भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सीजफायर का जस्टिस बीआर गवई (Justice BR Gavai) ने स्वागत किया है. इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय संकट के समय न्यायपालिका की भूमिका पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि जब देश खतरे में तो सुप्रीम कोर्ट अलग नहीं रह सकता. जस्टिस बीआर गवई 14 मई को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) का पदभार संभालेंगे.
'गाजा, यूक्रेन देख लो, युद्ध किसी के लिए अच्छा नहीं होता... ' सीजफायर पर बोले जस्टिस बीआर गवई
India-Pakistan Ceasefire: जस्टिस बीआर गवई ने सीजफायर का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि जब देश खतरे में है तो सुप्रीम कोर्ट अलग नहीं रह सकता. जस्टिस बीआर गवई 14 मई को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) का पदभार संभालेंगे. उन्होंने और क्या कहा?
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इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, रविवार, 11 मई को मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि अच्छा हुआ कि सीजफायर हो गया. देश के नागरिक के तौर पर हर कोई चिंतित है. जो कुछ भी होता है, वह सबके साथ होता है. सीजफायर का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा,
युद्ध से क्या-क्या नुकसान होते हैं ये हम पहले ही देख चुके हैं. यूक्रेन में युद्ध देखे हुए तीन साल हो गए हैं. 50 हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए हैं. गाजा में हुए दूसरे संघर्ष में और भी ज़्यादा लोग हताहत हुए हैं.
भारत के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे जस्टिस गवई बुद्ध पूर्णिमा के दो दिन बाद यानी 14 मई को शपथ लेंगे. उन्होंने कहा कि यह एक बड़ा संयोग है कि वे बुद्ध पूर्णिमा के तुरंत बाद शपथ लेने जा रहे हैं. इस दौरान उन्होंने खुद को 'पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति' बताया और कहा कि वे सभी धर्मों में विश्वास रखते हैं.
‘जब देश खतरे में हो…’पहलगाम आतंकी हमले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल को पीड़ितों के प्रति शोक जताने के लिए दो मिनट का मौन रखा था. इस घटना को याद करते हुए बीआर गवई ने कहा,
जब सुबह अखबारों में पहलगाम के बारे में जानकारी आई, तो हमने सोचा कि हमें एकजुटता दिखानी चाहिए. पूरा देश शोक में था. हमने CJI की अनुमति से दोपहर 2 बजे पूर्ण न्यायालय की बैठक बुलाई. हमने सर्वसम्मति से इसकी निंदा करने और प्रभावितों की याद में खड़े होने का संकल्प लिया. जब देश खतरे में हो, तो सुप्रीम कोर्ट अलग नहीं रह सकता. हम भी उसी देश, उसी व्यवस्था का हिस्सा हैं.
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जस्टिस गवई ने अपनी कानूनी यात्रा का श्रेय डॉ. बीआर अंबेडकर और अपने पिता आरएस गवई को दिया. जो पूर्व राज्यसभा सदस्य थे. उन्होंने कहा,
मैं राजनीति में नहीं जाना चाहता था. मेरे पिता ने कहा कि अगर तुम जज बनोगे तो तुम अंबेडकर के सामाजिक-आर्थिक न्याय के नजरिए को आगे बढ़ा सकते हो. मेरे फैसलों में, अगर आप देखें तो मैंने सामाजिक न्याय के मुद्दे को बरकरार रखा है.
इस दौरान उन्होंने संवैधानिक सर्वोच्चता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहा कि संविधान ही सर्वोच्च है.
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