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MUDA जमीन घोटाला: CM सिद्दारमैया को देसाई आयोग ने क्लीन चिट दी

कर्नाटक मंत्रिमंडल ने 4 सितंबर को आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया, जिसमें अनियमितताओं के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की सिफारिश भी की गई है.

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया. (फोटो- India Today)

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया और उनके परिवार को मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) साइट आवंटन मामले में क्लीन चिट मिल गई है. सेवानिवृत्त न्यायाधीश पीएन देसाई की अध्यक्षता वाले आयोग ने सिद्दारमैया को राहत दे दी. आवंटन में अनियमितताओं के लिए अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया गया है. कर्नाटक मंत्रिमंडल ने 4 सितंबर को आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया, जिसमें अनियमितताओं के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की सिफारिश भी की गई है.

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देसाई आयोग उन आरोपों की जांच कर रहा था जिनमें दावा किया गया कि 2020 से 2024 के बीच सिद्दारमैया का परिवार मैसूर में ‘ग़ैरकानूनी वैकल्पिक साइट आवंटन घोटाले’ में शामिल था. आयोग ने मुताबिक मुआवज़े के रूप में दी गई साइटों का आवंटन ग़ैरकानूनी नहीं कहा जा सकता.

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा,

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“केसरे गांव के सर्वे नंबर 464 की डीनोटिफाइड ज़मीन को लेकर ज़मीन मालिक ने मुआवज़े के रूप में वैकल्पिक ज़मीन पर ज़ोर दिया था. 2017 में इसके लिए प्रस्ताव भी पारित हुआ था, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया. बाद में 2022 में, 50:50 के अनुपात में साइटें आवंटित की गईं, जो भुगतान के तरीकों में से एक था और जैसा अन्य लोगों को भी दिया गया था.”

कानून और संसदीय कार्य मंत्री एचके पाटिल ने कैबिनेट के फ़ैसले की पुष्टि की. उन्होंने कहा,

“हमारी सरकार ने न्यायमूर्ति पीएन देसाई का एक-सदस्यीय आयोग गठित किया था, जिसने अपनी दो खंडों में रिपोर्ट सौंपी है. रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि मुख्यमंत्री और उनके परिवार के खिलाफ लगाए गए आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है. इसने विभिन्न मामलों में कुछ अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की भी सिफारिश की है. हमने (कैबिनेट ने) इस रिपोर्ट और इसकी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है.”

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इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, आयोग ने सिद्दारमैया और उनकी पत्नी पार्वती बीएम को बरी कर दिया है और कहा कि केसरे गांव की उनकी 3.16 एकड़ ज़मीन के बदले पार्वती को 14 प्लॉट का आवंटन ग़ैरकानूनी नहीं था. आरोप था कि इस ज़मीन का उपयोग MUDA ने लेआउट बनाने में किया था. इससे पहले लोकायुक्त पुलिस भी सबूत न मिलने पर सिद्दारमैया, पार्वती और अन्य लोगों को क्लीन चिट दे चुकी थी.

मामला इस आरोप पर केंद्रित था कि पार्वती को मुआवज़े में मिले साइट्स मैसूर के पॉश विजयनगर लेआउट (तृतीय और चतुर्थ चरण) में थे, जिनकी संपत्ति कीमत उनकी मूल ज़मीन से अधिक थी. MUDA की 50:50 योजना के तहत, जिनकी ज़मीन ली जाती थी, उन्हें मुआवज़े में विकसित ज़मीन का 50% दिया जाता था.

यह भी आरोप था कि पार्वती के पास कसरे गांव, कसबा होबली, मैसूर तालुक की 3.16 एकड़ ज़मीन का वैध स्वामित्व ही नहीं था. एफआईआर में जिन लोगों के नाम थे, उनमें सिद्दारमैया, पार्वती, उनके साले बीएम मल्लिकार्जुन स्वामी और देवराजू शामिल थे. देवराजू ने ज़मीन स्वामी को बेची थी और बाद में यह ज़मीन पार्वती को उपहार में दी गई थी.

रिपोर्ट के मुताबिक देसाई आयोग ने जुलाई 2024 तक और 2006 से MUDA के कामकाज की भी जांच की.

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