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स्वराज कौशल का निधन, चकाचौंध से दूर एक बड़ी शख्सियत थे

मिजोरम में उनका योगदान ऐतिहासिक रहा. 1979 में उन्होंने मिजो नेता लालदेंगा को साजिश के मामले में जमानत दिलाई और भूमिगत मिजो नेशनल फ्रंट के सलाहकार बने. राजीव गांधी सरकार के दौरान 1986 के मिजोरम शांति समझौते की बातचीत में उनकी भूमिका निर्णायक रही.

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मात्र 34 वर्ष की आयु में 1987 में कौशल देश के सबसे युवा एडवोकेट जनरल बने थे. (फोटो- X)

वरिष्ठ वकील, पूर्व राज्यसभा सांसद और मिजोरम के पूर्व गवर्नर स्वराज कौशल का गुरुवार, 4 दिसंबर को निधन हो गया. वो 73 वर्ष के थे. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील के रूप में विख्यात स्वराज ने भारतीय राजनीति और कानून के क्षेत्र में योगदान दिया. वो पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के पति और भाजपा सांसद बांसुरी स्वराज के पिता थे.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए X पर लिखा,

"उन्होंने एक वकील और एक ऐसे व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान बनाई जो वकालत के पेशे का इस्तेमाल वंचितों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए करते थे. वो भारत के सबसे युवा राज्यपाल बने और अपने कार्यकाल के दौरान मिजोरम के लोगों पर अमिट छाप छोड़ी. एक सांसद के रूप में उनकी अंतर्दृष्टि भी उल्लेखनीय थी. इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनकी बेटी बांसुरी और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ हैं.”

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पीएम मोदी का X पोस्ट.

स्वराज कौशल का जन्म 1952 में हिमाचल प्रदेश के सोलन में हुआ था. चंडीगढ़ में स्कूली शिक्षा और पंजाब यूनिवर्सिटी से लॉ में ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी करने के बाद वो साम्यवादी विचारधारा से जुड़े. 1975 में उन्होंने सुषमा स्वराज से विवाह किया, जो बाद में भाजपा की प्रमुख नेता बनीं. इमरजेंसी काल (1975-77) में उन्होंने समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस का केस लड़ा.

बड़ौदा डायनामाइट केस में फर्नांडिस पर राजद्रोह का आरोप था. स्वराज ने इस केस को डिफेंड किया. 1977 के लोकसभा चुनाव में उनकी पत्नी सुषमा स्वराज ने प्रसिद्ध नारा गढ़ा, "जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा."

मिजोरम में स्वराज कौशल का योगदान ऐतिहासिक रहा. 1979 में उन्होंने मिजो नेता लालदेंगा को साजिश के मामले में जमानत दिलाई और भूमिगत मिजो नेशनल फ्रंट के सलाहकार बने. राजीव गांधी सरकार के दौरान 1986 के मिजोरम शांति समझौते की बातचीत में उनकी भूमिका निर्णायक रही, जिसने दो दशकों के विद्रोह को समाप्त किया.

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मात्र 34 वर्ष की आयु में 1987 में वो देश के सबसे युवा एडवोकेट जनरल बने. 1990 में 37 वर्ष की उम्र में मिजोरम के राज्यपाल नियुक्त होकर सबसे युवा राज्यपाल बने. और 1993 तक इस पद पर रहे. जेडीयू नेता केसी त्यागी बताते हैं,

"उनकी युवावस्था साहस से भरी थी. इमरजेंसी में फर्नांडिस का केस लेना साहसिक कदम था."

स्वराज कौशल 1998 से 2004 तक हरियाणा विकास पार्टी से राज्यसभा सदस्य रहे. सुप्रीम कोर्ट में 34 वर्ष की आयु में वरिष्ठ अधिवक्ता घोषित हुए. स्वराज कौशल चकाचौंध से दूर रहे, सरल जीवन जिया. वो पंजाबी भाषा, कवि शिवकुमार बटालवी और ग्रामीण संस्कृति के प्रेमी थे.

वीडियो: बांसुरी स्वराज ने चुनाव में टिकट मिलने पर मां सुषमा स्वराज को लेकर क्या कहा?

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