अमेरिका ने भारतीय प्रवासियों के एक और बैच को डिपोर्ट (US Deports 116 Indian) किया है. इसमें 116 भारतीय हैं. डिपोर्ट हुए लोगों ने बताया कि पूरी यात्रा के दौरान उनके हाथों में हथकड़ियां लगाई गई थीं. और पैरों को जंजीरों से जकड़ा (Indians in shackles) गया था. कुछ यात्रियों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई तो कुछ ने कहा कि ये उनकी सुरक्षा के लिए था.
बहुत कम खाना, 15 दिन तक ब्रश नहीं... अमेरिका से वापस भेजे गए भारतीयों के दूसरे बैच की आपबीती
Indians Deported by US: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि वो इस विषय पर अमेरिका से बात करेंगे. ताकि भारतीयों के साथ इस तरह से अमानवीय व्यवहार ना किया जाए.

पिछली बार जब अमेरिका ने 104 भारतीयों को डिपोर्ट किया था, तब भी ऐसे ही अमानवीय व्यवहार की खबरें आई थीं. इसके कारण हंगामा मच गया था. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की तो आलोचना हुई ही थी, साथ में भारत सरकार को भी सवालों के घेरे में लिया गया था. संसद तक मामला पहुंचा था. विदेश मंत्री एस जयशंकर को राज्यसभा में जवाब देना पड़ा था.
उन्होंने कहा था कि वो अमेरिकी सरकार से इस विषय पर बात करेंगे, ताकि ऐसा फिर से ना हो. विदेश मंत्री ने सदन में कहा था,
2012 से लागू स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) के तहत डिपोर्ट किए जा रहे लोगों को फ्लाइट में बांधकर ले जाया जाता है. हम डिपोर्टेशन के मामले पर लगातार US की सरकार के संपर्क में हैं, ताकि भारतीयों के साथ किसी तरह का अमानवीय व्यवहार न हो.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, दिलजीत सिंह पंजाब के होशियारपुर जिले के कुराला कलां गांव के रहने वाले हैं. 15 फरवरी की रात को जिन 116 लोगों को डिपोर्ट किया गया, उनमें दिलजीत भी थे. उन्होंने बताया कि अमेरिका का सैन्य विमान 'सी-17' 90 मिनट की देरी के बाद अमृतसर पहुंचा.
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इस बैच में पंजाब के 65, हरियाणा के 33 और गुजरात के आठ लोग शामिल थे. इनके अलावा उत्तर प्रदेश, गोवा, महाराष्ट्र और राजस्थान से दो-दो लोग थे. हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर से भी एक-एक व्यक्ति इस बैच में शामिल थे. न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, इनमें से अधिकतर की उम्र 18 से 30 साल के बीच है.
25 साल के मनदीप सिंह कपूरथला जिले के भोलाथ इलाके के सुरखा गांव के रहने वाले हैं. मनदीप ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को बताया,
हां, हमें भी 5 फरवरी को डिपोर्ट हुए लोगों की ही तरह हथकड़ी और जंजीरों में जकड़ा गया था. लगभग 66 घंटों का ये समय नरक जैसा था. लेकिन ये डिपोर्ट किए लोगों के सुरक्षा के लिए था. क्योंकि कोई दूसरों की मानसिक स्थिति का अंदाजा नहीं लगा सकता और हताशा में कुछ भी हो सकता है. अमेरिका अपने नियमों का पालन कर रहा था.
एयरपोर्ट पर तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि डिपोर्ट हुए लोगों में 5 महिलाएं थीं. पिछली बार की तरह इस बार भी बच्चों को बेड़ियों में नहीं जकड़ा गया था. अधिकारी के अनुसार, इन लोगों को बहुत कम खाना दिया गया था. उन्होंने 15 दिनों से नहाया नहीं था और ब्रश भी नहीं किया था. वापस लौटने पर वो काफी टूट चुके थे.
दिलजीत सिंह ने पत्रकारों से कहा कि उनको डंकी रूट से अमेरिका ले जाया गया था. उनकी पत्नी ने दावा किया कि ट्रैवेल एजेंसी ने उनके पति से साथ धोखा किया. उन्होंने कानूनी रास्ते का वादा किया, लेकिन अवैध रास्ते का इस्तेमाल किया. दिलजीत के गांव के ही एक व्यक्ति ने उनका परिचय एक ट्रैवेल एजेंट से कराया था.
अमृतसर पहुंचने के बाद डिपोर्ट हुए लोगों के इमिग्रेशन और बैकग्राउंड का सत्यापन किया गया. इसके बाद 16 फरवरी की सुबह को उन्हें घर जाने की इजाजत दी गई. एयरपोर्ट पर हरियाणा और पंजाब सरकारों ने अपने-अपने राज्यों के लोगों को घर पहुंचाने के लिए विशेष व्यवस्था की थी.
16 फरवरी की शाम को 157 डिपोर्ट हुए लोगों का एक और बैच अमृतसर एयरपोर्ट पर पहुंचने वाला है.
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