बोफोर्स घोटाले को लेकर वरिष्ठ पत्रकार चित्रा सुब्रमण्यम की एक किताब चर्चा में है. नाम है “BOFORSGATE: A Journalist’s Pursuit of Truth.” इस किताब में चित्रा ने बोफोर्स मामले को लेकर कुछ दावे किए हैं. उन्होंने लिखा है कि घोटाले से जुड़े अहम और गुप्त दस्तावेजों के बॉक्स अभी तक नहीं खोले गए हैं. हालांकि मामले की जांच में शामिल पूर्व अधिकारियों ने इसे खारिज किया है.
किताब में दावा, 'बोफोर्स घोटाले के सीक्रेट दस्तावेज वाले बॉक्स नहीं खुले', जांच करने वाले क्या बोले?
बात है 80 के दशक की. आरोप लगा कि स्वीडन की हथियार बनाने वाली कंपनी बोफोर्स ने इंडियन आर्मी को तोपें सप्लाई करने का सौदा पाने के लिए लाखों डॉलर की घूस खिलाई थी. आरोप सीधा सरकार से जुड़े लोगों पर था.

बात है 80 के दशक की. आरोप लगा कि स्वीडन की हथियार बनाने वाली कंपनी बोफोर्स ने इंडियन आर्मी को तोपें सप्लाई करने का सौदा पाने के लिए लाखों डॉलर की घूस खिलाई थी. आरोप सीधा सरकार से जुड़े लोगों पर था. तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी. तब चित्रा सुब्रमण्यम ने मामले को लेकर इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग की थी. अब कई वर्षों बाद इसी पर उनकी किताब आई है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, किताब में चित्रा बोफोर्स स्कैम से जुड़े अहम दस्तावेजों का जिक्र करती हैं. वह लिखती हैं, “1997 में भारत भेजे गए 500-1000 पन्नों के सीक्रेट स्विस दस्तावेज़ों वाले बॉक्स अभी तक नहीं खोले गए हैं.” चित्रा का कहना है कि मामले से जुड़े कुछ अहम दस्तावेज़ एक सार्वजनिक कार्यक्रम में CBI के तत्कालीन डायरेक्टर जोगिंदर सिंह को सौंपे गए थे.

चित्रा का दावा है कि उस समय वह वहां मौजूद थीं, जब बॉक्स CBI को सौंपे जा रहे थे. उन डॉक्युमेंट्स में क्या जानकारी दर्ज है, इस बारे में किसी को भी कुछ नहीं पता. पत्रकार के मुताबिक ये बक्से आज भी CBI के पास हैं और इन्हें अब तक खोला नहीं गया है. आगे वह लिखती हैं कि इन दस्तावेज़ों में कई अहम और खुफिया जानकारियां हैं जो आज तक बाहर नहीं आ सकी हैं.
अखबार के मुताबिक चित्रा की किताब में दर्जनों बार इन बक्सों का ज़िक्र है. वह लिखती हैं, “बीते कई वर्षों में नेताओं ने मुझसे कहा है कि बंद बक्सा उन्हें खुले बक्सों की तुलना में बेहतर लगता है. मुझे ये तर्क चौंकाने वाले लगते हैं क्योंकि ये मेरे देश की मूल भावना पर हमला करते हैं. मेरा मानना है कि वह समय दूर नहीं जब जनता की मांग पर इन बक्सों को खोला जाएगा.”
उन्होंने ज़ोर देकर लिखा है, “किसी भी पॉलिटिकल पार्टी ने इन्हें खोलने की हिम्मत नहीं दिखाई क्योंकि क्योंकि उन्हें डर था कि पता नहीं इनमें क्या छिपा है. इनमें NDA सरकार भी शामिल है जो 2014 में इस वादे पर सत्ता में आई थी कि करप्ट लोगों पर केस चलाया जाएगा और भारतीय करदाताओं को आखिरकार सच्चाई पता चल जाएगी.”
चित्रा ने बक्सों को 'Elephant in the room' बताया है. यानी ऐसी बात जिसके बारे में सबको पता है लेकिन उसके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता. वह कहती हैं कि बोफोर्स और करप्शन के मुद्दे ने विपक्ष का पॉलिटिकल करियर बनाया. उन्होंने चुनाव जीते. लेकिन किसी ने भी इन बक्सों को खोलने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. ये बात कई सवाल उठाती है कि आखिर इससे सबसे ज़्यादा फायदा किसे मिला. अपनी किताब के आखिर में वह एक लाइन लिखती हैं, “CBI के पास बंद बक्से में भारत का स्वाभिमान है.”
बताते चलें कि CBI ने इस मामले में 21 साल तक जांच की. 2011 में केस बंद कर दिया गया.
हालांकि केस से जुड़े कुछ लोगों ने किताब में किए गए दावों का खंडन किया है. उनका तर्क है कि केस से जुड़े अहम लोग जैसे विन चड्ढा, इटेलियन बिज़नेसमैन ओटावियो क्वात्रोची और CBI जांच टीम के प्रमुख रहे जोगिंदर सिंह अब दुनिया में नहीं हैं.
खंडन करने वालों में शामिल कुछ लोगों से इंडियन एक्सप्रेस ने बात की. बोफोर्स मामले के समय SP रहे ओपी गलहोत्रा ने कहा, “मैं दस्तावेज सीबीआई को सौंपे जाने के तुरंत बाद टीम में शामिल हो गया था. लेन-देन की डिटेल्स क्वात्रोची और हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ आरोप दायर करने का आधार बनी. उदाहरण के लिए, दस्तावेजों में दी गई डिटेल्स के कारण ही हिंदुजा भारत में जांच में शामिल हुए."
ओपी गलहोत्रा ने दावा किया कि किताब में जिन बक्सों का जिक्र है वे पूरी तरह से खुले हुए थे.
CBI जांच टीम के एक अन्य प्रमुख सदस्य एनआर वासन ने बताया कि गुप्त दस्तावेज़ 1997 में स्विट्जरलैंड और भारत के बीच कोर्ट-टू-कोर्ट ट्रांसफर किए गए थे. इन्हें तीस हजारी कोर्ट में जिला जज अजीत भरिहोके के चैंबर में ले जाया गया था. जज ने इन्हें खोला और फिर केस प्रॉपर्टी के रूप में उन्हें CBI को सौंप दिया. चार्जशीट दाखिल करने के लिए ये दस्तावेज़ बहुत अहम थे क्योंकि उनमें मनी ट्रेल और सभी बैंकिंग ट्रांजेक्शन की डिटेल्स थीं.
जब इन लोगों के जवाब पर चित्रा से पूछा गया तो उन्होंने कहा,
“बोफोर्स कोई साधारण मामला नहीं था. भारत में इसने सरकार गिरा दी और स्विट्जरलैंड में जांच की वजह से कानूनों में बदलाव किया गया. CBI को हमें बताना चाहिए था कि उन्होंने क्या पाया और स्विट्जरलैंड ने क्या जानकारी हमारे साथ साझा की."
सीनियर पत्रकार ने सवाल उठाया कि यह सब इतनी चुपचाप क्यों किया गया.
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