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2003 में 8 महीने, अब सिर्फ 3 महीने… वोटर लिस्ट रिवीजन पर बवाल, EPIC था वोटर्स के सत्यापन का आधार

साल 2002-03 के Voter List में मौजूद वोटर्स से Citizenship का कोई प्रमाण नहीं मांगा गया था. उस समय मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) वोटर्स के सत्यापन का आधार था. लेकिन इस बार election commission ने एक अलग रुख अपनाया है. उसने बिहार के मौजूदा वोटर्स के लिए पात्रता के प्रमाण के तौर पर EPIC कार्ड पर विचार करने Supreme Court के सुझाव को स्वीकार नहीं किया है.

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साल 2003 के वोटर लिस्ट रिवीजन में ज्यादा समय मिला था. (इंडिया टुडे, फाइल फोटो)

बिहार (Bihar) में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) का बचाव करते हुए चुनाव आयोग ने साल 2002-03 में हुए वोटर लिस्ट रिवीजन को बेंचमार्क के तौर पर रखा है. और SIR के लिए तीन महीने की समयसीमा का जोरदार समर्थन किया है. वहीं वोटर ID को पहचान के तौर पर स्वीकारने के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के सुझाव से भी इनकार कर दिया है. इसके उलट पूर्व चुनाव अधिकारियों ने साल 2002-03 में हुए वोटर लिस्ट रिवीजन की अलग तस्वीर बयां की है.

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इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में इलेक्शन कमीशन से जुड़े पूर्व अधिकारियों ने बताया कि साल 2002-3 में सात राज्यों में वोटर लिस्ट रिवीजन हुआ था. बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पंजाब. इस पूरी प्रकिया को पूरा करने के लिए तब आठ महीने का समय दिया गया था, जो मौजूदा समयसीमा से दोगुने से भी ज्यादा है. (ये अधिकारी तत्कालीन वोटर लिस्ट रिवीजन प्रक्रिया से जुड़े हुए थे.)

साल 2002-03 के वोटर लिस्ट में मौजूद वोटर्स से नागरिकता का कोई प्रमाण नहीं मांगा गया था. उस समय मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC)  वोटर्स के सत्यापन का आधार था. लेकिन इस बार चुनाव आयोग ने एक अलग रुख अपनाया है. उसने बिहार के मौजूदा वोटर्स के लिए पात्रता के प्रमाण के तौर पर EPIC कार्ड पर विचार करने सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को स्वीकार नहीं किया है. साल 2003 में किए गए वोटर लिस्ट रिवीजन में वोटर्स के लिए 11 दस्तावेज़ों में से कोई एक जमा करने की बाध्यता नहीं थी. 4.96 करोड़ वोटर्स के लिए ये प्रक्रिया तब ज्यादा आसान थी. 

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साल 2003 के वोटर लिस्ट रिवीजन और मौजूदा SIR प्रकिया के बीच का ये अंतर ही सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ दायर याचिकाओं के केंद्र में है. याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि अक्टूबर-नवंबर में बिहार में चुनाव कराए जाने हैं. उससे ठीक पहले तीन महीने का समय (25 जून से 30 सितंबर, 2025) वोटर लिस्ट रिवीजन के लिए पर्याप्त नहीं है. बिहार में बहुत से ऐसे वोटर्स हैं जिनको डॉक्यूमेंट्स जुटाने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा.

ये भी पढ़ें - SIR प्रक्रिया के तहत बिहार में वोटर लिस्ट अपडेट, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर लिस्ट सार्वजनिक 

याचिकाकर्ताओं ने ये तर्क भी दिया कि चुनाव आयोग राष्ट्रीयता (नागरिकता) के सवालों में भटक रहा है, जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है. सुप्रीम कोर्ट 22 अगस्त को फिर से मामले की सुनवाई करेगा. 

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वीडियो: वोटर लिस्ट में गड़बड़ी पर पत्रकार ने चुनाव आयोग से क्या पूछा?

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