सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश को ख़ारिज कर दिया, जिसमें दो बच्चों की अंतरिम कस्टडी उनके पिता को दी गई थी. पिता बच्चों को खाना बनाकर नहीं दे पाया और वो बाहर से खाना लाकर उन्हें खिलाता था. ऐसे में कोर्ट ने कहा कि रेस्तरां का खाना वयस्कों को भी नुकसान पहुंचाता है, 8 साल के बच्चे की तो बात ही छोड़िए.
पिता बच्चों को घर का खाना नहीं दे पाया, पत्नी SC तक पहुंच गई, फैसला मां के पक्ष में हुआ है
सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि बच्चों को पौष्टिक और घर का बना खाना देना चाहिए, जो पिता उपलब्ध नहीं करा पाया. जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच 29 अप्रैल को मामले की सुनवाई कर रही थी. क्या था ये मामला? आइए जानते हैं.
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कोर्ट का कहना था कि बच्चों को पौष्टिक घर का बना खाना देना चाहिए, जो पिता उपलब्ध नहीं करा पाया. जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच 29 अप्रैल को मामले की सुनवाई कर रही थी. इस दौरान बेंच ने कहा कि पिता अपने जॉब और दैनिक चीज़ों की वजह से उस स्थिति में नहीं है कि वो अपने बच्चों को फुल टाइम अटेंशन दे पाए.
पूरा मामला क्या है?पति-पत्नी की शादी 2014 में हुई थी और इस शादी से दो बच्चे हुए. लेकिन उनके बीच वैवाहिक कलह हो गई. 2017 में दंपति अलग-अलग रहने लगे. जून, 2024 में पत्नी ने तिरुवनंतपुरम में एक फैमली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने संरक्षक एवं वार्ड अधिनियम, 1890 के तहत बच्चों की स्थायी कस्टडी की मांग की.
बार एंड बेंच की ख़बर के मुताबिक़, फैमली कोर्ट ने पत्नी को अंतरिम कस्टडी दे दी. साथ ही, कहा कि पिता को हर महीने के दूसरे शनिवार को बच्चों को मुलाक़ात का अधिकार होगा. ये भी कहा गया कि पिता हफ़्ते में एक वीडियो कॉल कर पाएगा. पिता इन शर्तों से असंतुष्ट था. इसलिए उसने केरल हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
दिसंबर, 2024 में हाई कोर्ट ने उन्हें कई शर्तों के साथ हर महीने 15 दिनों के लिए बच्चों की अंतरिम कस्टडी दी. इन शर्तों में तिरुवनंतपुरम में एक फ्लैट किराए पर लेना, एक नैनी (घर के कामों में मदद करने के लिए एक महिला) रखना और अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करना शामिल था.
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इसके बाद पत्नी ने केरल हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पिता ने हाई कोर्ट के आदेश की मुख्य शर्तों का पालन नहीं किया. सबसे ज़रूरी बात ये कि वो नैनी रखने में विफल रहा और उसने घर का बना खाना भी उपलब्ध नहीं कराया.
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि बच्चे की देखभाल के फ़ैसले सिर्फ़ बच्चे की भलाई को ध्यान में रखकर लिए जाने चाहिए. न कि माता-पिता में से किसी के भावनात्मक आग्रह या लॉजिस्टिकल व्यवस्था को ध्यान में रखकर. अंत में सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया.
कोर्ट ने आदेश दिया कि पिता को हर महीने में दूसरे शनिवार और रविवार को बेटी की अंतरिम कस्टडी दी जाए. इसके अलावा, इन मुलाकातों के दौरान, वो अपने बेटे के साथ चार घंटे भी बिता सकता है. बशर्ते कि बच्चा सहज हो और फैमिली कोर्ट के उपलब्ध कराए गए बाल काउंसलर की देखरेख में हो.
कोर्ट ने ये भी कहा कि पिता अपने बच्चों को हर मंगलवार और गुरुवार को आपसी सहमति से तय समय पर 15 मिनट के लिए वीडियो कॉल कर सकता है.
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