पंजाब के जालंधर के रहने वाले हरजिंदर सिंह की उम्र तब 30 साल थी. मुंडी चोहलियां से ताल्लुक रखने वाले सिंह का सपना था कि वो विदेश में रहें. इसके लिए उन्होंने एक ट्रैवल एजेंट को लगभग 17 लाख रुपये (20 हजार डॉलर) दिए. एजेंट ने वादा किया था कि उन्हें दुबई के रास्ते अमेरिका पहुंचा दिया जाएगा. 26 जून, 2019 को एक सुरक्षित यात्रा की उम्मीद में हरजिंदर प्लेन में बैठे. वो अमेरिका पहुंच भी गए लेकिन इसके आगे की कहानी और भी मुश्किल हो गई.
भारत, दुबई, पनामा, मैक्सिको... कई दिनों तक जंगल में भटकते रहे, अमेरिका से डिपोर्ट होने वालों की कहानी
USA Deported Indians: कई दिनों तक पनामा के जंगलों में पैदल चलता रहा. रास्ते में अधखाए शव देखें. नाव और घोड़े पर भी यात्राएं की. पानी की तरह पैसा बहाया. 4 महीनों तक 'डंकी रूट' पर भटकने के बावजूद शख्स अमेरिका में रह नहीं पाया. ये रास्ते इतने डरावने और मुश्किलों से भरे थें कि उनको रोज डरावने सपने आते हैं.

भारत से निकलते हुए उन्होंने अपनी मां के हाथों से बनी पंजीरी के तीन डिब्बे अपने बैग में रखे थे. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अपनी यात्रा में हरजिंदर को पता चला कि एजेंट उन्हें किसी सुरक्षित रास्ते से नहीं बल्कि ‘डंकी रूट’ से ले जा रहा था. और इसके लिए भी उनसे लगभग 1.7 लाख रुपये (दो हजार डॉलर) मांगे गए.
विदेश जाने के लिए इस्तेमाल होने वाले गैरकानूनी रास्ते को 'डंकी रूट' कहते हैं. लोग इस रास्ते से चोरी-छिपे विदेश पहुंचने की कोशिश करते हैं. ये सफर बहुत खतरनाक और मुश्किलों से भरा होता है. कई मामलों में इन रास्तों पर लोगों की हत्याएं और महिलाओं के रेप तक हुए हैं.
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घोड़े और नाव पर बैठायाहरजिंदर बताते हैं कि एक नए एजेंट ने मैक्सिको पहुंचाने के लिए उनसे और पैसे मांगे. अमेरिका में प्रवेश के लिए उनके पास कानून की अनुमति नहीं थी. उन्हें एक घोड़े पर बैठाया गया. इस तरह उन्होंने एक पहाड़ और एक छोटी नदी को पार किया. उनके समूह को बाद में एक अस्थायी दस्तावेज दिया गया. इससे उन्हें एक महीने तक अमेरिका में रहने की अनुमति मिली.
उन्होंने बताया कि कोलंबिया से एक बस में 8 घंटे की यात्रा के बाद उन्हें कैली ले जाया गया. वो नाव से समुद्र किनारे बसे शहर टर्बो पहुंचे और पनामा के जंगलों में गए. वहां उनके समूह में 15 अफ्रीकी प्रवासी भी शामिल हुए. हरजिंदर और उनका समूह 10 दिनों से ज्यादा समय तक पनामा के जंगलों में आगे बढ़ता रहा. उन्होंने लगभग 105 किलोमीटर का सफर तय किया.
ये रास्ते हमारी-आपकी सोच से कहीं ज्यादा मुश्किल और खतरनाक थे. हरजिंदर बताते हैं कि जंगल के रास्ते में उन्हें कम से कम 40 शव मिले. कुछ शव आधे खाए जा चुके थे और कुछ कंकाल हो चुके थे. उन्हें और उनके ग्रुप को एक शिविर में रखा गया, जहां हरजिंदर कई रातों तक सो ही नहीं पाए. शिविर में 13 दिनों तक रुकने के बाद उन्हें कोस्टा रिका तक यात्रा करने की अनुमति मिल गई. इसके बाद उन्हें निकारागुआ के लिए एक बस में बैठाया गया. निकारागुआ से वो ग्वाटेमाला पहुंचे और फिर उन्हें ट्रकों में भरकर मैक्सिको के तापचुला में ले जाया गया.
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तापचूला में उन्हें ये कहकर 20 दिनों तक रखा गया कि उनके पेपर्स अभी प्रोसेस में हैं. इसके बाद उन्हें वेराक्रूज के एक शिविर में रखा गया. यहां वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उनकी बात अमेरिकी सीमा अधिकारियों से कराई गई. हरजिंदर को लगा कि इतने पैसे खर्च करने और इतनी मुश्किलों को पार करने के बाद अब वो अमेरिका में रह पाएंगे. लेकिन हुआ बिल्कुल इसका उल्टा. उनको भारत डिपोर्ट कर दिया गया. इन सबमें लगभग 4 महीने का समय लगा.
मां की पंजीरी ने मिटाई भूखइस घटना के करीब 5 साल बीत चुके हैं. हरजिंदर बताते हैं कि आज भी उन्हें पनामा जंगलों के सपने आते हैं. उन्हें अंधेरा दिखता है, दलदल दिखता है, अधखाए शव दिखते हैं, दलदल में उनके पैर फंस जाते हैं, सांपों की फुसफुसाहट सुनाई देती है… और आखिर में जब उन्हें कुछ सैनिक दिखते हैं तो उन्हें डर हो जाता है, लेकिन साथ में राहत भी मिलती है… और फिर पसीने से लथपथ होकर उनकी नींद खुल जाती है.
इस मुश्किल रास्ते में उन तीन डिब्बों में भरी पंजीरी ने उनकी भूख मिटाई, जो उन्होंने भारत से निकलते वक्त अपने बैग में रखे थे. भारत डिपोर्ट होने के बाद, डर के मारे कई महीनों तक उन्होंने खुद को कमरे में बंद रखा. उन्होंने बताया कि समय बीतने के साथ उनका आत्मविश्वास थोड़ा बढ़ा है. वो 14 एकड़ जमीन में लहसुन, गेहूं और धान उगाते हैं. इसमें 10 एकड़ जमीन पट्टे पर ली गई है. हरजिंदर कहते हैं कि वो सलाना करीब 9 लाख रुपये कमाते हैं. इसके बावजूद वो अब भी कर्ज में हैं.
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