महाराष्ट्र सरकार ने बंद पड़ी एक कताई मिल को दोबारा शुरू करने के लिए 36 करोड़ रुपये के पैकेज की मंजूरी दी है. मंगलवार, 16 सितंबर को कैबिनेट मीटिंग में नीलकंठ को-ऑपरेटिव स्पिनिंग मिल को ये मदद देने का फैसला किया गया. यह मिल अकोला जिले में है. सूत्रों के मुताबिक, इस मिल का जुड़ाव भारतीय जनता पार्टी (BJP) के विधायक और पार्टी के चीफ व्हिप रणधीर सावरकर से है.
BJP विधायक से जुड़ी मिल के लिए 36 करोड़ रुपये देगी महाराष्ट्र सरकार, 11 साल से बंद है
BJP विधायक से जुड़ी Spinning Mill के लिए सहायता पैकेज को मंजूर करने से पहले वित्त और योजना विभाग ने कड़ी आपत्ति जताई थी. विभाग का कहना था कि राज्य की नीति में बंद पड़ी मिलों को वित्तीय मदद देने का कोई प्रावधान नहीं है.


राज्य सरकार के इस फैसले के बाद से कई सवाल उठ रहे हैं. खासकर, बीजेपी विधायक रणधीर सावरकर का मिल से कनेक्शन सामने आने पर आपत्ति जताई जा रही है. इंडिया टुडे से जुड़े ऋत्विक भालेकर की रिपोर्ट के मुताबिक, यह पैकेज राज्य के ‘इंटीग्रेटेड और सस्टेनेबल टेक्सटाइल पॉलिसी 2023-28’ के तहत मिल को दोबारा शुरू करने के लिए दिया जा रहा है.
नीलकंठ को-ऑपरेटिव स्पिनिंग मिल पिछले 11 साल से बंद पड़ी थी. रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि, इस पैकेज को मंजूर करने से पहले वित्त और योजना विभाग ने कड़ी आपत्ति जताई थी. विभाग का कहना था कि राज्य की नीति में बंद पड़ी मिलों को वित्तीय मदद देने का कोई प्रावधान नहीं है.
दूसरी तरफ, आलोचकों का कहना है कि सरकार ने यह फैसला राजनीतिक फायदे के लिए लिया है. उनका आरोप है कि इस फैसले से राज्य के वित्तीय अनुशासन पर असर पड़ेगा और इससे दूसरी बंद मिलें भी सरकार से ऐसी ही मदद की मांग कर सकती हैं. विपक्ष ने इस फैसले की पारदर्शिता पर भी सवाल उठाए और कैबिनेट के फैसले लेने की प्रक्रिया की जांच की मांग की.
वहीं, अकोला ईस्ट से तीन बार के विधायक रणधीर सावरकर ने इस फैसले का बचाव किया है. उन्होंने कहा कि यह फैसला विदर्भ क्षेत्र के किसानों और युवाओं के लिए ऐतिहासिक है. उन्होंने कहा,
"11 सालों की लगातार कोशिशों के बाद हमारी कड़ी मेहनत आखिरकार रंग लाई है, जिससे मिल के कपास किसानों को आर्थिक मजबूती देने और हमारे युवाओं के लिए रोजगार के मौके पैदा करने का रास्ता खुला है."
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सावरकर ने बताया कि मिल के पास 150 एकड़ जमीन है. उन्होंने कहा कि मिल के मैनेजमेंट ने इस जमीन को बेचना नहीं चाहा, बल्कि दूसरे फंडिंग ऑप्शन की तलाश की.
सावरकर ने कहा कि बड़े पैमाने पर महाराष्ट्र का कच्चा कपास कोयम्बटूर की मिलों में जाता है. उन्होंने कहा कि कच्चा माल बाहर ना जा कर राज्य के मिलों में प्रोसेस होगा, जिससे राज्य को आर्थिक फायदा होगा.
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