स्कूल के दिनों की बात है. मेरी ही क्लास में पढ़ने वाला मेरा एक दोस्त कई बार टोके जाने के बाद एक दिन अपनी स्कूल फीस लेकर आया. हम दोनों ही क्लास टीचर के पास उसे जमा करने के लिए गए. वहां जाकर दोस्त ने अपनी जेब से गठरी जैसी एक पन्नी निकाली, जिसमें ढेर सारे सिक्के भरे थे. मुझे ये नहीं पता कि ये उसकी गुल्लक से निकले थे या उसके किराने की दुकान के गल्ले से. लेकिन एक महीने की 150 रुपये की फीस एक, दो और पांच के सिक्कों में देखकर क्लास टीचर का भी माथा चकराने लगा. उनकी सबसे बड़ी चिंता यही थी कि इसको गिनेगा कौन?
बेटी को स्कूटी दिलाने के लिए पिता ने जमा किए हजारों सिक्के, बोरा लेकर शोरूम पहुंचा, फिर...
छत्तीसगढ़ के जशपुर में एक किसान अपनी बेटी के लिए स्कूटी खरीदने गया था. इसके लिए वह महीनों तक जोड़े 10-10 और 20-20 के सिक्के बोरी में भरकर अपने साथ ले गया था.
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‘बार-बार टोके जाने पर’ ये दोस्त का गुस्सा रहा हो या उसकी शरारत. बात वहां सिर्फ 150 रुपये की थी तो गिन लिया गया, लेकिन अगर कोई 40 हजार रुपये ऐसे ही सिक्कों की बोरी में लेकर स्कूटी खरीदने चला जाए तो क्या होगा?
है न मीम कॉन्टेंट? छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के एक किसान ने एकदम यही किया. महीनों से स्कूटी के लिए 10-10 और 20-20 के सिक्के जमा करने के बाद वह उसे बोरे में भरकर शोरूम पहुंच गया. वहां के लोग इतने सारे सिक्के देखकर पहले तो दंग रह गए. लेकिन पैसा नोटों की गड्डी में आए या सिक्कों के ढेर में, आता है तो उसे लौटाया नहीं जाता. सो स्टाफ के लोग कमर कसकर बैठ गए और लगे एक-एक सिक्का गिनने.
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में एक गांव है केसरा. यहां के रहने वाले किसान बजरंग राम भगत अपनी बेटी चंपा के लिए स्कूटी खरीदना चाहते थे. इनकम इतनी ज्यादा नहीं थी कि लाख रुपये की लिमिट छूने को उतावली स्कूटी की कीमत उनके लिए आसान बात हो. लेकिन बात बेटी की खुशी की थी और ये वो चीज है जिसके लिए हर पिता कुछ भी करने को तैयार हो जाता है. बजरंग भी बेटी और स्कूटी के बीच के ‘अभाव’ की इस बाधा को भरने में जुट गए.
इंडिया टुडे से जुड़े शुभम सिंह की रिपोर्ट के अनुसार, बजरंग राम भगत ने मेहनत की कमाई से 10-10 और 20-20 के सिक्के जुटाना शुरू किया. 6 महीने लगे. 40 हजार रुपये जुट गए. इन सिक्कों को उन्होंने एक बोरे में भरा और लादकर चल दिए स्कूटी खरीदने.
अब आइए जशपुर के देव नारायण होंडा शोरूम में चलते हैं. लाल कुर्ता और पीला गमछा पहने बजरंग एक टेबल से लगी कुर्सी पर बैठे हैं. काठ की मेज है. उनके लाए बोरे से सारे सिक्के इसी टेबल पर उलट दिए गए. शोरूम के सारे कर्मचारियों को बुला लिया गया और फिर शुरू हुई सिक्कों की गिनती. घंटों लगे लेकिन कर्मचारियों ने सिक्के गिन डाले. कुल 40 हजार के सिक्के. स्कूटी के बाकी बचे पैसे बजरंग ने नोटों में दिए.
सबसे अच्छी बात ये रही कि सिक्कों का ढेर देखकर शोरूम में कोई भी किसान पर भड़का नहीं. बल्कि उनकी सादगी और मेहनत की कमाई को लेकर हर किसी के मन में सम्मान का भाव था. शोरूम के मालिक आनंद गुप्ता तो इतने प्रभावित हुए कि जब किसान के परिवार को उन्होंने स्कूटी सौंपी तो इसके साथ ही उन्हें एक खास गिफ्ट भी दे दिया. ‘स्क्रैच एंड विन’ के तहत बजरंग को शोरूम से एक मिक्सर-ग्राइंडर भी उपहार मिल गया. उनकी खुशी दोगुनी हो गई.
इस मौके पर शोरूम के मालिक गुप्ता ने कहा,
किसान की मेहनत और ईमानदारी को देखकर हमें बहुत खुशी हुई. 40 हजार के सिक्के गिनने में समय लगा, लेकिन उनकी मेहनत का मोल ज्यादा है. हमने उन्हें स्कूटी के साथ एक छोटा सा उपहार भी दिया.
स्कूटी खरीदने के बाद बजरंग और उनकी बेटी चंपा ‘भाव विभोर’ दिखे. परिवार में इस 'नई आमद' की खुशी उनके चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी. बजरंग ने भी शोरूम के लोगों को धन्यवाद दिया कि उन्होंने उनके लाए बोरे भर सिक्के गिने और उन्हें स्कूटी दी.
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