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"हर ब्रेकअप को रेप मत बताओ...", सुप्रीम कोर्ट ने कानून और कलंक का फर्क समझा दिया

Supreme Court ने कहा कि बलात्कार का अपराध, जो सबसे गंभीर किस्म का अपराध है, केवल उन्हीं मामलों में लगाया जाना चाहिए जहां वास्तविक यौन हिंसा या जबरदस्ती हुई है.

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सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई. (फाइल फोटो: आजतक)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर असफल या खराब रिश्ते को रेप कह देना अपराध की गंभीरता को कम कर देता है. कोर्ट ने कहा कि बलात्कार का अपराध, जो सबसे गंभीर किस्म का अपराध है, केवल उन्हीं मामलों में लगाया जाना चाहिए जहां वास्तविक यौन हिंसा या जबरदस्ती हुई है. शीर्ष न्यायालय ने ऐसे मामलों में कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई.

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क्या है पूरा मामला?

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने सोमवार, 25 नवंबर को एक मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. महाराष्ट्र के एक वकील पर रेप और आपराधिक धमकी का आरोप लगाते हुए दर्ज FIR और आरोपपत्र को कोर्ट ने खारिज कर दिया. 

रिपोर्ट के मुताबिक, शिकायत दर्ज कराने वाली महिला ने शुरू में गुजारा भत्ता के एक मामले में कानूनी मदद के लिए वकील से संपर्क किया था और बाद में वह कथित तौर पर लंबे वक्त तक वकील के साथ संबंधों में रही.

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कोर्ट ने कहा,

बलात्कार का अपराध, जो सबसे गंभीर किस्म का अपराध है, केवल उन्हीं मामलों में लगाया जाना चाहिए जहां वास्तविक यौन हिंसा, ज़बरदस्ती या स्वतंत्र सहमति की कमी हो... हर ख़राब रिश्ते को बलात्कार के अपराध में बदलना न केवल अपराध की गंभीरता को कम करता है, बल्कि अभियुक्त पर कभी न मिटने वाला कलंक और गंभीर अन्याय भी थोपता है. 

कोर्ट ने आगे कहा कि आपराधिक न्याय तंत्र का ऐसा दुरुपयोग गंभीर चिंता का विषय है और इसकी निंदा की जानी चाहिए. कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत 'साफ तौर पर' सहमति से बने रिश्ते की ओर इशारा करते हैं, जो बाद में कड़वाहट में बदल गया.

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पीठ ने कहा कि एक महिला (शिकायतकर्ता), जो बालिग और शिक्षित है, अपनी इच्छा से वकील के संपर्क में रही, उससे अक्सर मिलती रही और लगभग तीन सालों तक उसके साथ घनिष्ठ और भावनात्मक रूप से जुड़े रिश्ते में रही.

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फैसले में यह स्वीकार किया गया कि भारतीय समाज में, महिलाएं अक्सर शादी के वादों पर संबंधों के लिए सहमति देती हैं, और अगर यह वादा केवल उनका शोषण करने के लिए बुरी नीयत से किया गया हो, तो ऐसी सहमति अमान्य हो सकती है. ऐसे मामलों में, कानून को संवेदनशील रहना चाहिए.

लेकिन पीठ ने इस बात पर भी जोर दिया कि ऐसे आरोपों का समर्थन 'विश्वसनीय सबूतों और ठोस तथ्यों' पर आधारित होना चाहिए, न कि निराधार आरोपों या नैतिक अनुमान पर.

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