बाहुबल, दबंगई और अपराध की चर्चा के साथ ही बिहार के मोकामा इलाके का परिचय शुरू होता है. अपने ‘अटपटे’ और ‘ब्लंट’ जवाबों के चलते रील्स की दुनिया में काफी पॉपुलर हो चुके अनंत सिंह इसी इलाके से कई बार विधायक बने हैं. इसी क्षेत्र से दुलारचंद यादव भी थे, जिनकी गुरुवार, 30 अक्टूबर को मोकामा के तारतर गांव में हत्या हो गई. दुलारचंद कभी अनंत सिंह के बड़े भाई के करीबी होते थे. अब उनकी हत्या के बाद अनंत सिंह पर आरोप लग रहे हैं.
कौन थे दुलारचंद यादव जिनकी हत्या का आरोप अनंत सिंह पर लगा है?
बिहार के मोकामा में जन सुराज के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के सपोर्टर दुलारचंद यादव की हत्या ने हड़कंप मचा दिया है. आरोप मोकामा के पूर्व विधायक अनंत सिंह पर लगे हैं. मामले में उन पर केस भी दर्ज कर लिया गया है.


दुलारचंद यादव की हत्या क्यों हुई, किसी को इस बारे में साफ-साफ नहीं पता. हालांकि इलाके में उनकी आपराधिक और राजनैतिक मौजूदगी कुछ ऐसी थी कि यहां उनके दुश्मनों की कोई कमी नहीं रही होगी.
मोकामा के घोसवारी थाना इलाके में एक गांव है तारतार, जहां दुलारचंद पैदा हुए थे. वो यहीं के निवासी थे लेकिन रहते थे बाढ़ में. बाढ़ एक जमाने में लोकसभा क्षेत्र हुआ करता था, जहां से नीतीश कुमार सांसद बनते थे. साल 2008 के परिसीमन में इस सीट को खत्म कर दिया गया था. नीतीश कुमार साल 1989 से 1999 तक इस सीट से लगातार सांसद रहे.
दुलारचंद यादव के बारे में बताया जाता है कि वो पहले पहलवानी किया करते थे. मोकामा के वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन शर्मा के मुताबिक,
जब नीतीश पर लगा हत्या का आरोप“पहलवानी करते-करते वह दबंगई भी करने लगे. तभी से इनकी छवि एक ‘उद्दंड’ की हो गई थी. बाद में जब 1990 में लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने, तो ये यादव जाति से होने के नाते उनके सपोर्ट में आ गए. पॉलिटिक्स में आने के बाद ‘छवि सुधार’ के तहत उन्होंने अपनी प्रवृत्ति भी बदली. यही वो समय है, जब उनकी नजदीकी नीतीश कुमार से भी बढ़ी और ये उनके साथ-साथ रहने लगे.”
लल्लनटॉप की ही एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1991 की बात है. बाढ़ लोकसभा क्षेत्र में उपचुनाव हो रहा था. नीतीश कुमार जनता दल के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे थे. वोटिंग वाले दिन की शाम को एक बूथ पर फायरिंग हो गई. सीताराम सिंह नाम के एक कांग्रेस कार्यकर्ता की मौत हो गई. नीतीश कुमार पर आरोप लगा कि उन्होंने सीताराम को वोट डालने से मना किया था. जब वो नहीं माने तो ‘नीतीश ने अपनी राइफल से गोली चला दी’. सीताराम की मौत हो गई.
आरोप ये भी लगा कि इस वारदात के समय नीतीश के साथ 4 और लोग थे. एक तो मोकामा के पूर्व विधायक अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह थे. दूसरे बौधु यादव. तीसरे योगेंद्र प्रसाद और चौथे थे- यही दुलारचंद यादव. उस जमाने में नीतीश से उनकी ऐसी दोस्ती रही थी.
प्रियदर्शन बताते हैं कि दुलारचंद इसी समय दिलीप सिंह के भी करीब आए, जो लालू यादव की पार्टी से 1990 और 1995 में चुनाव जीते थे. इस दौरान ही दुलारचंद यादव की दबंगई बढ़ती गई. इलाके में उनका वर्चस्व बढ़ता गया. कई गांवों में इनका प्रभाव हो गया. इसके बाद तो वो कई जगहों पर वोट भी ‘मैनेज’ करने लगे.
