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25 हजार का इंतजाम, आ गई लाखों की भीड़, अद्भुत थी आजादी की पहली सुबह

India Independence Day Celebrations 1947: जैसे ही रात के 12 बजे, शंख बजने लगे. नेहरू सहित संसद के सेंट्रल हॉल में मौजूद हर व्यक्ति की आंख में आंसू थे. महात्मा गांधी की जय, भारत माता की जय, जवाहर लाल नेहरू की जय के नारों से पूरी संसद एकाएक गूंज उठी. अगले पूरे दिन देश में आजादी का जश्न होना था. कैसा था ये जश्न? और आजादी वाले दिन लार्ड माउंटबेटन की कौन सी तमन्ना पूरी नहीं हो पाई.

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15 अगस्त 1947 को दिल्ली के इंडिया गेट पर आजादी का जैसा जश्न मनाया गया वह हमेशा के लिए यादगार बन गया | फोटो : गेट्टी इमेज

14 अगस्त 1947 की शाम को जवाहर लाल नेहरू दिल्ली के अपने 17 यॉर्क रोड स्थित घर में उस भाषण को तैयार करने में लगे थे, जो उन्हें कुछ ही घंटे बाद देश के लोगों को देना था. अचानक उनके फोन की घंटी बजती है. ये एक ट्रंक कॉल थी लाहौर से. दूसरे तरफ से बोल रहे शख्स की आवाज सुनने के बाद भी काफी देर तक नेहरू फोन पकड़े रहे. नेहरू के चेहरे के हाव भाव पूरी तरह बदल चुके थे. उन्होंने फोन का रिसीवर रखने के बाद दोनों हाथों को अपने चेहरे पर रख लिया. हाथ हटाए तो आंखो में आंसू भरे थे (How India celebrated 15 August 1947 Independence Day).

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बेटी इंदिरा ने पूछा तो बोले- 

'लाहौर में नए प्रशासन ने हिंदू और सिख इलाकों की पानी की सप्लाई काट दी है. छोटे-छोटे बच्चे तक प्यास से तड़प रहे हैं. औरतें-बच्चे जो भी पानी के लिए बाहर निकल रहे हैं, उन्हें मार दिया जा रहा है. कत्लेआम मचा है.'

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नेहरू ने रुंधाए गले से कहा,

'मैं आज कैसे देश को संबोधित कर पाऊंगा? जब मुझे पता है कि मेरे दिल का टुकड़ा लाहौर, मेरा लाहौर जल रहा है. मैं कैसे जता पाऊंगा कि मैं देश की आजादी पर खुश हूं,'

India Independence Day Celebrations 1947
फोटो: गेट्टी इमेज

इसके बाद इंदिरा ने अपने पिता को काफी देर दिलासा देने की कोशिश की. कुछ देर बाद नेहरू ने खुद को संभाला. और ठीक 11 बजकर 55 मिनट पर संसद के सेंट्रल हॉल में वह भाषण देना शुरू कर दिया जिसे दुनिया 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' के नाम से जानती है.

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उन्होंने कहा-

‘कई साल पहले हमने नियति से एक वादा किया था. अब वो समय आ गया है कि हम उस वादे को निभाएं. शायद पूरी तरह तो नहीं लेकिन बहुत हद तक ज़रूर. आधी रात के समय जब पूरी दुनिया सो रही होगी, भारत आजादी की सांस ले रहा होगा.’

इस दौरान जवाहर लाल नेहरू के मन में लाहौर या कहें तो पाकिस्तान भी था. बोले-

'इस मौके पर हमें अपने वो भाई और बहन भी याद आएंगे जो राजनीतिक सीमाओं की वजह से हमसे अलग-थलग पड़ गए, और वे उस आजादी की खुशियां नहीं मना सकते, जो हमारे पास आई है. वो लोग भी हमारे हैं और हमेशा हमारे ही बने रहेंगे चाहे जो कुछ भी हो.'

India Independence Day Celebrations 1947
फोटो: गेट्टी इमेज

जैसे ही रात के 12 बजे, शंख बजने लगे. नेहरू सहित संसद के सेंट्रल हॉल में मौजूद हर व्यक्ति की आंख में आंसू थे. महात्मा गांधी की जय, भारत माता की जय, जवाहर लाल नेहरू की जय के नारों से पूरी संसद एकाएक गूंज उठी. अगले पूरे दिन देश में आजादी का जश्न होना था. कैसा था ये जश्न? 30 हजार का इंतज़ाम और लाखों की भीड़. कैसे सब मैनेज हुआ? आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल की कौन सी ख्वाहिश पूरी नहीं हो पाई? और आजादी के इस जश्न से गांधी क्यों गायब थे? आज हम आपको ये सबकुछ बताएंगे.

