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'किसी को मियां-तियां, पाकिस्तानी कहना अपराध नहीं', ये कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को बरी किया

Supreme Court on Calling Someone 'Pakistani': आला अदालत ने माना कि कॉमेंट ग़लत था. लेकिन इससे कानूनी तौर पर 'धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने' का दोषी नहीं ठहराया जा सकता था. नतीजतन, आरोपी हरिनंदन सिंह को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया.

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जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने ये फ़ैसला सुनाया है. (फ़ाइल फ़ोटो - इंडिया टुडे)

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने एक फ़ैसले में कहा है कि किसी को ‘मियां-तियां’ या ‘पाकिस्तानी’ कहना ग़लत भले हो. लेकिन इससे उस पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अपराध नहीं बनता. कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया. आला अदालत का कहना है कि कॉमेंट ग़लत था. लेकिन आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए कानूनी सीमा को पूरा नहीं करता.

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ मामले की सुनवाई कर रही थी. पीठ ने आरोपी हरि नंदन सिंह के ख़िलाफ़ मामला बंद कर दिया है.

मामला क्या है?

लाइव लॉ की ख़बर के मुताबिक़, मामला झारखंड के चास इलाक़े का है. दरअसल, आरोपी हरिनंदन सिंह ने सूचना के अधिकार (RTI) के तहत एक आवेदन किया था. इस आवेदन के बाद जानकारी लेकर स्थानीय अधिकारी, हरिनंदन के पास पहुंचे. लेकिन इसके बाद जो हुआ, उस पर अधिकारी ने हरिनंदन के ख़िलाफ़ FIR दर्ज करवा दी. 

इस FIR के मुताबिक़, आरोपी हरिनंदन ने अधिकारी के धर्म का हवाला देकर उनके साथ दुर्व्यवहार किया. मामला 2024 से पहले का है. ऐसे में हरिनंदन सिंह के ख़िलाफ़ IPC की अलग-अलग धाराओं के तहत FIR दर्ज की गई.

इनमें धारा 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 504 (शांति भंग करने के लिए जानबूझकर अपमान करना), 506 (आपराधिक धमकी), 353 (लोक सेवक को काम करने से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) शामिल हैं.

बाद में मजिस्ट्रेट ने मामले की समीक्षा करते हुए धारा 353, 298 और 504 के तहत आरोप तय किए. जबकि सबूतों की कमी में धारा 323 और 506 के तहत आरोपों को खारिज कर दिया. इसके बाद हरिनंदन सिंह ने आरोपमुक्ति की याचिका दायर की. मामला सेशन कोर्ट, फिर हाई कोर्ट पहुंचा. दोनों ने ही आरोपी हरिनंदन सिंह की याचिका को ख़ारिज कर दिया.

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सुप्रीम कोर्ट के कॉमेंट्स

अंत में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. इंडिया टुडे की ख़बर के मुताबिक़, अब कोर्ट ने कहा है कि IPC की धारा 353 के तहत आरोप को कायम रखने के लिए हमले या बल प्रयोग का कोई सबूत नहीं है. धारा 504 इसलिए लागू नहीं होती. क्योंकि आरोपी की तरफ़ से ऐसा कोई काम नहीं किया गया, जिससे शांति भंग हो सकती हो.

वहीं, धारा 298 के बारे में आला अदालत ने माना कि कॉमेंट ग़लत था. लेकिन IPC के तहत वो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए कानूनी तौर पर उपयुक्त नहीं था. नतीजतन, हरिनंदन सिंह को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया.

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