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सुप्रीम कोर्ट में 'न्याय की देवी' और दूसरे बदलावों से बार एसोसिएशन खुश नहीं, क्या कह दिया?

बार एसोसिएशन ने कहा कि वो कोर्ट परिसर में प्रस्तावित म्यूजियम का भी विरोध करता है. एसोसिएशन ने उस जगह पर बार सदस्यों के लिए एक लाइब्रेरी और एक कैफे-लाउंज बनाने की मांग की है.

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पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने 'न्याय की देवी' की नई मूर्ति लगवाई थी. (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट में हाल में लगाई गई नई ‘न्याय की देवी’ की मूर्ति और प्रतीक चिह्न में बदलावों पर बार एसोसिएशन ने आपत्ति जताई है. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने कहा है कि कोर्ट ने बार से चर्चा किए बिना कई बड़े बदलाव कर दिए हैं. बार एसोसिएशन ने 22 अक्टूबर को एक प्रस्ताव पारित किया. इसमें कहा गया कि न्याय व्यवस्था में बार भी बराबर की हिस्सेदार है. इसके बावजूद, बदलाव करने के लिए उससे चर्चा नहीं की गई.

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बीते हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में 'न्याय की देवी' की 6 फीट की नई मूर्ति लगाई गई, जिसके एक हाथ में तराजू है और दूसरे हाथ में तलवार की जगह संविधान है. साथ ही नई मूर्ति की आंखों पर पट्टी नहीं बंधी हुई है. और सिर पर एक मुकुट है. इसके अलावा प्रतीक चिह्न भी बदले गए.

अब बार एसोसिएशन का कहना है कि उससे सलाह लिए बिना ऐसा करना सही नहीं है. सीनियर वकील कपिल सिब्बल की अध्यक्षता वाले बार एसोसिएशन के इस प्रस्ताव पर कई बड़े वकीलों ने सहमति जताई है. एसोसिएशन ने कहा कि कोर्ट परिसर में प्रस्तावित म्यूजियम का भी विरोध करता है. बार एसोसिएशन ने उस जगह पर बार सदस्यों के लिए एक लाइब्रेरी और एक कैफे-लाउंज बनाने की मांग की है.

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एसोसिएशन के मुताबिक, मौजूदा कैफेटेरिया बार के सदस्यों के लिए पर्याप्त नहीं है. बार की आपत्ति के बावजूद म्यूजियम के लिए काम शुरू हो गया है.

22 अक्टूबर के इस प्रस्ताव में बार एसोसिएशन ने कहा, 

"इन बदलावों के पीछे के तर्क हमें बिल्कुल समझ नहीं आई. बदलावों के बारे में हमें कभी बताया भी नहीं गया. हम सर्वसम्मति से हाई सिक्योरिटी जोन में बनने वाले प्रस्तावित म्यूजियम का विरोध करते हैं. इसके बदले बार सदस्यों के लिए एक लाइब्रेरी और एक कैफे-लाउंज बनाने की मांग पर जोर देते हैं."

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‘न्याय की देवी’ नई मूर्ति के उद्घाटन के मौके पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि कानून अंधा नहीं है, ये सबको बराबरी की नजरों से देखता है. इंडिया टुडे ने सूत्रों के हवाले से लिखा था कि चीफ जस्टिस मानते हैं कि ये बदलाव औपनिवेशिक विरासत से दूर जाने की एक कोशिश है. साथ ही नई मूर्ति से ये भी संदेश देने की कोशिश है कि कोर्ट संवैधानिक कानूनों के हिसाब से न्याय देती है, जबकि तलवार हिंसा का प्रतीक है.

इससे पहले जो मूर्ति थी, उसमें आंखों पर बंधी पट्टी ये दिखाती थी कि कानून निष्पक्ष है और केवल सबूतों के आधार पर अपना काम करता है. वो ये नहीं देखता कि सामने वाला व्यक्ति प्रभावशाली है या वंचित तबके से आता है. वो सबको बराबर मानता है.

वीडियो: प्रदूषण पर केंद्र और राज्य सुप्रीम कोर्ट ने क्या सुना दिया?

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