माउंटबेटन के आंकड़े में 5 लाख लोगों की गलती

15 अगस्त 1947 यानी आज की तारीख।. डोमिनीक लापिएर और लैरी कॉलिंस ने अपनी किताब 'फ्रीडम एट मिड नाईट' में इस दिन का आंखो देखा हाल बयान किया है.

इंडिया गेट पर आजादी का जो कार्यक्रम होना था उसकी रणनीति लॉर्ड माउंटबेटन के सलाहकारों ने बनाई थी. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान हुए कार्यक्रमों के अनुभव से उन्हें अनुमान था कि 15 अगस्त के जश्न के लिए इंडिया गेट पर ज्यादा से ज्यादा 30 हजार लोग जुटेंगे. लेकिन, इस अनुमान में कुछ हजार की नहीं, बल्कि 5 लाख से ज्यादा की गलती थी. इससे पहले भारत की राजधानी में इतनी ज्यादा भीड़ नहीं देखी गई थी.

India Independence Day Celebrations 1947
फोटो: गेट्टी इमेज

चारों ओर फैले अपार जनसमूह ने झंडे के पास बने छोटे से मंच को इस तरह अपने आप में समेट लिया था, जैसे एक नाव बीच समुद्र में हिचकोले खा रही हो. भीड़ को रोकने के लिए लगाई गईं बल्लियां, बैंड वालों के लिए बनाया गया मंच, वीआईपी लोगों के बैठने की व्यवस्था, और रास्तों पर बांधी गई रस्सियां, सब कुछ लोगों के सैलाब में बह गई थीं. लोग सारी बाधाओं को तोड़ते हुए आगे बढ़ रहे थे.

India Independence Day Celebrations 1947
फोटो: गेट्टी इमेज

डोमिनीक लापिएर और लैरी कॉलिंस लिखते हैं,

'छतरपुर का एक किसान रंजीतलाल जो सुबह हो ना पायी थी और अपने गांव से चल पड़ा था, इस भीड़ में आकर खो गया था. वह अब तक समझता था कि भारत में इतनी भीड़ केवल गंगा स्नान के मेले के लिए होती है. भीड़ के बीच वो इस कदर पिसा जा रहा था कि अपने गांव से साथ लाई रोटी भी नहीं खा पाया. वह अपना हाथ उठाकर अपने मुंह तक नहीं ले जा सकता था.'

पामेला माउंटबेटन लोगों पर चढ़ते हुए मंच तक पहुंचीं

शाम के करीब 4 बजे थे. माउंटबेटन की बेटी पामेला अपने पिता के स्टाफ के साथ इंडिया गेट पहुंचीं. सामने जो नजारा था वो पहले कभी नहीं देखा था. मंच के आसपास तिल रखने को जगह नहीं थी. मंच से करीब 100 गज पहले से लोग जमीन पर बैठे हुए थे. पामेला को लग रहा था मानों कोई ठोस दीवार हो जिसे भेद पाना पामेला के बस की बात नहीं. तभी मंच पर बैठे जवाहरलाल नेहरू की नजर पामेला पर पड़ी. नेहरू ने जोर से पामेला को पुकारा और कहा, ‘लोगों के ऊपर से फांदती हुई चली आओ.’

‘कैसे आऊं मैंने ऊँची एड़ी की सैंडल पहन रखी है, लोगों को चुभेगी’, पामेला ने कहा.

नेहरू फिर बोले- 'सैंडल उतार लो'

लैरी कॉलिंस के मुताबिक पामेला ऐसे ऐतिहासिक मौके पर ऐसी अभद्रता करने के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकती थीं. उसने हांफते हुए फिर आने से मना दिया.

लेकिन नेहरू ने फिर कहा- 'नादान बच्चों जैसी बातें न करो, सैंडल उतारकर लोगों के ऊपर पैर रखकर चली आओ. कोई कुछ नहीं कहेगा.'

इसके बाद भारत के अंतिम वायसराय की बेटी ने एक ठंडी सांस ली. अपने सैंडल उतारकर हाथ में पकड़ लिए और मंच तक बैठे लोगों के ऊपर पांव रखती हुई आगे बढ़ी. लोग खुश होकर हँसते हुए पामेला को आगे बढ़ाने में मदद कर रहे थे. जब उसके पांव लड़खड़ाने लगते तो लोग उसे संभाल लेते. लोग हाथों में सैंडिल देख पामेला की लाचारी का आनंद भी उठा रहे थे.

