्टूबर, 1949 को इस अनुच्छेद को भारतीय संविधान में जोड़ दिया गया. उस वक्त गोपालस्वामी आयंगर ने बार-बार इस बात को दुहराया कि जनमत संग्रह करवाया जाएगा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा अलग से अपना संविधान बना सकेगी.
क्या अनुच्छेद 370 का प्रावधान अस्थायी था?

भारतीय संविधान के भाग 21 का पहला अनुच्छेद है 370. साफ लिखा गया है कि ये अनुच्छेद टेंपररी, ट्रांजिशनल और स्पेशल है.

भारतीय संविधान के भाग 21 की पहला अनुच्छेद है अनुच्छेद 370. अनुच्छेद 370 को इस आधार पर अस्थाई करार दिया जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पास इस बात का अधिकार था कि वो इस अनुच्छेद में संशोधन कर सके या फिर इसे खत्म कर सके. लेकिन जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने इसे बनाए रखने का फैसला किया था. दूसरी व्याख्या ये भी है कि जब तक जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह नहीं होता है, ये अनुच्छेद अस्थाई ही रहेगा.
क्या खत्म किया जा सकता है अनुच्छेद 370?
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अनुच्छेद 370 (3) में ही इस अनुच्छेद को हटाने का भी प्रावधान दिया गया है.

इसका जवाब है हां. अनुच्छेद 370 को राष्ट्रपति के आदेश से खत्म किया जा सकता है. अनुच्छेद 370 (3) में इसका प्रावधान है. इसके तहत अगर जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा अनुच्छेद 370 को हटाने की सिफारिश करती है, तो राष्ट्रपति उसे हटा सकता है. 26 जनवरी, 1957 को जब जम्मू-कश्मीर का संविधान लागू हो गया, तो संविधान सभा खत्म हो गई और उसकी जगह ले ली विधानसभा ने. ठीक उसी तरीके से, जैसे भारत की संविधान सभा खत्म हो गई और संसद अस्तित्व में आ गई. फिलहाल जम्मू-कश्मीर में विधानसभा भंग है और राज्यपाल ही सरकार चला रहे हैं. ऐसे में राज्यपाल की सिफारिश पर राष्ट्रपति अनुच्छेद 370 खत्म कर सकते हैं. 5 अगस्त को गृहमंत्री अमित शाह ने राष्ट्रपति के आदेश के हवाले से ही अनुच्छेद 370 के भाग दो और तीन को खत्म होने की बात कही है.
भारत जैसे देश के लिए अनुच्छेद 370 का क्या मतलब है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 में जिक्र है भारत के राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का. इसमें जम्मू-कश्मीर भी आता है. अनुच्छेद 370 वो माध्यम है, जिसके जरिए भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू होता है. केंद्र सरकार की ओर से अब तक 45 बार इस अनुच्छेद का इस्तेमाल करके भारतीय संविधान को जम्मू-कश्मीर में लागू करवाया गया है.

गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के अलावा ये बड़े बदलाव किए