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सुप्रीम कोर्ट सख्त: हाई कोर्ट में 3 महीने से ज्यादा पेंडिंग केस सीधे चीफ जस्टिस को भेजे जाएंगे

Supreme Court ने स्पष्ट किया कि अदालतों पर जनता का भरोसा बनाए रखना जरूरी है. जब किसी केस का फैसला लंबे समय तक टलता है तो प्रभावित पक्ष को लगता है कि उन्हें समय पर न्याय नहीं मिल रहा. यह भावना पूरे Judicial System की छवि को नुकसान पहुंचाती है.

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सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में मामलों की सुनवाई में देरी पर चिंता जाहिर की है. (इंडिया टुडे)

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 25 अगस्त को हाई कोर्ट में फैसलों में देरी पर कड़ी नाराजगी जताई है. कोर्ट ने कहा कि अगर हाई कोर्ट (High Court) की किसी बेंच ने सुनवाई पूरी करने के बाद भी तीन महीने तक फैसला सुरक्षित रखा और फैसला नहीं सुनाया तो यह स्थिति न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है. ऐसी हालत में उस केस को सीधे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के सामने रखा जाना चाहिए.

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बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने कहा कि अगर फैसला तीन महीने से ज्यादा लंबित होता है तो रजिस्ट्रार जनरल मामला चीफ जस्टिस के सामने रखा जाना चाहिए. और चीफ जस्टिस ये सुनिश्चित करें कि दो सप्ताह के भीतर फैसला सुनाया जाए, नहीं तो मामले को दूसरी बेंच को सौंपा जाए. 

 जस्टिस करोल और जस्टिस मिश्रा की बेंच ने कहा कि सुरक्षित रखे गए फैसले को सुनाने में इतनी देरी बेहद चौंकाने वाली और आश्चर्यजनक है. सुप्रीम कोर्ट रवींद्र प्रताप शाही द्वारा दायर की गई अपील पर सुनवाई कर रहा था. इसमें साल 2008 से लंबित एक आपराधिक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के अंतरिम आदेशों को चुनौती दी गई थी.

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इस आपराधिक अपील पर 24 दिसंबर, 2021 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की एक बेंच ने विस्तार से सुनवाई की थी. और आदेश को सुरक्षित रखा था. लेकिन इसमें कोई फैसला नहीं सुनाया गया, जिसके चलते मामले को दूसरी बेंच के पास भेजना पड़ा.

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अदालतों पर जनता का भरोसा बनाए रखना जरूरी है. जब किसी केस का फैसला लंबे समय तक टलता है तो प्रभावित पक्ष को लगता है कि उन्हें समय पर न्याय नहीं मिल रहा. यह भावना पूरे न्यायिक तंत्र की छवि को नुकसान पहुंचाती है. इसलिए जरूरी है कि फैसलों में समयसीमा तय हो और उसका पालन भी सख्ती से किया जाए.

6 महीने से घटकर 3 महीने हुई डेडलाइन

इससे पहले साल 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने अनिल राय बनाम बिहार राज्य केस में कहा था कि अगर हाई कोर्ट छह महीने तक फैसला नहीं सुनाता है तो केस को हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के पास भेजा जाना चाहिए. अब सुप्रीम कोर्ट ने समयसीमा को 6 महीने से घटाकर 3 महीने कर दिया है.

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रजिस्ट्रार जनरल को रखना होगा रिकॉर्ड 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल हर महीने एक रिपोर्ट तैयार करे. इसमें उन मामलों की लिस्ट होनी चाहिए जिनमें फैसले सुरक्षित रखे गए हैं. लेकिन उस महीने के दौरान सुनाए नहीं गए है. अगर तीन महीने बाद भी इन मामलों में फैसला नहीं आता है तो रजिस्ट्रार जनरल की जिम्मेदारी होगी कि इन मामलों को वो चीफ जस्टिस के सामने रखे.

चीफ जस्टिस इन मामलों से जुड़े पीठ को तलब करेंगे और दो सप्ताह के भीतर उनको फैसला सुनाने का निर्देश देंगे. अगर दो सप्ताह के भीतर सुनवाई नहीं होती है तो चीफ जस्टिस मामले को किसी दूसरी बेंच को सौंप सकते हैं. 

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