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PM के एडवाइजर संजीव सान्याल बोले- विकसित भारत में ज्यूडिशियल सिस्टम बाधा, बदला जाए माई लॉर्ड शब्द

प्रधानमंत्री की इकोनॉमिक एडवाइजर काउंसिल (EAC) के सदस्य संजीव सान्याल ने कहा कि विकसित भारत के लिए हमारा ज्यूडिशियल सिस्टम सबसे बड़ी बाधा है.

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संजीव सान्याल ने कहा कि लॉ प्रोफेशन से जुड़े लोगों को रिफॉर्म्स अपनाना चाहिए. (Photo: File/ITG)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद (Economic Advisory Council, EAC) के सदस्य संजीव सान्याल ने कहा है कि विकसित भारत बनने में सबसे बड़ी बाधा ज्यूडिशियल सिस्टम यानी न्यायिक प्रणाली है. साथ ही उन्होंने कोर्ट में होने वाली लंबी छुट्टियां और जजों को माई लॉर्ड बोलने पर भी सवाल उठाया.

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शनिवार, 20 सितंबर को 'न्याय निर्माण 2025' नाम के इवेंट में पहुंचे संजीव सान्याल ने जस्टिस सिस्टम में कई खामियां बताईं. यह इवेंट जनरल काउंसिल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (GCAI) द्वारा आयोजित किया गया था. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार इवेंट में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मनमोहन और जस्टिस पंकज मिथल भी मौजूद थे.

जस्टिस सिस्टम पर पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता: सान्याल

यहां बोलते हुए संजीव सान्याल ने कहा कि उनके विचार में ज्यूडिशियल सिस्टम और लीगल इकोसिस्टम, खासकर कि ज्यूडिशियल सिस्टम, विकसित भारत बनने और तेजी से आगे बढ़ने में सबसे बड़ी समस्या है. उन्होंने कहा,

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कॉन्ट्रैक्ट को समय पर लागू न कर पाना या जस्टिस न दे पाना इतनी बड़ी समस्या बन गई है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर और अर्बन डेवलपमेंट में कितना भी निवेश किया जाए, भरपाई नहीं हो सकती. भारत के अधिकतर कानून इसलिए बनते हैं कि कुछ लोग उसका दुरुपयोग न करें. इनकी जरूरत ही इसलिए पड़ती है, क्योंकि जस्टिस सिस्टम पर भरोसा नहीं किया जा सकता कि वह इनके दुरुपयोग पर रोक लगा सकेगा.

सान्याल ने आगे कहा कि भारत की सबसे बड़ी दिक्कत कानून और न्याय को समय पर लागू न कर पाना है. हमारे देश में समझौते और न्याय समय पर पूरे नहीं होते इस वजह से भले ही हम सड़कों, इमारतों या शहरों पर बहुत पैसा खर्च करें, असली विकास रुक जाता है.

उन्होंने इसे '99-1 समस्या' बताया. उनके मुताबिक हकीकत में सिर्फ 1% लोग नियमों का गलत इस्तेमाल करते हैं. लेकिन क्योंकि हमें भरोसा नहीं है कि अदालतें ऐसे मामलों को जल्दी सुलझा देंगी, तो सरकार सारे नियम ऐसे बनाती है कि उस 1% को भी रोका जा सके. नतीजा ये होता है कि बाकी 99% ईमानदार लोग भी उन जटिल नियमों में फंस जाते हैं.

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उन्होंने मुकदमों से पहले मध्यस्थता के नियम का भी हवाला दिया. कहा,

ये रिफॉर्म उल्टा पड़ गया, क्योंकि मुंबई की कॉमर्शियल कोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि मुकदमे से पहले मध्यस्थता वाले 99% मामले फेल हो जाते हैं. इसके बाद उन्हीं मामलों को कई महीनों की देरी के बाद कोर्ट भेजा जाता है, जिससे समय और लागत बढ़ जाती है.

कोर्ट की भाषा और रिवाजों पर उठाए सवाल

उन्होंने बार स्ट्रक्चर की भी आलोचना की. उन्होंने कहा कि सीनियर एडवोकेट, एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड और दूसरे वकीलों में फर्क करना पुरानी सोच है. 21वीं सदी में इन सभी लोगों की आवश्यकता क्यों है? लीगल वर्क के कई लेवल पर आपको अपने मामले पर बहस करने के लिए कानूनी डिग्री क्यों होनी चाहिए? यह AI का युग है.

उन्होंने अंग्रेजों के समय से चली आ रही कोर्ट की भाषा और रिवाजों पर भी सवाल उठाए. संजीव सान्याल ने कहा कि आप ऐसा प्रोफेशन नहीं अपना सकते, जहां आप 'माई लॉर्ड' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें. या जब आप कोई याचिका दायर कर रहे हों तो उसे प्रार्थना कहा जाए. आप मज़ाक कर रहे हैं. हम सब एक ही लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं.

कोर्ट की लंबी छुट्टियों पर साधा निशाना 

अदालतों में होने वाली लंबी छुट्टियों पर भी सान्याल ने निशाना साधा. उन्होंने कहा कि कोर्ट भी स्टेट के किसी भी अन्य हिस्से की तरह एक सार्वजनिक सेवा है. क्या आप पुलिस विभाग या अस्पतालों को महीनों तक बंद रखते हैं, क्योंकि अधिकारी गर्मी की छुट्टियां चाहते हैं. सान्याल ने लॉ के प्रोफेशन से जुड़े लोगों से सुधारों को अपनाने का आग्रह किया. उन्होंने कहा,

हमारे पास इसे बनाने के लिए लगभग 20-25 साल हैं. हमारे पास बर्बाद करने के लिए समय नहीं है. आप भी उतने ही नागरिक हैं, जितना मैं हूं. प्रिय साथी नागरिकों, वह क्षण आ गया है. हम वह पीढ़ी हैं, जिसका हमें इंतज़ार था. कोई और ऐसा नहीं करने वाला. यह आपके और मेरे बीच की बात है. हम एक ही नाव पर सवार हैं.

संजीव सान्याल ने कहा कि वह ब्यूरोक्रेट्स, चार्टर्ड अकाउंटेंट्स और साथी इकोनॉमिस्ट्स से भी इसी स्पष्टता के साथ बात कर चुके हैं. बदलाव केवल हर बात को उसकी जड़ से समझने और उस पर सवाल उठाने की सोच से आता है.

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