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'अपनी CV में सब लिखो', सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के आरोपी वाइस चांसलर को राहत देकर भी फंसा दिया

Supreme Court: आरोप के मुताबिक, 2019 में VC ने पीड़िता को अपने ऑफिस बुलाया और डिनर पर चलने के लिए कहा, ताकि पीड़िता के करियर में मदद हो सके. जब पीड़िता ने असहज महसूस किया, तो VC ने कथित तौर पर उन्हें फिर से अपने ऑफिस बुलाया.

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सुप्रीम कोर्ट ने महिला फैकल्टी मेंबर की यौन उत्पीड़न शिकायत खारिज की. (फाइल फोटो: India Today)

सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरीडिकल साइंसेज (WBNUJS) के वाइस चांसलर (VC) निर्मल कांति चक्रवर्ती के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले को खारिज कर दिया. हालांकि, कोर्ट ने आदेश दिया कि इस मामले की जानकारी उनके रिज्यूम में शामिल की जाए, ताकि यह घटना पूरी जिंदगी में उनके साथ बनी रहे.

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NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने फैसला दिया कि यह घटना माफ की जा सकती है, लेकिन यह हमेशा के लिए आरोपी की जिंदगी का हिस्सा बनी रहेगी. शुक्रवार, 12 सितंबर को अपने आदेश में कोर्ट ने कहा,

“इस मामले को ध्यान में रखते हुए हम निर्देश देते हैं कि प्रतिवादी संख्या 1 (चक्रवर्ती) के कथित यौन उत्पीड़न की घटनाओं को माफ किया जा सकता है, लेकिन अपराधी को हमेशा के लिए परेशान करने दिया जा सकता है. इसलिए, यह निर्देश दिया जाता है कि इस फैसले को प्रतिवादी संख्या 1 क का हिस्सा बनाया जाए, जिसका अनुपालन उसे निजी तौर पर सख्ती से सुनिश्चित करना होगा.”

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पीड़ित महिला एक फैकल्टी सदस्य हैं, जिन्होंने 26 दिसंबर, 2023 को दी शिकायत में आरोप लगाया था कि VC ने उस साल अप्रैल में कथित तौर पर उनका यौन उत्पीड़न किया. पीड़िता ने बताया कि जुलाई 2019 में चक्रवर्ती ने बतौर VC यूनिवर्सिटी जॉइन किया था.

आरोप के मुताबिक, 8 सितंबर, 2019 को VC ने पीड़िता को अपने ऑफिस बुलाया और डिनर पर चलने के लिए कहा, ताकि पीड़िता के करियर में मदद हो सके. जब पीड़िता ने असहज महसूस किया, तो VC ने कथित तौर पर उन्हें फिर से अपने ऑफिस बुलाया और यौन संबंध बनाने का दबाव डाला, साथ ही उनके करियर को नुकसान पहुंचाने की धमकी दी.

पीड़ित फैकल्टी मेंबर का कहना है कि इसके बाद उनके प्रोमोशन में भी देरी की गई. अप्रैल 2022 में उनका प्रोमोशन हुआ, लेकिन 2023 में उन्हें सेंटर ऑफ फाइनेंशियल एंड गवर्नेंस स्टडीज के डायरेक्टर पद से हटा दिया गया.

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इसके बाद पीड़िता ने उत्पीड़न और भेदभाव का आरोप लगाते हुए शिकायतें कीं. हालांकि, कोर्ट ने यह साफ किया कि महिला को पद से हटाना यौन उत्पीड़न से जुड़ा हुआ नहीं था, बल्कि यह एक स्वतंत्र जांच की कार्रवाई थी. कोर्ट ने यह देखते हुए शिकायत खारिज कर दी कि पीड़िता ने 26 दिसंबर, 2023 को लिखित शिकायत दर्ज कराई थी, यानी उस साल अप्रैल में कथित यौन उत्पीड़न की आखिरी घटना के कई महीने बाद.

पीड़िता ने लोकल कंप्लेंट कमेटी (LCC) में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसे 'समय सीमा खत्म' बताते हुए खारिज कर दिया गया. शिकायत ना केवल तीन महीने की निर्धारित समय सीमा के बाद, बल्कि छह महीने की बढ़ाई जा सकने वाली समय सीमा के बाद दी गई थी.

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