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ट्रांस टीचर को दो-दो बार नौकरी से निकाला, कोर्ट बोला- स्कूल और सरकार दोनों देंगे मुआवजा

कोर्ट ने दोनों स्कूलों और संबंधित राज्य सरकारों को जेन को 50,000-50,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया. साथ ही एक एडवाइजरी कमेटी बनाने को कहा, जो यह देखेगी कि ट्रांसजेंडर के अधिकारों को ठीक से लागू किया जा रहा है या नहीं. लेकिन जेन ने इस फैसले पर अपनी निराशा व्यक्त की.

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ट्रांस महिला याचिकाकर्ता जेन कौशिक. (फोटो- X/@KaushikJane)

एक 32 साल की जेन कौशिक नाम की ट्रांस महिला को अपनी ट्रांसजेंडर आइडेंटिटी की वजह से दो बार नौकरी से हाथ धोना पड़ा. स्कूल टीचर के तौर पर योग्यता पूरी करने के बावजूद उन्हें प्राइवेट स्कूल में नौकरी नहीं दी गई. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. कोर्ट ने कौशिक को राहत देते हुए स्कूल और राज्य सरकारों को पीड़ित महिला को 50-50 हजार रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया. राहत के बावजूद जेन इस फैसले से खुश नहीं हैं. 

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इन राज्यों के स्कूलों ने हटाया

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मूल रूप से दिल्ली की रहने वाली जेन को साल 2022 और 2023 के बीच यूपी और गुजरात के प्राइवेट स्कूल से इस्तीफा देने को मजबूर किया गया. साल 2022 में उन्होंने इन स्कूलों के खिलाफ शिकायतें दर्ज कीं. तमाम कानूनी पहलुओं से होता हुआ मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. इस साल 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने माना कि प्राइवेट संस्थानों को ट्रांस व्यक्तियों के साथ भेदभाव करने की इजाजत नहीं है.

तीन महीने में कमेटी बनाने को कहा

कोर्ट ने दोनों स्कूलों और संबंधित राज्य सरकारों को जेन को 50,000-50,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया. साथ ही एक एडवाइजरी कमेटी बनाने को कहा, जो यह देखेगी कि ट्रांसजेंडर के अधिकारों को ठीक से लागू किया जा रहा है या नहीं. बेंच ने यह भी सुझाव दिया कि केंद्र और राज्य सरकारें एक जैसे मौके देने वाली नीति तैयार करें, ताकि ट्रांसजेंडर लोगों को रोजगार और शिक्षा में बराबरी का मौका मिल सके. 

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यह नीति ड्राफ्ट जमा होने के तीन महीने के भीतर लागू की जानी चाहिए. अगर किसी संस्था (जैसे स्कूल, दफ्तर आदि) की अपनी नीति नहीं है तो केंद्र सरकार की नीति वहां लागू होगी. लेकिन जेन ने इस फैसले पर अपनी निराशा व्यक्त की. 

फैसले से क्यों निराश है ट्रांस महिला

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में उन्होंने कहा कि वह इस फैसले से बहुत खुश नहीं हैं. उन्हें यूपी के स्कूल में 45,000 रुपये की सैलरी मिल रही थी. 8 महीने तक उन्हें नौकरी से बाहर रहना पड़ा. आखिरकार 2023 में उन्हें गुजरात के स्कूल से एक ऑफर लेटर मिला. लेकिन जब स्कूल को पता चला कि वह एक ट्रांस महिला हैं तो उन्होंने न सिर्फ उन्हें नौकरी देने से मना कर दिया, बल्कि स्कूल में घुसने तक नहीं दिया. 

जेन ने बताया कि अगर उन्हें नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर न किया गया होता तो वह तक लाखों रुपये कमा चुकी होतीं. यह (मुआवजा) गुजारा चलाने के लिए काफी नहीं है. अगर आप स्कूल या सरकार को सबक सिखाना था तो मुआवजा ज्यादा दिया जाना चाहिए था. 

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परिवार से मिला था सपोर्ट

जेन बताती हैं कि 2018 में पहली बार उन्होंने अपने परिवार को अपनी सच्चाई बताई थी. तब पैरंट्स और दो छोटे भाई-बहनों ने उनका पूरा साथ दिया. परिवार ने उनकी ट्रांसजेंडर ट्रांसफर और जेंडर रीअसाइनमेंट सर्जरी तक में शामिल रहे और पूरा समर्थन दिया. 2022 में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने नौकरी की तलाश शुरू की. इस दौरान तीन-चार स्कूलों ने उन्हें मना कर दिया. कई स्कूलों ने तभी नौकरी देने की बात की, जब वे अपनी पहचान छुपाएं. 

घर का माहौल ऐसे बिगड़ा

बकौल जेन वह परिवार के खर्चों में मदद नहीं कर पा रही थी. इसकी वजह से उनके घर का माहौल बिगड़ गया. बाद में उन्हें घर छोड़ना पड़ा. इसी बीच उन्हें सड़क पर रहना पड़ा. भीख तक मांगनी पड़ी और यहां तक कि सेक्स वर्कर के तौर पर भी काम करने को मजबूर होना पड़ा. तमाम संघर्षों के बीच फिलहाल वह हैदराबाद के एक स्कूल में अपनी जेंडर आइडेंटिटी छिपाकर काम कर रही हैं, क्योंकि यही स्कूल की शर्त थी. 

वह कहती हैं कि उन्हें दिल्ली-एनसीआर में काम करना है. लेकिन नौकरी नहीं मिली. जेन का मानना है कि ट्रांस समुदाय की असली समस्या राजनीतिक और प्रशासनिक उदासीनता है. वे कहती हैं कि जब तक नेता और अधिकारी समुदाय के साथ सीधे जुड़कर काम नहीं करेंगे, कुछ नहीं बदलेगा.

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