उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) ने इमरजेंसी के दौरान दिए गए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले की आलोचना की है. उन्होंने इस आदेश को दुनिया के न्यायिक इतिहास का सबसे ‘स्याह अध्याय’ बताया है. उन्होंने कहा कि नौ उच्च न्यायालयों के फैसले को खारिज करने वाले उस आदेश ने देश में तानाशाही और निरंकुशता को वैधता दी.
'इमरजेंसी के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तानाशाही को वैधता दी'- उपराष्ट्रपति धनखड़ का बयान
Jagdeep Dhankhar ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद पर भी सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति किसी व्यक्ति की सलाह पर काम नहीं करते.

20 जून को उपराष्ट्रपति राज्यसभा इंटर्न्स के एक समूह को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि तत्कालीन राष्ट्रपति ने इंदिरा गांधी (तत्कालीन प्रधानमंत्री) के कहने पर इमरजेंसी की घोषणा पर हस्ताक्षर किए थे, उन्होंने पूरे मंत्रिपरिषद की सलाह नहीं जानी. जगदीप धनखड़ ने कहा,
राष्ट्रपति किसी एक व्यक्ति (प्रधानमंत्री) की सलाह पर काम नहीं कर सकते. संविधान इस बारे में बहुत स्पष्ट है. राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद है. ये एक उल्लंघन था, लेकिन इसका परिणाम क्या हुआ? इस देश के 1,00,000 से अधिक नागरिकों को कुछ ही घंटों में सलाखों के पीछे डाल दिया गया. वो संकट का ऐसा समय था जब लोकतंत्र की मौलिकता ही खत्म हो गई. लोग न्यायपालिका की ओर देख रहे थे.
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उन्होंने आगे कहा,
देश के नौ उच्च न्यायालयों ने कहा कि आपातकाल हो या न हो, लोगों के पास मौलिक अधिकार हैं और न्याय प्रणाली तक उनकी पहुंच है. दुर्भाग्य से, सर्वोच्च न्यायालय ने उन सभी हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया और ऐसा फैसला दिया जो दुनिया में किसी भी न्यायिक संस्थान के इतिहास में सबसे स्याह फैसला होगा, जो कानून के शासन में विश्वास करता है.
निर्णय था कि ये कार्यपालिका की इच्छा के ऊपर है कि इमरजेंसी कितने समय के लिए लागू रहेगा.
उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में कहा,
शीर्ष अदालत ने ये भी कहा कि आपातकाल के दौरान कोई मौलिक अधिकार नहीं होते. इस तरह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने इस देश में तानाशाही और निरंकुशता को वैधता प्रदान की.
उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार ने हर साल 25 जून को 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में मनाने का फैसला किया है.
25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक देश में आपातकाल लागू रहा था.
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