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'गोभी की खेती': जब बिहार के भागलपुर में भीड़ ने 116 मुसलमानों को मार डाला था

BJP minister Gobi farming post: भागलपुर में दंगे 24 अक्टूबर 1989 से शुरू हुए और पूरे दो महीने तक चलते रहे. शहर और आसपास के करीब 250 गांवों में हिंसा फैल गई. 1,000 से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें लगभग 900 मुसलमान थे.

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1989 के भागलपुर दंगों को उस समय आजाद भारत का सबसे बड़ा सांप्रदायिक दंगा माना गया था. (ITG)

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भारतीय जनता पार्टी(BJP) और जनता दल यूनाइटेड (JDU) के नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) की बड़ी जीत हुई. भारी बहुमत मिलने की खुशी में बीजेपी नेता और असम सरकार में मंत्री अशोक सिंघल ने सोशल मीडिया पर एक गोभी के खेत की फोटो डालते हुए लिखा, "बिहार ने गोभी की खेती को मंजूरी दी."

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इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर 'गोभी की खेती' की खोजबीन शुरू हुई, जो बिहार के भागलपुर के दंगों पर आकर रुकी. इन दंगों को अक्सर 'गोभी फॉर्मिंग', 'गोभी की खेती', 'गोभी कांड' या 'लोगैन नरसंहार' के तौर भी याद किया जाता है.

इंडिया टुडे से जुड़ीं प्रिया पारीक की रिपोर्ट के मुताबिक, 1989 में भागलपुर दंगों के दौरान 100 से ज्यादा मुसलमानों की हत्या कर उनके शवों को खेत में दफना दिया गया था. फिर ऊपर गोभी के पौधे लगा दिए गए थे, ताकि किसी को पता ना चले.

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असम के मंत्री और BJP नेता अशोक सिंघल का पोस्ट. (X @TheAshokSinghal)

मार्च 2025 में नागपुर हिंसा के दौरान भी कुछ दक्षिणपंथी सोशल मीडिया अकाउंट्स ने गोभी की तस्वीरें शेयर की थीं. मई 2025 में कर्नाटक BJP के आधिकारिक X अकाउंट ने छत्तीसगढ़ में माओवादियों के मारे जाने पर एक मीम शेयर किया था, जिसमें फिर वही गोभी वाला कॉन्टेक्स्ट था.

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BJP कर्नाटक का पोस्ट. (X @BJP4Karnataka)

लोगैन में क्या हुआ था?

भागलपुर में दंगे 24 अक्टूबर 1989 से शुरू हुए और पूरे दो महीने तक चलते रहे. शहर और आसपास के करीब 250 गांवों में हिंसा फैल गई. 1,000 से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें लगभग 900 मुसलमान थे. हिंसा में लगभग 50,000 लोग बेघर हो गए. यह उस समय आजाद भारत का सबसे बड़ा सांप्रदायिक दंगा माना गया था.

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लोगैन गांव में हालात सबसे खौफनाक थे. बताया जाता है कि 4,000 लोगों की भीड़ ने 116 मुसलमानों की हत्या कर दी थी. बाद में इन शवों को खेत में दफनाकर ऊपर गोभी और पत्तागोभी के पौधे लगा दिए गए, ताकि हत्या छिपी रहे. उस समय भागलपुर में IAS एके सिंह स्पेशल ADM (लॉ एंड ऑर्डर) थे. उन्होंने इस खौफनाक राज का खुलासा किया था.

दंगों का बैकग्राउंड

यह हिंसा उस दौर में भड़की जब देशभर में राम जन्मभूमि आंदोलन को लेकर माहौल बेहद तनावपूर्ण था. जब विश्व हिंदू परिषद (VHP) की रामशिला यात्रा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए ईंटें इकट्ठी करने भागलपुर पहुंची थी. तब जिले में पहले से ही हिंदू छात्रों की हत्या की कथित भड़काऊ अफवाहें फैलने लगीं. ऊपर से राजनीतिक और आपराधिक टकराव से सांप्रदायिक तनाव भड़का दिया.

24 अक्टूबर को जब एक बड़ी रामशिला यात्रा मुस्लिम बहुल इलाके तातारपुर पहुंची, तो विवाद बढ़ गया. पहला जुलूस शांति से निकल चुका था. लेकिन दूसरे जुलूस में उत्तेजक नारे लगे. जब अधिकारियों ने हालात संभालने की कोशिश की, तभी पास के मुस्लिम हाई स्कूल की तरफ से कच्चे बम फेंके गए. धमाकों से पुलिसवाले घायल हो गए.

हालात पर काबू पाने के लिए पुलिस ने फायरिंग की, जिसमें दो लोग मारे गए. माहौल हिंसक हो चुका था. जुलूस हिंसक भीड़ में तब्दील हो गया. मुस्लिम दुकानों को निशाना बनाया गया. फिर दोनों पक्षों में हिंसा फैल गई और पूरा जिला इसकी चपेट में आ गया.

दंगों के दौरान कई जगह ऐसी वारदातें हुईं, जिनसे पूरा देश हिल गया. नयाबाजार में 18 मुसलमान मारे गए, जिनमें 11 बच्चे थे. चंदेरी गांव के तालाब से 61 शव निकले. वहीं, लोगैन में 116 लोगों को मुसलमानों का मारकर दफनाया गया. सरकारी आंकड़ों में 1,070 मौतें दर्ज हैं, जबकि हजारों लोग अपना घर छोड़ने पर मजबूर हुए. घरों, दुकानों, करघों और पूजा स्थलों को भारी नुकसान बताया गया.

न्याय की कोशिशें

दंगों की जांच के लिए जांच आयोग बने, जिन्होंने पुलिस की लापरवाही और राजनीतिक नाकामी को इस भीषण हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया. घटना के लगभग 18 साल बाद इन दंगों पर फैसला आया. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2007 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के दो साल बाद लोगैन केस में 14 लोगों को उम्रकैद की सजा हुई. इनमें एक पूर्व पुलिस अधिकारी रामचंदर सिंह भी शामिल थे. कुल मिलाकर भागलपुर दंगों के लिए 38 लोगों को सजा मिली.

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