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प्रचार-प्रसार: भारतीय सहकारिता के लिए एक नया सवेरा: जन-केंद्रित प्रगति के युग की शुरुआत

“त्रिभुवन” सहकारी यूनिवर्सिटी एक्ट, 2025 के पारित होने और उसके बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति के साथ, इंस्टिट्यूट ऑफ़ रूरल मैनेजमेंट आणंद (IRMA) का “त्रिभुवन” सहकारी यूनिवर्सिटी में रूपांतरण एक ऐसे आंदोलन को औपचारिक मान्यता देता है जो दशकों पहले गुजरात के हृदय में शुरू हुआ था.

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इंस्टिट्यूट ऑफ़ रूरल मैनेजमेंट आणंद.

भारत के ग्रामीण पुनरुत्थान की कहानी ने एक नया अध्याय पाया है, जो इस बार खेतों या कारखानों में नहीं बल्कि एक ऐसी संस्था के सृजन में उकेरा गया है जो भारत और उसके बाहर, सहकारी नेतृत्व के भविष्य को आकार देना चाहती है. 

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“त्रिभुवन” सहकारी यूनिवर्सिटी एक्ट, 2025 के पारित होने और उसके बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति के साथ, इंस्टिट्यूट ऑफ़ रूरल मैनेजमेंट आणंद (IRMA) का “त्रिभुवन” सहकारी यूनिवर्सिटी में रूपांतरण एक ऐसे आंदोलन को औपचारिक मान्यता देता है जो दशकों पहले गुजरात के हृदय में शुरू हुआ था.

यह सरदार श्री वल्लभभाई पटेल के सपनों में रचा-बसा एक आंदोलन है, जिसे श्री त्रिभुवनदास किशीभाई पटेल के संकल्प ने पोषित किया है और डॉ. वर्गीस कुरियन और डॉ. जे.एम. दलाया की प्रतिभा द्वारा साकार किया गया है. दूरदृष्टि, नेतृत्व और क्रियान्वयन की इस चौकड़ी ने भारत को न केवल अमूल जैसा ब्रांड दिया, बल्कि सहकारी मॉडल के माध्यम से जमीनी स्तर पर आर्थिक सशक्तिकरण का खाका भी दिया.

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अब, उस भावना को संस्थागत रूप दिया जा रहा है. यह विश्वविद्यालय अमूल के संस्थापक अध्यक्ष पद्म भूषण श्री त्रिभुवनदास पटेल के नाम पर स्थापित किया जा रहा है, जो कि एक स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने सहकारी मॉडल को राष्ट्रीय विकास के साधन में बदल दिया. यह विश्वविद्यालय आत्मनिर्भरता और साझा समृद्धि को मिलाकर इस शक्तिशाली विरासत को आगे ले जाएगा.

एक आंदोलन से जन्मा विश्वविद्यालय

भारत की डेयरी क्रांति के उद्गम स्थल आणंद में स्थित, “त्रिभुवन” सहकारी यूनिवर्सिटी भारत की पहली यूनिवर्सिटी है जो सहकारिता के अध्ययन, उन्नति और प्रसार के लिए समर्पित है.

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इसकी छत्रछाया में, IRMA ग्रामीण प्रबंधन में उत्कृष्ट केंद्र के रूप में अपनी पहचान बनाए रखेगा, व अपने अधिदेश का विस्तार करते हुए निरंतरता सुनिश्चित करेगा. लेकिन यह परिवर्तन कुछ और महत्वपूर्ण संकेत देता है: सहकारी शिक्षा को अकादमिक उत्कृष्टता और नीति प्रासंगिकता के उच्चतम सोपानों तक ले जाना.

इस यूनिवर्सिटी को एक शीर्ष निकाय, एक बौद्धिक महाशक्ति के रूप में स्थापित किया गया है, जो सहकारी लेंस के माध्यम से डेयरी, कृषि, मत्स्य पालन, वित्त और प्रौद्योगिकी जैसे विविध क्षेत्रों के लिए भविष्य के नेताओं का निर्माण करेगा.

सहकार से समृद्धि: आगे की राह

सहकार से समृद्धि (सहकारिता के माध्यम से समृद्धि) द्वारा प्रेरित यह यूनिवर्सिटी ज़मीनी स्तर के चिकित्सकों, उभरते पेशेवरों और वैश्विक विद्वानों के लिए समान रूप से डिज़ाइन किए गए डिग्री पाठ्यक्रमों से लेकर दूरस्थ और ऑनलाइन प्रमाणपत्रों तक प्रदान करेगी.

यह यूनिवर्सिटी सहकारी शिक्षा के मानकीकरण, नीति अनुसंधान का समर्थन करने और सामुदायिक नेतृत्व में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए एक नोडल एजेंसी के रूप में भी कार्य करेगी. यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और विदेशी छात्रों के लिए प्रवेश की योजनाएँ बन रही हैं, जो सहकारी सोच और ग्रामीण विकास में वैश्विक नेता के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करेंगी.

अतीत का सम्मान, भविष्य का निर्माण

खेड़ा के धूल भरे मैदानों में, जो एक साधारण सहकारी दूध मंडली के रूप में शुरू हुई, उस ने अब एक राष्ट्रीय संस्था का रूप ले लिया है. गांव-स्तरीय आंदोलन से विश्वविद्यालय तक की यात्रा भारत की समावेशी,  व लोगों के नेतृत्व वाले विकास के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है.

इस समय जब दुनिया विकास के एक स्थायी मॉडल की तलाश कर रही है,  भारत ने एक बार फिर दिखाया है कि इसका जवाब उसके गांवों में है, और अब, एक ऐसी यूनिवर्सिटी में जो गर्व से उस दृष्टिकोड को आगे बढ़ाती है.

यह आर्टिकल प्रायोजित है.

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