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अडानी की खबरें हटाने का आदेश खारिज, कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला रद्द किया

Delhi Court Adani Group Journalists: रोहिणी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने कहा कि कॉन्टेंट लंबे समय से सार्वजनिक डोमेन में थे. इसलिए, सिविल जज को उनके कॉन्टेंट हटाने का निर्देश देने से पहले पत्रकारों को सुनना चाहिए था. क्या है पूरा मामला?

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पत्रकारों को अडानी ग्रुप से जुड़े अपने कॉन्टेंट नहीं हटाने पड़ेंगे. (फोटो- आजतक)

दिल्ली के एक कोर्ट ने अपनी निचली अदालत के उस एकतरफा ऑर्डर (Ex-Parte Order) पर रोक लगा दी है, जिसमें पत्रकारों, मीडिया संस्थानों समेत कई लोगों को अडानी ग्रुप से जुड़े कॉन्टेंट को डिलीट करने का निर्देश दिया गया था. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत को दूसरे पक्ष को भी सुन लेना चाहिए था.

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चार पत्रकारों रवि नायर, अबीर दासगुप्ता, आयुषकांत दास और आयुष जोशी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए, रोहिणी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने ये आदेश दिया. इस दौरान उन्होंने कहा कि कॉन्टेंट लंबे समय से सार्वजनिक डोमेन में थे. इसलिए, सिविल जज को उनके कॉन्टेंट हटाने का निर्देश देने से पहले पत्रकारों को सुनना चाहिए था. लाइव लॉ की खबर के मुताबिक, रोहिणी कोर्ट के डिस्ट्रिक्ट जज आशीष अग्रवाल ने आज, 18 सितंबर की सुनवाई के दौरान कहा,

ये संभव नहीं है कि हटाए गए कॉन्टेंट को फिर से बहाल किया जाए. इसलिए मेरी राय में निचली अदालत को प्रतिवादियों (पत्रकारों) को सुनवाई का मौका देने के बाद वादी (अडानी ग्रुप) की मांगों पर फैसला लेना चाहिए था. ये आदेश टिकने योग्य नहीं है. इसीलिए मैं इसे रद्द करता हूं.

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दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद मामले को नए सिरे से तय करने के लिए अदालत को वापस भेज दिया गया.

दरअसल, 6 सितंबर को रोहिणी कोर्ट के सीनियर सिविल जज अनुज कुमार सिंह ने एक एक्स-पार्टे यानी एकतरफा आदेश दिया. ये एक अस्थायी कोर्ट आदेश था, जो बिना दूसरी पार्टी को सुने दिया जाता है. ऐसा तब होता है, जब तुरंत कार्रवाई की जरूरत हो. ताकि गंभीर नुकसान रोका जा सके.

इस आदेश के बाद पत्रकारों ने आदेश के खिलाफ दो अलग-अलग चुनौतियां दायर कीं. एक अपील परंजॉय गुहा ठाकुरता द्वारा और दूसरी अपील रवि नायर, अबीर दासगुप्ता, आयुष जोशी द्वारा सामूहिक रूप से दायर की गई है. गौरतलब है कि आज, 18 सितंबर को एक अन्य कोर्ट ने ठाकुरता की अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

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सूचना मंत्रालय ने भेजा था नोटिस

इससे पहले, केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय यानी MIB ने 16 सितंबर को देश के कुछ मीडिया संस्थानों और कई यूट्यूबर्स को नोटिस भेजा था. इसमें अडानी ग्रुप का जिक्र करने वाले कुल 138 वीडियो और 83 इंस्टाग्राम पोस्ट हटाने के आदेश दिए गए. जिन्हें नोटिस भेजे गए, उनमें न्यूजलॉन्ड्री, द वायर, HW न्यूज के अलावा पत्रकार रवीश कुमार, यूट्यूबर ध्रुव राठी, आकाश बनर्जी (द देशभक्त) जैसे नाम भी शामिल हैं.

नोटिस के मुताबिक, कोर्ट के आदेश के बावजूद इन लोगों ने कॉन्टेंट नहीं हटाया. इसलिए, 36 घंटे में कॉन्टेंट हटाकर मंत्रालय को जवाब देना होगा. नोटिस की कॉपी मेटा (इंस्टाग्राम) और गूगल (यूट्यूब) को भी भेजी गई. क्योंकि IT नियम 2021 के तहत इन प्लेटफॉर्म्स को कोर्ट का आदेश मानना जरूरी है.

नोटिस दिल्ली के रोहिणी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के इसी आदेश पर आधारित था. दरअसल, अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड यानी AEL ने एक मानहानि केस दायर किया था. कंपनी की दलील थी कि कुछ पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और संगठनों ने उनकी और गौतम अडानी के खिलाफ ‘गलत और बिना सबूत’ वाली खबरें या पोस्ट्स छापीं.

AEL ने दावा किया कि इससे कंपनी की छवि को नुकसान हुआ. वहीं, निवेशकों को अरबों रुपये का घाटा हुआ. इसके अलावा, दुनिया भर में भारत की इमेज पर भी असर पड़ा. बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनी ने कहा कि ये लोग "भारत विरोधी हितों" के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और उनके इन्फ्रास्ट्रक्चर और ऊर्जा प्रोजेक्ट्स को जानबूझकर निशाना बना रहे हैं.

इस विवाद के तार 2023 में छपी हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट से जुड़े हैं. इसमें अडानी ग्रुप पर शेयरों में हेरफेर, टैक्स हेवन का मिसयूज और कर्ज से जुड़े गंभीर आरोप लगे थे. AEL का कहना है कि इन पत्रकारों ने हिंडनबर्ग की बातों को आधार बनाकर गलत खबरें फैलाईं, जिससे कंपनी को फंड जुटाने में दिक्कत आई. साथ ही कई प्रोजेक्ट्स में देरी हुई.

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