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वक्फ मामले में मुस्लिम पक्ष को झटका, UMEED पर रजिस्ट्रेशन की तारीख बढ़ाने से SC का इनकार

यह मामला Waqf Amendment Act 2025 से जुड़ा है, जिसमें सभी वक्फ संपत्तियों का UMEED पोर्टल पर अनिवार्य रजिस्ट्रेशन करने का प्रावधान है. इनमें Waqf By User वाली वक्फ संपत्तियां भी शामिल हैं.

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सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संपत्तियों के लिए बने UMEED पोर्टल पर सुनवाई हुई. (ITG/Supreme Court)
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अनीषा माथुर

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ प्रॉपर्टी के रिकॉर्ड UMEED पोर्टल पर अपलोड करने की डेडलाइन बढ़ाने का इंतजार कर रहे मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है. सोमवार, 1 दिसंबर को सर्वोच्च अदालत ने यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट, एंपावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट (UMEED) पोर्टल पर वक्फ प्रॉपर्टी के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की समयसीमा बढ़ाने से इनकार कर दिया.

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कोर्ट ने सरकार की दलील मानते हुए UMEED पोर्टल की आखिरी तारीख बढ़ाने की राह तक रहे मुस्लिम पक्ष को राहत नहीं दी. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि वक्फ कानून के तहत वक्फ ट्रिब्यूनल को वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन और डिजिटाइजेशन की समयसीमा बढ़ाने का अधिकार दिया गया है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में आवेदक वक्फ ट्रिब्यूनल में अर्जी दे सकते हैं.

इंडिया टुडे से जुडीं अनीषा माथुर की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने वक्फ मामलों से जुड़े आवेदन खारिज करते हुए कहा,

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"हमारा ध्यान धारा 3B के प्रावधान की तरफ दिलाया गया है. चूंकि आवेदक ट्रिब्यूनल के सामने राहत पा सकते हैं, इसलिए हम सभी आवेदनों का निपटारा करते हुए उन्हें धारा 3B(1) के तहत निर्धारित 6 महीने के पीरियड की आखिरी तारीख तक ट्रिब्यूनल में जाने की आजादी देते हैं."

यह मामला 'वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025' से जुड़ा है, जिसमें सभी वक्फ संपत्तियों का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन करने का प्रावधान है. इनमें 'वक्फ बाय यूजर' वाली वक्फ संपत्तियां भी शामिल हैं, जिन्हें सरकार के डिजिटल UMEED पोर्टल पर रजिस्टर कराना होगा.

सुनवाई के दौरान क्या हुआ?

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सुनवाई के दौरान आवेदकों की तरफ से पेश सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ संशोधन कानून 8 अप्रैल को लागू हुआ था, जबकि UMEED पोर्टल 6 जून को शुरू हुआ. उन्होंने दलील दी,

"इसके नियम 3 जुलाई को बने और 15 सितंबर को (वक्फ संशोधन कानून पर स्टे का) फैसला आया. 6 महीने का समय बहुत कम है, क्योंकि हम डिटेल्स नहीं जानते. हम नहीं जानते कि 100, 125 साल पुराने वक्फ के लिए वाकिफ कौन है. इन जानकारियों के बिना पोर्टल स्वीकार नहीं करेगा."

सिब्बल ने सवाल उठाया कि अगर वक्फ का कोई दस्तावेज ही नहीं है, तो उसे पोर्टल पर कैसे अपलोड किया जा सकता है? लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने भी पोर्टल में तकनीकी समस्याओं का हवाला दिया और समय बढ़ाने की मांग की. उन्होंने कहा कि वे केवल रजिस्ट्रेशन की शर्तों का पालन करने का वादा करते हुए और समय बढ़ाने की मांग कर रहे हैं.

हालांकि, भारत के सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने कहा कि कानून के अनुसार, वक्फ ट्रिब्यूनल के पास समय बढ़ाने का अधिकार है. उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ मामले ट्रिब्यूनल में दर्ज कराए जा सकते हैं और केस-दर-केस समय बढ़ाने की मांग की जा सकती है.

जवाब में कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि इससे कस्टोडियन (मुत्तवल्लियों) पर भारी बोझ पड़ेगा, जिससे लगभग 10 लाख कस्टोडियन को ट्रिब्यूनल के सामने अलग-अलग अर्जी दाखिल करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

क्या है मामला?

यह मामला वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 से जुड़ा हुआ है, जिसमें सरकार ने वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया है. यह रजिस्ट्रेशन UMEED पोर्टल पर किया जाना है. कानून के तहत, सभी वक्फ संपत्तियों को 6 महीने के अंदर पोर्टल पर रजिस्टर करना अनिवार्य है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और सांसद असदुद्दीन ओवैसी समेत कई पक्षों ने समय सीमा बढ़ाने की मांग की थी.

ओवैसी ने अपनी याचिका में कहा था कि करीब 5 महीने का समय पहले ही अदालत में केस चलने की वजह से खत्म हो चुका है और अब 6 दिसंबर की समय सीमा तक रजिस्ट्रेशन पूरा करना चुनौती भरा है. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि बिना समय बढ़ाए वक्फ संपत्तियों गंवाई जा सकती हैं, क्योंकि रजिस्ट्रेशन के बिना संपत्तियों के खिलाफ तीसरे पक्ष के दावे हो सकते हैं.

केंद्र सरकार ने हाल ही में वक्फ कानून में संशोधन किया है, जिसका कई मुस्लिम संगठनों और राजनीतिक दलों ने कड़ा विरोध किया. सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने संशोधित कानून के कुछ खास प्रावधानों पर रोक लगा दी थी.

इनमें वक्फ बनाने के लिए आवेदक का कम से कम पांच साल तक इस्लाम का पालन करना अनिवार्य होना और संपत्ति विवाद से जुड़ी शक्तियों से संबंधित कुछ प्रावधान शामिल थे. हालांकि, कोर्ट ने रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करने वाले प्रावधान पर रोक लगाने से इनकार किया था और इस अनिवार्यता को लागू रहने दिया.

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