Cloudburst Reason: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में मंगलवार, 05 अगस्त को बादल फटने से बड़ा हादसा हो गया (Uttarkashi Cloudbursts). बादल फटने से खीर गंगा नदी में अचानक बाढ़ आ गई. इस बाढ़ ने पूरे धराली इलाके को जलमग्न कर दिया. इस आपदा में अब तक चार लोगों की मौत हो गई, जबकि 50 से ज्यादा लोगों के लापता होने की आशंका है. इस जलप्रलय में सड़कें, मकान, दुकान सब कुछ पानी में बह गए, यहां तक कि कई वाहनों को भी नदी का पानी अपने साथ बहा ले गया. बादल फटने (Cloudbursts) की ऐसी घटनाएं पहले भी हुईं हैं. लेकिन सवाल ये है कि आखिर ये बादल फटने का मतलब क्या होता है, जिसमें इतने लोगों की जान चली जाती है?
बादल फटता क्यों है? इस आपदा से बचने का कोई तरीका मौजूद है?
Uttarkashi Cloudbursts: उत्तरकाशी में बादल फटने से भारी तबाही हुई है. बादल फटने की ऐसी घटनाएं पहले भी हुईं हैं. लेकिन सवाल ये कि ये बादल फटने का मतलब क्या होता है? कैसे बादल फटता है?

बादल में कोई सिलाई नहीं होती जो उधड़ जाए, न उसका कपड़ा कमज़ोर थान का होता है जो ज़ोर पड़ने पर फट जाए. एक वक्त था जब पब्लिक मानती थी कि बादल गुब्बारे जैसा होता है जो कभी फट पड़ता है तो ताबड़तोड़ बारिश होने लगती है. फिर एक दिन एक सयाने ने बादलों पर रिसर्च की और बताया कि बादल भाप के बने होते हैं. बादल फिर गुब्बारे नहीं माने गए. लेकिन 'बादल फटना' जो नाम पड़ा था, पड़ा रह गया.

बादल फटना और बारिश दोनों में आसमान से पानी गिरता है. फर्क होता है पानी की मात्रा का, माने क्वांटिटी का. कंफ्यूज़न नहीं हो, इसलिए सयाने लोगों ने तय कर रखा है कि एक घंटे के अंदर 100 एमएम या उससे ज़्यादा पानी बरस जाए तो उसे बादल फटना या क्लाउड-बर्स्ट कहा जाए. 100 एमएम माने लगभग चार इंच.

बादल में बहुत बड़ी-बड़ी बूंदें बन जाएं तो बादल फटने का चांस पैदा होता है. औसत से बड़ी बूंदें तब बनती हैं, जब बादल की बूंदे नीचे टपकने के बजाय ऊपर उठने लगें. अब आप कहेंगे कि न्यूटन पर सेब तो नीचे की ओर गिरा था, तो बूंदें ऊपर कैसे उठ जाती हैं. तो बात ये है कि जब गर्म हवा तेज़ी से ऊपर उठती है, तो कई बार बादलों की बूंदों को अपने साथ ऊपर उठा लेती है. ये बूंदें ऊपर तैर रही बूंदों से मिल कर और बड़ी हो जाती हैं. और जब बूंदें बादल में अटके रहने के लिए बहुत भारी हो जाती हैं, तो बरस पड़ती हैं.

बचने का कोई इंतज़ाम है?गर्म हवा के ऊपर उठने लायक स्थितियां पहाड़ी इलाकों में ज़्यादा बनती हैं. इसलिए बादल फटने की घटनाएं भी ज़्यादातर पहाड़ी इलाकों में ही होती हैं. लेकिन पहाड़ों का बादल फटने पर कॉपीराइट नहीं है, मैदानी इलाकों में भी बादल फट जाते हैं.
बादल फटने के बाद कितना नुकसान होता है, ये हम सब जानते हैं. तो अब सवाल बचा कि बादल फटने के बारे में वॉर्निंग वगैरह का इंतज़ाम हो सकता है कि नहीं. लेकिन इसका तय जवाब नहीं है. क्योंकि बादल फटने लायक मौसम बहुत जल्दी-जल्दी बन-बिगड़ जाता है. इसे पकड़ने के लिए कई राडार हमेशा तैयार रखने होंगे, जो कि बहुत खर्चीला होगा. इसके बाद भी गारंटी नहीं रहेगी. तो बात यहां आकर ठहरती है कि जिन इलाकों में बादल फटने की घटनाएं होती रहती हों, वहां पब्लिक और प्रशासन अपनी ओर से तैयारी रखे कि अगर बादल फट पड़ें तो क्या कदम उठाए जाएंगे.
वीडियो: उत्तरकाशी में बादल फटा, 4 लोगों की मौत, अब ये पता चला