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'संसद से ऊपर कोई नहीं', सुप्रीम कोर्ट पर छिड़ी बहस के बीच बोले जगदीप धनखड़

Legislative Vs Executive Controversy: उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के दो ऐसे बयानों का भी ज़िक्र किया जो आपस में विरोधाभासी हैं. धनखड़ ने कहा कि संसद सर्वोच्च है और ऐसी स्थिति में यह देश के प्रत्येक व्यक्ति जितनी ही सर्वोच्च है.

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Jagdeep Dhankhar doubles down on criticism of judiciary, Says Parliament is supreme
उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़. (फाइल फोटो- एजेंसी)
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रिदम कुमार
22 अप्रैल 2025 (Updated: 22 अप्रैल 2025, 04:00 PM IST)
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न्यायपालिका और कार्यपालिका (Legislative Vs Executive Controversy) में तकरार के बीच एक बार फिर उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Vice President Jagdeep Dhankhar) ने अपनी बात रखी है. उन्होंने दोहराया, “संसद ही सर्वोच्च है. (Parliament Is Supreme) संविधान में संसद से ऊपर किसी अथॉरिटी की कल्पना नहीं की गई है.” धनखड़ मंगलवार 22 अप्रैल को दिल्ली यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम को संबोधित रहे थे.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, उप राष्ट्रपति धनखड़ ने कहा,

संविधान में संसद से ऊपर किसी अथॉरिटी की कल्पना नहीं की गई है. संसद सर्वोच्च है और ऐसी स्थिति में यह देश के प्रत्येक व्यक्ति जितनी ही सर्वोच्च है.

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दो ऐसी टिप्पणियों का भी ज़िक्र किया जो आपस में विरोधाभासी हैं. गोरकानाथ केस का ज़िक्र किया और कहा कि तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रस्तावना (Preamble) संविधान का हिस्सा नहीं है. लेकिन केशवानंद भारती में कोर्ट ने कहा कि यह संविधान का हिस्सा है.

उन्होंने कहा, 

एक प्रधानमंत्री जिसने इमरजेंसी लगाई थी उसे 1977 में जवाबदेह ठहराया गया था. इसलिए, इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि संविधान लोगों के लिए है. चुने गए लोग इसकी सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार हैं. वे संविधान तय करने वाले अंतिम लोग हैं.

यह भी पढ़ेंः उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका को जमकर सुनाया, सुप्रीम कोर्ट तक को नहीं छोड़ा

उन्होंने लोकतंत्र में संवाद के महत्व पर ज़ोर दिया. उन्होंने आगे कहा,

हमारी चुप्पी बहुत ख़तरनाक हो सकती है. हम संस्थाओं को बर्बाद होने या लोगों को बदनाम करने की इजाज़त नहीं दे सकते. संवैधानिक अथॉरिटी की ओर से बोले जाने वाले हर शब्द का संविधान में ज़िक्र होता है.

उन्होंने कहा, 

हमें अपनी भारतीयता पर गर्व होना चाहिए. हमारा लोकतंत्र रुकावट को कैसे सह सकता है. पब्लिक प्रॉपर्टी को जलाया जाना, पब्लिक ऑर्डर को बाधित किया जाना...हमें इन ताकतों को बेअसर करना होगा. भले ही इसके लिए कड़वी दवाई ही क्यों न लेनी पड़े.

गौरतलब है कि इन दिनों देश में न्यायपालिका और कार्यपालिका में तकरार चल रही है. बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद इस मुद्दे पर ताज़ा बहस शुरू हुई थी. कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए बिल को मंज़ूरी देने की टाइमलाइन तय की थी. 

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इसके बाद उप राष्ट्रपति धनखड़ और बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सार्वजनिक मंचों पर आलोचना की थी. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने 21 अप्रैल को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि उन पर कार्यपालिका के कार्यक्षेत्र में दखल के आरोप लग रहे हैं. 

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