The Lallantop

रिवर्स इंजीनियरिंग से दुनिया ने बनाए जेट इंजन, फिर नियमों में क्यों उलझा है इंडिया

Nautical Wings Aerospace के सीईओ Shiv Varun Singh कहते हैं कि भारत के पास मौजूदा फाइटर जेट्स में रूस, फ्रांस से लेकर अमेरिका तक के इंजन हैं. फिर भी भारत इनमें से किसी की Reverse Engineering नहीं कर पाया.

Advertisement
post-main-image
रफाल में लगने वाले साफरान का जेट इंजन (PHOTO-Safran)

सोचिए, अगर भारत के पास अपना खुद का धांसू जेट इंजन होता तो तेजस की किताब में देरी वाला चैप्टर ही ना होता. और AMCA… वो तो शायद अबतक आसमान में करतब दिखा रहा होता. लेकिन जेट इंजन टेक्नोलॉजी है ही इतनी कीमती कि दुनिया इसे लॉक कर रखती है. हाल में Nautical Wings Aerospace के सीईओ शिव वरुण सिंह ने बताया कि हमारे फाइटर्स में रूस का सुखोई इंजन, फ्रांस वाला रफाल इंजन और अमेरिका वाला GE इंजन सब मौजूद हैं. तीनों महाशक्तियों की टेक्नोलॉजी हमारी जेब में है. फिर भी किसी का राज़ चुरा नहीं पाते. रिवर्स इंजीनियरिंग यहां बच्चों का खेल नहीं. यही वजह है कि अपने इंजन के सपने की उड़ान अभी तैयारी वाले रनवे पर है.

Add Lallantop as a Trusted Sourcegoogle-icon
Advertisement
रिवर्स इंजीनियरिंग से ही सबने इंजन बनाए 

शिव वरुण सिंह की कंपनी Nautical Wings Aerospace बेंगलुरू बेस्ड कंपनी है. ये कंपनी एरियल सिस्टम्स को इलेक्ट्रिफाई करने की दिशा में काम कर रही है. शिव वरुण सिंह ने एक यूट्यूब पॉडकास्ट Vaad में इस बात पर हैरानी जाहिर की कि भारत के पास तेजस में लगने वाले GE F-404 जैसे एडवांस जेट इंजन हैं. उन्होंने बताया कि दुनिया भर के अधिकतर जेट इंजन रिवर्स इंजीनियरिंग कर के ही बनाए गए हैं. फिर भी भारत ने अब तक इस रिवर्स इंजीनियर क्यों नहीं किया. शिव वरुण सिंह कहते हैं,

चाइनीज का पहला काम क्या है? जो मिले उसे खोल कर देखो और फिर अपना बनाने की कोशिश करो. मुझे इस बात पर बड़ी हैरानी होती है कि हमने अब तक ऐसा क्यों नहीं किया?

Advertisement

पॉडकास्टर ने शिव वरुण सिंह से पूछा कि रिवर्स इंजीनियरिंग न कर पाने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? इस पर शिव वरुण सिंह कहते हैं,

मुझे लगता है कि हमारे यहां थोड़ी ब्यूरोक्रेसी ज्यादा है. कुछ तो फंडिंग की भी दिक्कत है. अगर हमारे सरकारी संस्थानों में ये माइंडसेट हो कि फेल होना असल में फेलियर नहीं है तो अच्छा होता. फेल हो, लेकिन फेल फास्ट. आज टेस्ट करो- अगले दिन डाटा निकालो, और फिर ड्रॉइंग बोर्ड पर सुधार कर के फिर से टेस्ट करो.

क्या होती है रिवर्स इंजीनियरिंग?

इंजीनियरिंग को दो अलग-अलग तरह से बांटा जा सकता है – फॉरवर्ड इंजीनियरिंग और रिवर्स इंजीनियरिंग. एयरोस्पेस सेक्टर पर काम करने वाली वेबसाइट Airframe Designs के मुताबिक दोनों में फर्क यह है कि बनाने का प्रोसेस कहां से शुरू होता है. फॉरवर्ड इंजीनियरिंग थ्योरेटिकल डिजाइन के एक सेट से शुरू होती है और फिर उन डिजाइन का इस्तेमाल करके एक फिजिकल प्रोडक्ट बनाया जाता है.

Advertisement

इसके उलट, रिवर्स इंजीनियरिंग (जिसे कभी-कभी बैकवर्ड इंजीनियरिंग भी कहा जाता है), प्रोडक्ट की स्टडी करके शुरू होती है ताकि यह समझा जा सके कि यह कैसे काम करता है, इसे कैसे बनाया गया और इसे कैसे कॉपी, रिपेयर या बेहतर बनाया जा सकता है. रिवर्स इंजीनियरिंग से यह गहराई से समझने में मदद मिलती है कि कोई चीज़ सभी लेवल पर कैसे काम करती है. रिवर्स इंजीनियरिंग प्रोसेस के दौरान, प्रोडक्ट की स्टडी और एनालिसिस कर उसे तोड़ा जाता है. ऐसा कर के उसके डिजाइन और काम करने के तरीके की प्रैक्टिकल और पूरी जानकारी निकाली जाती है.

एयरफ्रेम पर पड़ रहा असर

शिव वरुण सिंह कहते हैं कि एक दिक्कत जो जेट इंजन न बनाने की वजह से आ रही है, वो है एयरफ्रेम. अगर हमारे पास अपना इंजन होता तो हम जो भी विमान बनाना चाहते हैं, उसके एयरफ्रेम, डिजाइन आदि के लिए भी स्वतंत्र होते. लेकिन अभी समस्या ये है कि हम जो भी बनाएंगे, उदाहरण के लिए तेजस. हमें वो GE Aerospace के इंजन को ध्यान में रखते हुए, उसके मुताबिक डिजाइन करना होता है. लिहाजा खुद का जेट इंजन न होना न सिर्फ इंजन की कमी, बल्कि इनडायरेक्टली जिजाइन तक पर असर डालता है. 

(यह भी पढ़ें: JF-17 vs Tejas: इंजन की लड़ाई में क्यों पीछे रह गया भारत?)

शिव वरुण सिंह कहते हैं कि अगर हम किसी भी कंपनी मसलन Rolls Royce से कहते हैं कि हमारे लिए एक कस्टमाइज्ड इंजन बनाओ, तो भी शायद इसे बनते-बनते 10 साल लग सकते हैं. ऐसे में जरूरी है कि भारत रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दे.

वीडियो: आसान भाषा में: 'कावेरी इंजन', जिससे आत्मनिर्भरता के साथ-साथ मिलेगी एयरफोर्स को नई ताकत

इस पोस्ट से जुड़े हुए हैशटैग्स
Advertisement