India Independence Day Celebrations 1947
पामेला माउंटबेटन | फोटो: गेट्टी इमेज

पामेला ने उस दिन के बारे में अपनी किताब 'इंडिया रिमेंबर्ड' में भी लिखा है.

माउंटबेटन को बग्घी पर खड़े-खड़े करना पड़ा ये काम

पामेला माउंटबेटन जब मंच पर पहुंची तो जो दृश्य उन्होंने देखा, उसे वो ताउम्र नहीं भूल पाईं. मंच के चारों ओर उमड़े इंसानों के उस समुद्र में कई ऐसी महिलाएं भी थीं. जो आजादी के उल्लास में अपने दूध पीते बच्चों को रबड़ की गेंद की तरह हवा में उछाल देतीं और जब वे नीचे आ जाते तो फिर उन्हें वापस ऊपर को उछाल देतीं. इस तरह एक बार में हवा में सैकड़ों बच्चे उछाल दिए जाते.

इसी बीच काफी दूर, उन अंगरक्षकों की चमकीली पगड़ियां दिखाई दीं, जो लार्ड माउंटबेटन की सवारी के चारों तरफ चलते थे. भीड़ ने माउंटबेटन और उनकी पत्नी एडमिना को आते देखा तो एक लहर की तरह आगे को उमड़ पड़ी. आज तर्क के लिए कोई जगह नहीं थी. नफरत का कहीं कोई नामो निशाँ नहीं था. जिन अंग्रेज़ों की हाय-हाय में सालों बीते थे, आज उन्हीं में से एक को भीड़ आखों पर चढ़ाने को तैयार थी.

India Independence Day Celebrations 1947
फोटो: गेट्टी इमेज

आलम ये था कि माउंटबेटन के अंगरक्षक बग्घी का दरवाजा तक नहीं खोल पा रहे थे. बग्घी पर बैठे हुए माउंटबेटन समझ चुके थे कि मंच तक जाकर झंडा फहराना उनके बस की बात नहीं है.

माउंटबेटन ने वहीं से चिल्ला कर नेहरू से कहा,

'बस झंडा फहरा दिया जाए. बैंड के बजने का इन्तजार न किया जाए, बैंड वाले भीड़ में कहीं खो गए हैं. और सलामी देने वाले सिपाही अपनी जगह से हिल नहीं सकेंगे.'

मंच पर मौजूद नेहरू ने माउंटबेटन की आवाज़ सुनी और उनके इशारा करते ही हरे, सफ़ेद और केसरिया रंग का तिरंगा पोस्ट के ऊपर जाने लगा. तोपों से गोले छूटने लगे. लाखों लोगों से घिरे माउंटबेटन ने अपनी बग्घी पर ही खड़े-खड़े तिरंगे को सलामी दी.

India Independence Day Celebrations 1947
प्रतीकात्मक फोटो: आजतक

बताते हैं कि जैसे ही तिरंगा लहराया, पश्चिम दिशा की ओर आसमान में एक बड़ा सा 'इंद्र धनुष' दिखाई दिया. माउंटबेटन ने अपनी उंगली उठायी और आसमान की ओर इशारा किया.

डोमिनिक लापिएर लिखते हैं,

'भारतीय जो मानते आए थे कि इंसान के भाग्य का फैसला ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति से होता है, उनके लिए इंद्र धनुष का निकलना एक दैवीय संकेत था. सबसे अद्भुत बात तो ये थी कि इंद्रधनुष के हरे, पीले और नीले रंग भी इंद्रधनुष के बींचो-बीच आसमान में लहराते तिरंगे के रंगों जैसे ही लग रहे थे. चमकते इंद्रधनुष को देखकर भीड़ में से किसी ने चिल्लाकर कहा- जब ईश्वर खुद हमें बधाई दे रहे हैं तो अब हमारे सामने कौन टिक सकता है.'

India Independence Day Celebrations 1947
फोटो: गेट्टी इमेज
15 अगस्त 1947 को महात्मा गांधी कहां थे? 

इस ‘नॉट सो इनफाइनाइट’ ब्रह्माण्ड के इस छोटे से हिस्से में जब इतिहास एक बड़ी करवट ले रहा था. जश्न के बीच एक शख्स गायब था. महात्मा गांधी अपने नामकर्ता, गुरुदेव टैगोर की धरती पर एक जले हुए मकान की पहली मंज़िल पर सो रहे थे.

