'संचार साथी' ऐप के प्री-इंस्टॉलेशन पर बड़ा अपडेट सामने आया है. केंद्र सरकार ने अब इस ऐप के प्री-इंस्टॉलेशन का फैसला टाल दिया है. बुधवार, 3 दिसंबर को सरकार ने इस संबंध में प्रेस रिलीज जारी की. इसमें बताया कि, संचार साथी की बढ़ती स्वीकार्यता को देखते हुए मोबाइल कंपनियों के लिए इसका प्री-इंस्टॉलेशन अनिवार्य करने का फैसला टाल दिया गया है.
Sanchar Saathi ऐप को लेकर पीछे हटी सरकार, प्री-इंस्टॉलेशन वाली शर्त हटाई
सरकार ने साफ-साफ कहा कि यूजर जब चाहे इसे अनइंस्टॉल कर सकता है, इसमें कोई पाबंदी नहीं है. सरकार के मुताबिक अब तक 1.4 करोड़ यूजर्स ने इस ऐप को डाउनलोड कर लिया है और रोजाना 2000 से ज्यादा फ्रॉड केसेज की जानकारी दे रहे हैं.
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PIB के अनुसार सरकार ने बताया कि सभी स्मार्टफोन में संचार साथी ऐप के प्री-इंस्टॉल को अनिवार्य करने का फैसला इसलिए लिया गया था, ताकि हर नागरिक को साइबर सुरक्षा का पूरा अधिकार मिले. सरकार ने कहा,
“ये ऐप 100% सुरक्षित है और इसका एकमात्र मकसद आपको साइबर ठगों, फ्रॉड कॉल्स, फिशिंग और ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचाना है. इसमें जन भागीदारी का शानदार कॉन्सेप्ट है. आप खुद साइबर क्राइम की शिकायत कर सकते हो, संदिग्ध नंबर/लिंक रिपोर्ट कर सकते हैं, और दूसरों को भी बचा सकते हैं. ऐप में कोई ट्रैकिंग, कोई सर्विलांस, कोई डेटा कलेक्शन नहीं है. सिर्फ और सिर्फ यूजर की सुरक्षा है.”
सरकार ने साफ-साफ कहा कि यूजर जब चाहे इसे अनइंस्टॉल कर सकता है, इसमें कोई पाबंदी नहीं है. सरकार के मुताबिक अब तक 1.4 करोड़ यूजर्स ने इस ऐप को डाउनलोड कर लिया है और रोजाना 2000 से ज्यादा फ्रॉड केसेज की जानकारी दे रहे हैं. यूजर्स की संख्या तेजी से बढ़ रही है और ऐप को अनिवार्य करने का मकसद यही था कि जागरूकता कम होने वाले नागरिकों तक भी ये आसानी से पहुंच जाए.
केंद्र सरकार ने ये भी बताया कि कल (2 दिसंबर) एक ही दिन में 6 लाख नागरिकों ने रजिस्ट्रेशन करवाकर ऐप डाउनलोड किया, यानी डाउनलोड रेट में 10 गुना का जबरदस्त उछाल आया. सरकार कह रही है कि ये साफ संकेत है कि लोग इस सरकारी ऐप पर पूरा भरोसा कर रहे हैं और इसे अपनी साइबर सुरक्षा का मजबूत कवच मान रहे हैं.
क्या था सरकार का आदेश?इससे पहले केंद्रीय दूरसंचार विभाग ने जो निर्देश जारी किए थे, उनके मुताबिक फोन में इस फीचर को रोका या हटाया नहीं जा सकता. उस आदेश के मुताबिक, किसी भी नए हैंडसेट के शुरुआती सेटअप के दौरान ये ऐप दिखना चाहिए और इस्तेमाल करने में आसान होना चाहिए. साथ ही फोन निर्माता ऐप के किसी भी फीचर को छिपा या डिसेबल नहीं कर सकते हैं. इसके अलावा ऐसे डिवाइस, जो पहले ही बन चुके हैं और बिकने के लिए स्टोर्स में हैं, उनमें भी अपडेट के जरिए ऐप इंस्टॉल करने के लिए कहा गया था. सरकार ने कहा था कि कंपनियों को 90 दिन के भीतर इसका पालन करना होगा. साथ ही 120 दिन में कंप्लायंस रिपोर्ट फाइल करनी होगी.
लेकिन जल्दी ही सरकार के इस फैसले का तीखा विरोध शुरू हो गया. टेक एक्सपर्ट से लेकर विपक्षी दलों के नेता तक इसे लेकर सरकार पर हमलावर थे. उनका कहना था कि सरकार इस ऐप के बहाने लोगों की ‘जासूसी’ करना चाहती है. विपक्ष ने इसे ‘निजता का उल्लंघन’ और लोगों की ‘निगरानी करने का टूल’ बताया था. अब सरकार ने अपना आदेश वापस ले लिया है.
वीडियो: संचार साथी ऐप के बारे में एक्सपर्ट ने क्या समझाया?

















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