झारखंड से दिल को झकझोर देने वाली तस्वीर सामने आई है, जिसे देखकर पूरे सिस्टम को शर्म से डूब मरना चाहिए. एक पिता को अपने चार महीने के बच्चे का शव थैले में लेकर आना पड़ा. सरकारी अस्पताल शव लेकर जाने के लिए एक वाहन तक नहीं दे सका. जिस दिन यह घटना हुई, उस दिन झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बिहार की उस डॉक्टर को राज्य में सरकारी नौकरी का ऑफर दे रहे थे, जिसका हिजाब नीतीश कुमार ने खींचा था. लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि स्वास्थ्य मंत्री को अपने ही राज्य के ऐसे हालात नहीं दिख रहे हैं.
न एंबुलेंस मिली- न सहारा, थैले में चार महीने के बच्चे का शव ले जाने को मजबूर हुआ पिता
Jharkhand: परिवार का आरोप है कि उन्होंने घंटों तक गाड़ी का इंतजार किया, लेकिन अस्पताल की ओर से कोई इंतजाम नहीं किया गया और न ही उनके प्रति कोई हमदर्दी दिखाई. पिता के जेब में केवल 100 रुपये थे, जिसमें से 20 रुपये में उसने थैला खरीदा और बाकी पैसे से बस का किराया दिया.


न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक घटना झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले की है. 18 दिसंबर को चाईबासा के पास बाला बारीजोड़ी गांव के रहने वाले आदिवासी समुदाय के डिंबा चातोंबा के बच्चे की तबीयत बिगड़ गई थी. बताया गया कि बच्चे को महीने की शुरुआत में तेज बुखार आया था. उसने खाना छोड़ दिया था. इसके बाद डिंबा अपने बच्चे को लेकर सदर अस्पताल पहुंचे. उसे बचाया नहीं जा सका. 19 दिसंबर को इलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मौत हो गई.
नहीं मिला वाहनरिपोर्ट के मुताबिक इसके बाद परिवार ने बच्चे का शव ले जाने के लिए अस्पताल से वाहन मांगा तो कहा गया कि अभी कोई वाहन उपलब्ध नहीं है. परिवार का आरोप है कि उन्होंने घंटों तक गाड़ी का इंतजार किया, लेकिन अस्पताल की ओर से कोई इंतजाम नहीं किया गया. परिवार वालों के अनुसार, अस्पताल प्रशासन ने न तो कोई दूसरा इंतजाम किया और न ही उनके प्रति कोई हमदर्दी दिखाई.
इसके बाद परिवार को प्लास्टिक बैग में बच्चे का शव लेकर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा. रिपोर्ट के मुताबिक उस समय पिता की जेब में केवल 100 रुपये थे. मजबूरी में उन्होंने पास की दुकान से 20 रुपये का प्लास्टिक बैग खरीदा और चार महीने के बेटे की लाश उसमें रख दी. एक मरीज के अटेंडेंट ने नाम न बताने की शर्त पर न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया,
बचे हुए पैसों से डिंबा को चाईबासा से नोआमुंडी तक का बस का किराया देना पड़ा. उसने अपने बेटे की लाश को बैग में लेकर सफर किया. नोआमुंडी से उसे अपने गांव बड़ा बलजोरी तक पैदल जाना पड़ा.

हालांकि, अस्पताल प्रशासन ने इन आरोपों से इनकार किया है और सफाई देते हुए कहा है कि वह एक गाड़ी का इंतज़ाम करने की कोशिश कर रहे थे. प्रशासन के मुताबिक उन्होंने बच्चे के परिवार से कुछ और घंटे इंतजार करने को कहा था, लेकिन वह एक बैग में शव लेकर हॉस्पिटल से चले गए. चाइबासा सिविल सर्जन डॉ. भारती मिंज ने अखबार को बताया,
हम डेड बॉडी ले जाने के लिए एम्बुलेंस नहीं देते हैं. इसके लिए एक अलग शव वाहन सेवा है, और हमारे पास जिले में ऐसी सिर्फ एक ही गाड़ी है. हमने बच्चे के परिवार से दो और घंटे इंतजार करने को कहा, क्योंकि उस समय शव वाहन मनोहरपुर में था, लेकिन वे नहीं माने और शव को एक बैग में लेकर घर चले गए.
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मामला सामने आया तो विपक्षी दलों ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया. इसके बाद राज्य सरकार हरकत में आई. स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ने कहा कि सरकार हर ज़िला अस्पताल के लिए चार मॉर्चुरी वाहन खरीदेगी. इस पर करीब 15 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे, ताकि आपात स्थिति में किसी भी परिवार को अपमान न झेलना पड़े. मंत्री ने यह भी दावा किया कि इस मामले की जांच में सामने आया है कि परिवार एंबुलेंस का इंतज़ार किए बिना खुद ही निकल गया था. उनके मुताबिक उस समय दो मॉर्चुरी वाहन मौजूद थे. जिसमें से एक खराब था, जबकि दूसरा रास्ते में था.
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