5 दिन पहले ही गांधी कलकत्ता पहुंचे थे.पहुँचते ही उनके खिलाफ नारे लगे, गांधी वापस जाओ. गांधी ने अपनी लाठी ली और सड़कों पर निकल गए. लोगों से मिले, नेताओं से मिले. चेतावनी दी,    

'आज से आपको कांटों का ताज पहनना है. सत्य और अहिंसा को बढ़ावा देने के लिए निरंतर कोशिश करते रहें. विनम्र रहें. धैर्यवान बनें. इसमें कोई शक नहीं कि ब्रिटिश राज ने आपकी कड़ी परीक्षा ली है, लेकिन आगे भी यह परीक्षा बार-बार होती रहेगी. सत्ता से सावधान रहें. सत्ता भ्रष्ट बनाती है. इसकी चमक-दमक में खुद को फंसने मत दें. आपको याद रखना है कि आपको भारत के गांवों में रह रहे गरीब की सेवा के लिए यह सत्ता मिली है. ईश्वर आपकी सहायता करे.’

India Independence Day Celebrations 1947
 गांधी जी ने बेलियाघाट रोड पर प्रार्थना सभा को सम्बोधित किया

इसके बाद गांधी ने बेलियाघाट रोड पर प्रार्थना सभा को सम्बोधित किया. बताते हैं कि उस दिन तकरीबन 30 हजार लोग शंख बजाते हुए प्रार्थना सभा में शामिल हुए थे. कलकत्ता के लोगों को बधाई देते हुए उन्होंने कहा,

'शांति रखने के लिए आप सब का बहुत-बहुत ध्यन्यवाद, आशा करता हूं आप लोगों की शानदार मिसाल से शायद पंजाब को भी कुछ प्रेरणा मिले...और पाकिस्तानियों को भी... उन्हें भी खुदा सद्बुद्धि प्रदान करे.'

कलकत्ता को लाशों से पाटने वाले सुहरावर्दी को गांधी ने बदल दिया

उस दिन गांधी जी के साथ वो व्यक्ति भी प्रार्थना सभा में मौजूद था, जिसे उनका बहुत बड़ा आलोचक माना जाता था. जिसे कलकत्ता में हुई हिंसा का जनक भी कहा गया था. जिसने कुछ समय पहले ही जिन्ना के 'डायरेक्टर एक्शन डे' पर कलकत्ता शहर में आतंक मचा कर रख दिया था. इस शख्स का नाम था 'सुहरावर्दी'.

India Independence Day Celebrations 1947
प्रतीकात्मक फोटो: एफपी/आजतक

सुहरावर्दी कलकत्ता के मुसलमानों के माने हुए नेता थे. कत्लेआम मचाने के बाद भी बापू के कलकत्ता में शांति बहाली के लिए बुलाने पर वो आए. 15 अगस्त को वो महात्मा गांधी के साथ प्रार्थना सभा में मौजूद थे. गांधी के बाद सुहरावर्दी ने सभा को संबोधित किया. कहा,

'पिछले साल कलकत्ता में हुई मौतों की जिम्मेदारी लेता हूं, मैं बहुत शर्मिंदा हूं. अब हमारा देश भारत है, आप लोग 'जय हिन्द' का नारा लगाने में मेरा साथ देकर इस मेल-जोल को हमेशा के लिए अमर कर दें.'

बताते हैं कि सभा खत्म हुई तो गांधी एक गाड़ी पर बैठकर कलकत्ता का चक्कर लगाने निकले. इस बार उन्हें कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला जिसके हाथ में पत्थर या हथियार हो, या कोई गुस्से में उनके पास आया हो. इस बार कलकत्ता के हर नुक्क्ड़ पर उन पर फूलों और गुलाब जल की वर्षा हो रही थी.

India Independence Day Celebrations 1947
फोटो: आजतक

कुछ दिन पहले तक शमशान बना हुआ कलकत्ता 15 अगस्त को एकदम शांत था. ये शान्ति गांधी की बदौलत थी.  अगले दिन मुस्लिम लीग के अख़बार में छपा-

‘गांधी मरने को तैयार थे, ताकि हम शांति से जी सकें.'

ये खबर जब लॉर्ड माउंटबेटन तक पहुंची तो उन्होंने गांधी को एक ख़त लिख़ा,

‘पंजाब में 55 हज़ार सैनिक बल तैनात हैं और फिर भी हम दंगों को रोकने में नाकाम रहे. बंगाल में फ़ोर्स के नाम पर केवल एक आदमी है और इसके बावजूद वहां दंगे नहीं हो रहे.'

माउंटबेटन ने पत्र के अंत में लिखा कि एक सर्विंग ऑफ़िसर होने के नाते वे इस ‘वन मैन बाउंड्री फ़ोर्स’ को शुक्रिया अदा करना चाहते हैं

वीडियो देखें : तारीख: आम्बेडकर क्यों चाहते थे भारत को एक बार में आजादी न मिले?

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