चुनाव आयोग (Election Commission) ने बिहार (Bihar) में आगामी चुनावों से पहले मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) की घोषणा की है. आयोग ने बताया कि यह कदम मतदाता सूची को अपडेट करने और सभी कमियों को दूर करने के लिए उठाया गया है. लेकिन विपक्षी पार्टियां कांग्रेस (Congress) और राजद (RJD) ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं. और इसे NDA गठबंधन को फायदा पहुंचाने की कवायद करार दिया है.
बिहार चुनाव से पहले मतदाता सूची की छंटनी? चुनाव आयोग के फैसले पर उठा राजनीतिक तूफान
Election Commission ने 24 जून को कहा था कि Bihar में सभी मौजूदा वोटर्स जो 2003 से मतदाता सूची में नहीं थे, उन्हें फिर से अपनी पात्रता साबित करने के लिए दस्तावेज उपलब्ध कराने होंगे. आयोग ने बताया कि बिहार के बाद इस प्रैक्टिस को पूरे देश में लागू किया जाएगा.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा की है. इसका मतलब है कि मतदाता सूची में सब कुछ ठीक नहीं है.
बाकी विपक्षी दलों ने भी चुनाव आयोग के इस फैसले पर आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि इस प्रक्रिया के चलते राज्य में होने वाले चुनावों से पहले लाखों वंचित मतदाताओं का वोट का अधिकार छिन जाएगा.
चुनाव आयोग ने 24 जून को कहा था कि बिहार में सभी मौजूदा वोटर्स जो 2003 से मतदाता सूची में नहीं थे, उन्हें फिर से अपनी पात्रता साबित करने के लिए दस्तावेज उपलब्ध कराने होंगे. आयोग ने बताया कि बिहार के बाद इस प्रैक्टिस को पूरे देश में लागू किया जाएगा.
चुनावों की निगरानी के लिए गठित कांग्रेस की ईगल समिति ने 26 जून को एक बयान जारी कर कहा,
आसान भाषा में कहें तो चुनाव आयोग मौजूदा मतदाता सूची को पूरी तरह से खत्म करना चाहता है और राज्य के लिए एक नई मतदाता सूची बनाना चाहता है. यह स्पष्ट तौर पर इस बात पर मुहर लगाता है कि भारत की मतदाता सूची में सब कुछ ठीक नहीं है. बिल्कुल वही बात जो कांग्रेस पार्टी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी महाराष्ट्र के सबूतों के साथ बार-बार बता रहे हैं.
आठ सदस्यीय ईगल समिति ने कहा कि लाखों संघ और राज्य सरकार के अधिकारी अब यह तय करेंगे कि किसके पास सही दस्तावेज है और किसे आने वाले बिहार चुनाव में वोट देने का अधिकार है. इसमें राज्य की मशीनरी का इस्तेमाल करके जानबूझकर वोटर्स को वोट के अधिकार से वंचित करने का जोखिम है.
इससे पहले 25 जून को बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने राज्य के सभी राजनीतिक दलों के साथ एक बैठक की थी. इस बैठक में राजद, कांग्रेस, भाकपा (माले) लिबरेशन, भाकपा और माकपा समेत इंडिया ब्लॉक के प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से SIR को खारिज कर दिया. और इसे गरीब, ग्रामीण और अल्पसंख्यक मतदाताओं को मतदाता सूची से बाहर करने की एक चाल बताया.
राजद के राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया कि उनकी पार्टी इस मसले पर चुनाव आयोग से संपर्क करेगी. उन्होंने कहा,
यह एक बहुत बड़ी कवायद है. सिर्फ ढाई महीने में बिहार चुनाव की अधिसूचना आने की उम्मीद है ऐसे में इसकी टाइमिंग को लेकर बड़ा सवाल है. यह प्रक्रिया बहुत पहले शुरू हो सकती थी. हमें लगता है कि ये पूरी प्रक्रिया सबाल्टर्न क्लास, अल्पसंख्यक, पिछड़े और दलितों को चुनावी प्रक्रिया से गायब कर देने की कोशिश है.
विपक्षी दलों ने दस्तावेजों को लेकर आयोग की सख्त गाइडलाइन्स को लेकर सवाल उठाए हैं. नए नियमों के मुताबिक जन्म समूह के आधार पर अलग-अलग प्रमाण पत्र देने होंगे. 1 जुलाई 1987 और 2 दिसंबर, 2004 के बीच जन्म लेने वाले वोटर्स को अपने माता-पिता में से किसी एक की भारतीय नागरिकता का प्रमाण देना होगा. वहीं 2 दिसंबर, 2004 के बाद जन्म लेने वाले लोगों को अपने माता-पिता दोनों के दस्तावेज दिखाने होंगे.
CPI (ML)L के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया को असम के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (NRC) से मिलता जुलता बताया है. उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त को एक पत्र लिखकर बताया है कि एक महीने में लगभग 8.1 करोड़ वोटर्स का सत्यापन करना बेहद बेतुका और अतार्किक कदम है.
RJD ने SIR की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाए हैं. 243 सदस्यीय विधानसभा का कार्यकाल 22 नवंबर को समाप्त हो रहा है. चुनाव अक्टूबर और नवंबर के बीच होने की उम्मीद है. बिहार में मतदाता सूची में मामूली बदलाव भी कांटे की टक्कर वाली सीटों पर नतीजे तय कर सकता है. पार्टियों को डर है कि सीमांचल के किशनगंज, अररिया और सुपौल जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम सहित अल्पसंख्यक वोटर्स पर दस्तावेजों को लेकर चुनाव आयोग की सख्ती का बुरा असर हो सकता है.
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चुनाव आयोग के फैसले के आलोचकों का एक तर्क ये है कि बिहार की जन्म पंजीकरण दर 75 फीसदी के आसपास है. और कई ग्रामीण परिवारों के पास औपचारिक रिकॉर्ड नहीं है. उनके मुताबिक मानसून से बंधे, कृषि आधारित समुदायों के लिए चुनाव आयोग की शर्तें पूरी कर पाना मुश्किल होगा. और इसके चलते एक बड़ी आबादी वोट देने के अधिकार से वंचित हो सकती है.
वहीं चुनाव आयोग का तर्क है कि SIR, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के अनुच्छेद 326 और धारा 21 के तहत एक संवैधानिक जरूरत है. एक प्रेस नोट में आयोग ने बताया कि तेजी से हो रहे शहरीकरण, लगातार हो रहे पलायन, युवा मतदाताओं की संख्या में वृद्धि, मृत्यु की सूचना नहीं मिल पाना और विदेशी घुसपैठियों के नामों का लिस्ट में आने जैसे कई कारणों से यह विशेष पुनरीक्षण आवश्यक हो गया है. आयोग का मकसद एक साफ, सटीक और भरोसेमंद मतदाता सूची तैयार करना है.
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