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मुगल बादशाह के 'परपोते की विधवा' ने लाल किले पर दावा ठोका, SC बोला- 'फतेहपुर सीकरी भी...'

सुप्रीम कोर्ट से पहले दिल्ली हाई कोर्ट सुल्ताना की याचिका खारिज कर चुका था. बाद में हाई कोर्ट ने दिसंबर 2024 में उनकी याचिका को ‘देरी के आधार’ पर फिर खारिज किया और शीर्ष अदालत से भी इसी आधार पर खारिज करने की सिफारिश की थी.

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लाल किले के सामित्व के दावे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई.(इंडिया टुडे )

सुप्रीम कोर्ट ने लाल किले पर ‘मालिकाना हक’ होने का दावा करने वाली सुल्ताना बेगम की याचिका को खारिज कर दिया है. सुल्ताना बेगम ने दावा किया था कि वो आखिरी मुगल बादशाह ‘बहादुर शाह जफर के परपोते की विधवा’ हैं, इस लिहाज से लाल किले पर उनका अधिकार है. महिला का दावा था कि सरकार ने लाल किले पर ‘अवैध कब्जा’ कर रखा है.

सुल्ताना बेगम ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि उनकी याचिका को केवल देरी के आधार पर खारिज न किया जाए. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट से पहले दिल्ली हाई कोर्ट सुल्ताना की याचिका खारिज कर चुका था. सुल्ताना ने हाई कोर्ट की सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ अपील करने में 900 दिनों की देरी की थी. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उनकी तबीयत खराब थी, लेकिन हाई कोर्ट ने दिसंबर 2024 में उनकी याचिका को ‘देरी के आधार’ पर खारिज किया और शीर्ष अदालत से भी इसी आधार पर खारिज करने की सिफारिश की थी. 

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सुल्ताना की याचिका को ही 'पूरी तरह से गलत' बताया है. बार एंड बेंच में छपी खबर के मुताबिक, 5 मई को चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस PV संजय कुमार की बेंच ने सुल्ताना की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “सिर्फ लाल किला ही क्यों? फतेहपुर सीकरी क्यों नहीं? बाकी सब जगहों को भी क्यों छोड़ा जाए?”

साल 2021 में सुल्ताना बेगम ने हाई कोर्ट में दावा किया था कि 1857 की क्रांति के बाद, अंग्रेजों (ईस्ट इंडिया कंपनी) ने उनके परिवार की संपत्ति (लाल किला) छीन ली और बहादुर शाह जफर को देश से निकाल दिया था. इसलिए अब उन्हें सरकार से मुआवजा मिलना चाहिए. जिस पर हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा था,

“अगर मान भी लें कि अंग्रेजों ने गलत तरीके से संपत्ति छीनी थी, तो भी 164 साल बाद याचिका विचाराधीन कैसे हो सकती है? सुल्ताना और उनके पूर्वज हमेशा से इस बारे में जानते थे, फिर इतनी देर क्यों की?”

देरी पर की गई टिप्पणी के बाद, याचिकाकर्ता सुल्ताना ने ढाई साल, यानी करीब 900 दिनों की देरी कर दोबारा अपील की. जिसे दिसंबर 2024 में न्यायाधीश विभु बख्शू और तुषार राव गेदेला की डिवीजन बेंच ने खारिज कर दिया था.

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