सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अक्टूबर 2023 में एक अहम निर्देश दिया था कि गिरफ्तारी के वक्त आरोपी को लिखित रूप से ये बताया जाएगा कि उसे किन कारणों (Grounds of Arrest) से गिरफ्तार किया जा रहा है. लेकिन अब शीर्ष अदालत ने आशंका जताई है कि उनके इस निर्देश का बड़े स्तर पर दुरुपयोग हो सकता है. एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट ने हत्या के एक आरोपी को गिरफ्तारी के दो साल बाद रिहा कर दिया. क्योंकि पुलिस ने उसे लिखित रूप से गिरफ्तारी का कारण नहीं बताया था.
CJI गवई ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जताई आशंका, बोले-गिरफ्तारी के नियम का हो रहा है गलत इस्तेमाल
CJI B R Gavai on Arrest Rules: 22 मार्च 2025 को, आरोपी ने कर्नाटक हाईकोर्ट में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट के 3 अक्टूबर, 2023 के फैसले के आधार पर हाईकोर्ट ने आरोपी की गिरफ्तारी को रद्द कर दी. लेकिन कोर्ट ने उससे जांच अधिकारी के सामने पेश होने, जांच में सहयोग करने, गवाहों को धमकी न देने, अपराध में शामिल न होने और जांच अधिकारी की अनुमति के बिना पुलिस स्टेशन के क्षेत्र को न छोड़ने के लिए कहा.

22 मार्च 2025 को, आरोपी ने कर्नाटक हाईकोर्ट में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट के 3 अक्टूबर, 2023 के फैसले के आधार पर हाईकोर्ट ने आरोपी की गिरफ्तारी को रद्द कर दी. लेकिन कोर्ट ने उससे जांच अधिकारी के सामने पेश होने, जांच में सहयोग करने, गवाहों को धमकी न देने, अपराध में शामिल न होने और जांच अधिकारी की अनुमति के बिना पुलिस स्टेशन के क्षेत्र को न छोड़ने के लिए कहा.
इस मामले को कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने जस्टिस केवी विश्वनाथन की अगुवाई वाली बेंच के समक्ष अपनी दलीलें पेश कीं. उन्होंने कहा कि सामान्य रूप से सुप्रीम कोर्ट के फैसले उन मामलों पर लागू होते हैं जो उस फैसले की तारीख के बाद होते हैं. अगर कोई फैसला उस तारीख के पहले के मामलों पर लागू होना होता है, तो कोर्ट इस बारे में विशेष निर्देश देता है.
सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि अक्टूबर 2023 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के लिए ऐसा निर्देश नहीं दिया गया था. इसका मतलब है कि ये आदेश उस तारीख के बाद के मामलों पर लागू होंगे. लेकिन आरोपी की गिरफ्तारी उससे पहले ही हो गई थी. 17 फरवरी, 2023 को उसे गिरफ्तार किया गया था और उसी दिन उसे कस्टडी में भेज दिया गया था. लूथरा ने कहा कि मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी गई है और मुकदमा चल रहा है.
सुप्रीम कोर्ट की चिंताजस्टिस विश्वनाथन ने मामले पर चिंता जताते हुए कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले से उन हजारों गिरफ्तारियों पर भारी असर पड़ सकता है, जो अक्टूबर 2023 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पहले हुई हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस विश्वनाथन ने कहा,
हमें चिंता है कि कर्नाटक हाईकोर्ट की इस तरह की कार्रवाई का राष्ट्रव्यापी प्रभाव पड़ेगा. 3 अक्टूबर, 2023 से पहले गिरफ्तार किए गए हजारों आरोपी अपनी गिरफ्तारी को रद्द करने की मांग को लेकर अदालतों का रुख कर सकते हैं.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई की बेंच के समक्ष 22 अप्रैल, 2025 को मिहिर शाह की एक याचिका की सुनवाई हुई थी. उसमें भी इसी प्रकार का एक सवाल था. CJI ने मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. इस मामले में भी गिरफ्तारी को चुनौती दी गई थी और आरोप लगाया गया था पुलिस ने लिखित में गिरफ्तारी के कारण नहीं बताए थे.
CJI गवई और जस्टिस एजी मसीह ने दो सवाल उठाए थे. उन्होंने पूछा, क्या हर मामले में गिरफ्तारी के पहले या तुरंत बाद गिरफ्तारी का आधार बताना अनिवार्य है? क्या उन मामलों में ये वैकल्पिक नहीं हो सकता, जहां ऐसा करना असंभव है? CJI ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था,
कल्पना कीजिए कि कोई व्यक्ति सार्वजनिक रूप से लोगों पर गोलियां चला रहा है. क्या पुलिस को उसे हिरासत में लेना चाहिए या उसे पहले गिरफ्तारी के आधार तैयार करने का इंतजार करना चाहिए? हमारे फैसले (अक्टूबर 2023 का फैसला) का घोर दुरुपयोग किया गया है.
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कर्नाटक हाईकोर्ट वाले मामले में अब क्या?इस मामले का उल्लेख करते हुए जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि मिहिर शाह की याचिका पर 15 जुलाई के बाद फैसला आने की उम्मीद है. उस मामले में ये दिशा-निर्देश दिए जा सकते हैं कि गिरफ्तारी के क्या आधार होंगे. इसलिए बेहतर होगा कि उस फैसले का इंतजार किया जाए. इसके बाद जस्टिस विश्वनाथन ने कर्नाटक हाईकोर्ट वाले मामले की अगली सुनवाई के लिए 18 जुलाई की तारीख तय की.
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