‘एक व्यक्ति मर रहा है और आपको जवाब देने के लिए वक्त चाहिए.’ एक बीमा कंपनी को हड़काते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने ये बात ऐसे ही नहीं कही है. कंपनी ने पहले तो ओरल कैंसर के मरीज का ये कहते क्लेम रिजेक्ट कर दिया कि वो गुटखा खाते थे. मामला कोर्ट पहुंचा तो कंपनी के अधिकारी जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगने लगे. इस दलील पर जज साहब भड़क गए. उन्होंने कंपनी को फटकारते हुए कहा, ‘एक व्यक्ति मर रहा है और आप जवाब दाखिल करने के लिए समय चाहते हैं? अगली बार अपने MD को लेकर कोर्ट में आइए.’ कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 14 मई तय की है.
'आदमी मर रहा है, आपको टाइम चाहिए...' क्लेम खारिज करने पर बीमा कंपनी को HC ने लताड़ लगाई
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक बीमा कंपनी को क्लेम रिजेक्ट करने पर फटकार लगाई है. कंपनी ने कैंसर के मरीज का क्लेम खारिज कर दिया. क्लेम रिजेक्ट होने के बाद अस्पताल ने मरीज को घर जाने को कह दिया. जिसके बाद परेशान मरीज की बेटी हाईकोर्ट पहुंची.

याचिकाकर्ता संतोष पांडेय बिहार के रहने वाले हैं. इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उनकी 23 साल की बेटी श्रेयांशी ने बताया कि पिता को स्टेज 3 का ओरल कैंसर है. एक महीने के अंदर उनका वजन 92 किलो से 56 किलो हो गया था. कैंसर का पता चलने के बाद डॉक्टर ने 35 राउंड ट्रेकियोस्टोमी सर्जरी और कीमोथेरेपी की सलाह दी. 6 मई को इम्यूनोथेरेपी उपचार के लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. उन्हें 200 मिलीग्राम दवा दी जाती है, जिसके 100 मिलीग्राम की कीमत 1.90 लाख रुपये है. इलाज में अब तक लगभग 20 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं.
संतोष पांडेय ने 2014 से हेल्थ इंश्योरेंस करवा रखा है. पहले एक निजी कंपनी में उन्होंने बीमा करवाया था. बाद में इसे दूसरी कंपनी केयर हेल्थ इंश्योरेंस में पोर्ट करा लिया. उन्हें लगा कि दूसरी कंपनी में फायदे ज्यादा हैं. 15 लाख की स्कीम थी. हर महीने उन्होंने प्रीमियम भरा. कैंसर हुआ तो पहली बार उन्होंने बीमा क्लेम किया. कंपनी ने कई सारे कागज मांगे. सारे डॉक्युमेंट्स दिए गए. हफ्ते भर तक कंपनी लगातार तमाम तरह के सवाल करती रही. अंत में जवाब दिया कि क्लेम रिजेक्ट कर दिया गया है क्योंकि पांडेय ‘टोबैको यूजर’ हैं.
श्रेयांशी बताती हैं,
'तो 3-4 महीने कम हो जाएगी जिंदगी'हमें पता है कि पिता न तो तंबाकू खाते थे और न कभी शराब ही पी है. हमने कंपनी को 200 से ज्यादा बार फोन किया. उन्होंने कहा कि आप ऑफिस ऑवर में कॉल करिए. हमने ऑफिस ऑवर में किया तो कोई जवाब नहीं मिलता था. जवाब मिलता भी था तो ये कि हम प्रोसेस कर रहे हैं.
कंपनी ने बीमा रिजेक्ट किया तो पांडेय को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. तंग आकर उन्होंने अदालत का रुख किया. कोर्ट को उन्होंने बताया कि तुरंत इलाज नहीं मिला तो उनकी जिंदगी 3 से 4 महीने तक कम हो जाएगी. इलाज महंगा है. बीमा पॉलिसी से ही इसका भुगतान हो सकता है. अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में पांडेय ने बताया कि उनकी सारी सेविंग बेटी की पढ़ाई पर खर्च हो गई है. उनके पास इलाज में देने के लिए पैसे नहीं हैं. वह परिवार में अकेले कमाने वाले व्यक्ति हैं.
अपनी याचिका में इंश्योरेंस कंपनी केयर हेल्थ इंश्योरेंस लिमिटेड के साथ-साथ भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के खिलाफ भी उन्होंने शिकायत की है. याचिका में उन्होंने मांग की है कि उनके अब तक के 20 लाख 81 हजार रुपये के क्लेम को स्वीकार किया जाए. इसके अलावा, मानसिक पीड़ा और उत्पीड़न के लिए मुआवजे के तौर पर 10 लाख रुपये का और भुगतान किया जाए.
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