हालांकि, इस बीच बिहार में राजनीतिक रिश्ते तेजी से बदले. नीतीश-लालू की राहें अलग हो गईं. दुलारचंद भी बारी-बारी से कभी लालू, कभी नीतीश तो कभी दिलीप सिंह के ‘प्यादे’ बनते रहे. उनके लिए काम करते रहे.
एक तरफ वह लगातार लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी का पक्ष लेते थे, लेकिन विधानसभा चुनाव लड़े तो किसी और पार्टी से. साल 2010 में जनता दल सेक्युलर के टिकट पर बाढ़ विधानसभा चुनाव में उतरे. लेकिन बुरी तरह से हारे.
प्रियदर्शन कहते हैं,
दुलारचंद ऐसे कोई बहुत बड़े क्रिमिनल-बाहुबली भी नहीं थे. हालांकि 30-32 बार इनका जेल आना-जाना लगा रहा है. 32 बार जेल भी गए तो कभी चोरी में. कभी हत्या की कोशिश में. किसी के भैंस खोल लेने के मामले में या किसी को थप्पड़ मार देने में. यही सब मामला रहा. लेकिन किसी दौर में कहा जाता था कि बिहार में यादवों में जितने गुंडे हैं, सब लालूजी के संरक्षण में रहे. तो ये ऐसे ही थे. आरजेडी के समर्थक.
हालांकि, मौजूदा बिहार विधानसभा चुनाव में दुलारचंद, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के साथ घूम रहे थे. उन्हीं के लिए प्रचार कर रहे थे. एक इंटरव्यू में उन्होंने पीयूष प्रियदर्शी को अनंत सिंह के ‘छोटे सरकार’ की काट के तौर पर ‘बड़े सरकार’ घोषित कर दिया था. उन पर जिस समय हमला हुआ, उस समय भी वह पीयूष के ही काफिले में थे.
प्रियदर्शन बताते हैं, “पीयूष प्रियदर्शी को दुलारचंद ने ये भरोसा दिलाया था कि वह उनको आरजेडी से टिकट दिलवा देंगे. लेकिन ये खुद आरजेडी के एक मामूली समर्थक थे. टिकट दिला नहीं पाए तो उनके साथ-साथ घूमते थे.”
अनंत सिंह का कट्टर विरोधदुलारचंद, अनंत सिंह के कट्टर विरोधी थे. ये अलग बात है कि एक समय में उन्होंने अनंत सिंह की तारीफ में खूब कसीदे पढ़े हैं. इंडिया टुडे से जुड़े पत्रकार पुष्यमित्र बताते हैं कि दुलारचंद अनंत सिंह पर लगातार पर्सनल कॉमेंट कर रहे थे. सोशल मीडिया पर या किसी इंटरव्यू में. हाल ही में एक इंटरव्यू में उन्होंने अनंत सिंह की विधायक पत्नी नीलम सिंह को ‘नचनिया’ बता दिया था. इसके अलावा अनंत सिंह को लेकर उन्होंने कहा था, “उसे चश्मा लगा है. आंख खराब हो गया है.” एक सभा में अनंत सिंह का मंच गिर गया तो उस पर कह दिया, “इसका तो कमर टूट गया है.”
ऐसे ही एक इंटरव्यू में पूछा गया कि मोकामा के बाहुबली अनंत सिंह हैं या सूरजभान, तो दुलारचंद बोले,
मोकामा में हत्यादोनों जब थे, तब थे. अभी तो एक का (अनंत सिंह का) अंखिया है फूटल. तो चश्मा लगैले रहता है. एगो का (सूरजभान का) गोड़ा है घायल. बैंडेज नहीं लगाकर चलेगा तो एक दिन भी नहीं चल पाएगा.
गुरुवार, 30 अक्टूबर की बात है. दुलारचंद पीयूष प्रियदर्शी के काफिले के साथ प्रचार कर रहे थे. मोकामा टाल में अनंत सिंह भी अपने दल-बल के साथ वोट मांगने निकले थे. विधानसभा क्षेत्र के तारतर गांव में दोनों के काफिले का आमना-सामना हो गया. अनंत सिंह के समर्थक और दुलारचंद के बीच झड़प हो गई. इसी दौरान दुलारचंद की मौत हो गई. उनके परिवार ने आरोप लगाया कि ‘अनंत सिंह ने उनकी हत्या कराई’ है. अनंत सिंह कह रहे हैं कि ये सूरजभान का काम है.
फिलहाल बिहार चुनाव पर इस हत्याकांड की चर्चा हावी है.
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